प्रसिद्ध सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी के माता – पिता उनके बचपन में ही चल बसे थे।इसके बाद वह अपने नाना के पास रह रहे थे लेकिन यह सहारा भी ज्यादा दिनों तक नहीं रहा। कुछ समय बाद नाना की मृत्यु हो गई। जब उनके पास कोई भी सहारा नहीं बचा तो उसके कारण उन्हें कोई भी रास्ता नहीं सूझ रहा था।
कुछ समय बाद उन्हें कुछ साधु संत मिले और वे उनके साथ रहने लगे। धीरे-धीरे उनके अंदर आत्मा परमात्मा की समाज होने लगी और वह परमात्मा का चिंतन करने लगे। जब वह 18 साल के हुए तो समाज वालों ने उनकी शादी कर दी। और वह परिवार के साथ जुड़ गए और उनके साथ पुत्र हुए। लेकिन उन्होंने ईश्वर की भक्ति में कोई भी कमी नहीं आने दी। जब वह खेत पर काम करता तो कभी-कभी भगवान का भी चिंतन कर लेता। मैं अपना भोजन खेत पर ही मंगवा लिया करते थे। एक बार जब वह खाने के लिए बैठे तो एक कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति उनके पास आया। वह भूखा भी था। उन्होंने पीड़ित व्यक्ति को खाना खिलाया जिससे उन्हें सुखद अहसास हुआ।
उनके मन से ऊंच-नीच का भेद पूरी तरह से खत्म हो गया था। फिर से उनकी ईश्वर भक्ति गहरी होने लगी। जायसी के गुरु वैद्य की सलाह पर रोजाना अफीम का पानी पीते थे। जायसी ने “पोस्तीनामा” नाम से पद्य की रचना रचना की और वह अपने गुरु को उसकी पंक्तियां सुनाने लगे।
गुरु ने कहा ‘ अरे निपूते’ तुझे मालूम नहीं, तेरा गुरु बिना पौत्र के हैं?”गुरु के ऐसा कहने के बाद जायसी को सूचना मिली कि उनके सातों बेटे किसी घटना में छत के नीचे दब कर मर गए हैं उसके बाद वह बैरागी और फकीर की तरह जीने लगे उनके लिखे ग्रंथों में अखरावट और आखिरी कलाम खास है