भारत की विदेश नीति भारत के राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा देने के लिए विश्व के अन्य राष्ट्रों के साथ भारत के संबंधों का नियमन करती है विभिन्न द्वारा निर्धारित होता है जैसे ऐतिहासिक सामाजिक व राजनीतिक संगठन तथा जनता की राय एवं नेतृत्व भी इसमें शामिल है।
जाने क्या है भारतीय विदेश नीति के सिद्धांत
भारतीय नीति यह कहती है कि भारत निकटता से सतत आधार पर क्रिया करता रहे तथा भारत के साथ अन्य राष्ट्रों के संबंध मजबूत हो सके । भारत किसी राष्ट्र विशेष के साथ सम्मिलित होने का सिद्धांत नहीं अपनाता है । भारत का कहना है कि वह किसी एक राष्ट्र के साथ नहीं जाना जाता है बल्कि अपनी संप्रभुता एकता व भाईचारे की भावना का विकास करते हुए आगे बढ़ना चाहता है।
हम आपको बता दें कि भारतीय विदेश नीति के तहत ही भारत यूक्रेन रूस विवाद में सम्मिलित नहीं होना चाहता है क्योंकि भारत किसी भी देश की राजनीतिक विवाद का हिस्सा नहीं बनना चाहता है।
वर्तमान खबरें पढ़ते हुए कई लोगों के मन में यह सवाल उठना होगा कि आखिर भारत की विदेश नीति क्या है जिसके तहत भारत किसी भी राष्ट्र के साथ नहीं जाना चाहता । तो आइए जानते है कि क्या है? भारत की विदेश नीति
- विश्व शांति को बढ़ावा देना
- गैर उपनिवेशवाद
- गैर नस्लवाद
- गुटनिरपेक्षता
- पंचशील सिद्धांत
- एफ्रो एशियाई झुकाव
- राष्ट्रमंडल से संबंध
- संयुक्त राष्ट्र (यूएन )को सहयोग
- निशस्त्रीकरण
यहां पर हमने आपको भारत की 9 प्रमुख विदेश नीतियों से अवगत करा दिया है तो आइए जानते हैं इनका संपूर्ण विवरण-
विश्व शांति को बढ़ावा देना
भारतीय विदेश नीति का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा को बढ़ावा देना है संविधान का अनुच्छेद 51 एक राज्य के नीति निर्देशक तत्व से संबंधित है। जिसमें इस बात को स्पष्ट किया गया है कि भारतीय राज्य को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा व शांति बनाए रखने राष्ट्रों के मध्य सम्मानजनक बने पुल संबंध बनाए रखने के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय वित्तीय एवं संधि शर्तों के प्रति आदर रखने एवं विवादों के निपटारे में मध्यस्था को बनाए रखने का निर्देश दिया जाता है
भारत की विदेश नीति के तहत अंतरराष्ट्रीय संबंधों को लेकर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था – ” शांति हमारे लिए एक उत्साहजनक आशा ही नहीं यह एक आपात आवश्यकता है।”
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गैर उपनिवेशवाद
भारत की विदेश नीति गैर उपनिवेशवाद साम्राज्यवाद का विरोध करती है। भारत का विचार है कि उपनिवेशवाद का साम्राज्यवाद साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा कमजोर राष्ट्रों के शोषण को बढ़ावा देती हैं और अंतरराष्ट्रीय शांति संघ को भंग करने का प्रयास करती हैं भारत में एफ्रो एशियाई देशों जैसे इंडोनेशिया, मलाया, ट्यूनीशिया, अल्जीरिया, गाना, नामीबिया तथा अन्य देशों के स्वतंत्रता आंदोलन को समर्थन किया इस प्रकार भारत ने एशियाई देशों के औपनिवेशिक और साम्राज्यवादी ताकतों जैसे इंग्लैंड, फ्रांस ,पुर्तगाल के विरुद्ध संघर्ष में पूर्ण भाईचारे का प्रदर्शन किया।
गैर नस्लवाद का सिद्धांत
भारत के अनुसार नस्लवाद लोगों के बीच जाति के आधार पर भेदभाव को बढ़ावा देता है जैसे श्वेत द्वारा अश्वेतो का शोषण, सामाजिक असमानता तथा विश्व शांति को बनाए रखने में विघ्न डालने वाला तथ्य है । इस प्रकार से भारत ने इस बात का एवं राजनीतिक भेदभाव की प्रचंड नीति की कड़ी आलोचना की है।
उदाहरण के तौर पर हम आपको बताते हैं कि 1964 में रोजा पार्क्स का मामला इसी नक्सलवाद की समस्या से संबंधित था ये एक एफ्रो अमेरिकन महिला थी।जिन्हें रंग के आधार पर भेदभाव का शिकार होना पड़ा था । इसके अलावा ओमप्रकाश बाल्मीकि जिनके साथ में नस्ल के आधार पर भेदभाव किया गया था वह भी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
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गुटनिरपेक्षता नीति
जब भारत स्वतंत्र हुआ उस समय विश्व सैद्धांतिक आधार पर दो भागों में विभाजित किया गया था। अमेरिका ने पूंजीवादी लोगों को इकट्ठा करके उनका संगठन बनाया तथा रूस ने जिसे इससे पहले यूएसएसआर कहा जाता था ने साम्यवादी दलों का संगठन बनाया भारत ने किसी भी और जाने से इंकार कर दिया कि की शांति युद्ध की परिस्थिति में भारत अलग रहना चाहता था। भारत ने एक अपनी अलग नीति बनाई जिसके तहत भारत किसी भी राष्ट्र में शामिल होने से इनकार कर रहा था और वह नीति थी गुटनिरपेक्ष निरपेक्षता नीति
भारत के पंचशील सिद्धांत
इसमें स्पष्ट शब्दों में कहा गया था कि हम विश्व की एक दूसरे के विरुद्ध ताकत की राजनीति से दूर रहेंगे जिसके परिणाम में विश्व युद्ध हुए तो यह किसी विनाश को बढ़ावा दे सकती है। इसलिए भारत किसी भी शक्तिशाली राष्ट्र के साथ नहीं खड़ा होगा। बल्कि उसकी नीति यह कहती है कि वह अपने देश की राजनीतिक भाईचारे और सौहार्द की भावना को बढ़ावा दे।
पंचशील अंतरराष्ट्रीय संबंधों के आचरण के 5 सिद्धांतों को लागू करता है 1954 में जवाहरलाल नेहरू तथा चाउ उन लाई चीन के प्रमुख के निम्न समझौते हुए
- यह दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता व प्रभुसत्ता का परस्पर सम्मान करना
- एक दूसरे देश के ऊपर हम कोई आक्रमण नहीं करेंगे
- एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे
- समानता की भावना तथा परस्पर लाभ की भावना का विकास करना
- शांतिपूर्णसह अस्तित्व की भावना को बनाया रखना
इस प्रकार भारत ने सार्वभौमिकता के सिद्धांत पर आधारित अपनी शक्ति बनाएं इस प्रकार से भारत कब पंचशील सिद्धांत काफी राष्ट्रों में लोकप्रिय हुआ जैसे म्यांमार, इंडोनेशिया आदि देशों ने इसे अपनाया। पंचशील तथा गुटनिरपेक्षता अंतरराष्ट्रीय संबंधों की कल्पना व प्रयोगों में भारत की महान देन है
एफ्रो एशियाई झुकाऊ व भारत का सहयोग
यद्यपि भारत की विदेश नीति में विश्व के सभी राष्ट्रों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाने की बात कही गई परंतु इसका एफ्रो एशियाई देशों के प्रति एक विशेष झुकाव रहा इसका उद्देश्य उनके साथ एकता को बढ़ावा देना और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में आवाज उठाकर और प्रभावित कर इन्हें सुरक्षा प्रदान करना इसका प्रमुख उद्देश्य था। इन राष्ट्रों के आर्थिक विकास के लिए भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहायता मांगा एवं 1947 में भारत ने नई दिल्ली में प्रथम एशियाई सम्मेलन का आयोजन भी किया ।
हम आपको बता दें कि भारत ने बांडुंग( इंडोनेशिया) में 1955 में हुए एशियाई सम्मेलन में भी बढ़-चढ़कर सक्रिय भूमिका निभाई।
आरती सहयोग को बढ़ावा देने के लिए भारत ने सार्क 1985 के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई सार्क का पूरा नाम
South aisan associationl for regional coperation है।
इस प्रकार भारत ने अनेक पड़ोसी राष्ट्रों से बड़े भाई का नाम प्राप्त किया
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राष्ट्रमंडल से भारत के संबंध
1949 में भारत ने राष्ट्रमंडल देशों में अपनी पूर्ण सदस्यता जारी रखने की घोषणा की हम आपको बता दें कि भारत ने ब्रिटिश ताज को राष्ट्रमंडल प्रमुख के रूप में भी स्वीकार किया परंतु इस संविधान ने तोर घोषणा ने भारत की संप्रभुता को किसी प्रकार से प्रभावित नहीं किया क्योंकि राष्ट्रमंडल स्वतंत्र राष्ट्रों का एक स्वैच्छिक संघ है इससे भारत की गड़ तांत्रिक चरित्र को कोई भी प्रभाव नहीं पहुंचेगा क्योंकि भारत ने नाही ब्रिटिश राज के प्रति वफादारी का वादा किया है और ना ही उसके अधीन है ।बस भारत व्यवहारिक कारणों से राष्ट्रमंडल का सदस्य बना रहा
1983 में भारत ने नई दिल्ली में 24 वे राष्ट्रमंडल सम्मेलन की मेजबानी की थी
संयुक्त राष्ट्र संघ ( यूएनओ) को सहयोग
भारत 1945 में स्वयं संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बना। तब से यह संयुक्त राष्ट्र की समस्त गतिविधियों व कार्यक्रमों का समर्थन करता रहा ।भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य तथा सिद्धांतों के प्रति पूर्ण विश्वास व्यक्त किया। आइए जानते है यूएनओ की भूमिका के संबंध में कुछ तथ्य
- 1953 में विजयालक्ष्मी पंडित को संयुक्त राष्ट्र आम सभा का अध्यक्ष चुना गया।
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा कोरिया, कांगो अल साल्वाडोर ,अंगोला ,सोमालिया आदि में चलाए गए अभियान में सक्रिय रूप से भाग लिया।
- भारत कई बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य रह चुका है अब भारत सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता की मांग कर रहा है
क्या है ? निशस्त्रीकरण का सिद्धांत
भारत की विदेश नीति हथियारों की दौड़ की विरोधी तथा निशस्त्रीकरण की हिमायती रही है।
यह पारंपरिक तथा नाभिकीय दो प्रकार के हथियारों से संबंधित है।
इसका उद्देश्य शक्तिशाली समूह के मध्य तनाव को कम या समाप्त करना तथा विश्व शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देना है और भारत हथियारों के उत्पादन पर होने वाले अनुपयोगी खर्च को रोककर देश के आर्थिक विकास में गतिशीलता लाना चाहता है इसलिए भारत निशस्त्रीकरण का विरोध करता है भारत हथियारों की दौड़ पर नजर रखने व निशस्त्रीकरण की प्राप्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र का मंच इस्तेमाल करता है।
सन 1968 में निशस्त्रीकरण की संधि तथा 1996 में सीटीबीटी हस्ताक्षर ना करके भारत ने अपने नाभिकीय विकल्प खुले रखे।
भारत ने निशस्त्रीकरण की सीटीबीटी और उसके भेदभाव पूर्ण चरित्र के कारण विरोध किया। यह कैसी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को निरंतर जारी रखती है जिसमें केवल 5 राष्ट्र जैसे अमेरिका, रूस ,चीन ,इंग्लैंड व फ्रांस ही शामिल हैं जो अपने पास नाव की हथियार रख सकते हैं इस कारण भारत ने इसमें हस्ताक्षर करने से मना कर दिया।
इस प्रकार ये थी कुछ भारत की विदेश नीतियां । जिसके तहत भारत ने स्वतंत्र रहना ज्यादा उचित समझा बजाय किसी राष्ट्र देश के साथ शामिल होने के। क्योंकि भारत एक संप्रभु राष्ट्र है तथा पंचशील सिद्धांत ही भारत की प्रमुख नीति है।
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