देश की आजादी के लिए सिर्फ पुरुषों ने ही नही बल्कि कई महिलाओं ने भी अपना बहुत बड़ा योगदान दिया है , उन्ही में एक थी , बेगम हजरत महल । जिन्होंने 1857 में शुरू हुई क्रांति में अपना भी योगदान दिया । ये अवध के शासक वाजिद अली की पत्नी थी , और ये पहली महिला थी जिन्होंने 1857 में अपनी बहुत भूमिका निभाई थी ।
बेगम हजरत महल प्रारंभिक जीवन…
बेगम हजरत महल का जन्म अवध के एक फैजाबाद नाम के प्रांत में छोटे से गांव में हुआ । इनका जन्म बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था । बचपन में सभी लोग उनको मुहम्मद खातून कहकर बुलाते थे । वें इतने गरीब परिवार से थी कि उनके माता-पिता की तरह से उनका पेट भी नहीं भर सकते थे। बहुत गरीब होने के कारण बेगम हजरत महल को राजशाही घरों में डांस करने पर मजबूर होना पड़ा । जहां पर इनको शाही हरम के एक परी समूह में शामिल कर लिया गया था । उसके बाद उन्हे‘महक परी’ के नाम से जाना जाने लगा। एक बार उन्हें अवध के नवाब के यहां डांस करने के लिए बुलाया गया और जब वहां के नवाब ने उन्हें देखा तो वे उनकी सुंदरता पर मोहित हो गए और उन्होंने बेगम हजरत महल को अपनी शाही हरम में शामिल कर लिया और उसके बाद उन्होने से उसे अपनी बेगम बना लिया। विवाह हो जाने के कुछ दिन बाद बेगम हजरत महल ने एक पुत्र को जन्म दिया , जिसका नाम उनलोगो ने बिरजिस कादर रख दिया। उसके बाद बेगम हजरत महल को ‘हजरत महल’ की उपाधि दे दी गई।
जब सन 1856 में अंग्रेजों ने अवध पर कब्ज़ा कर लिया तब बेगम हजरत महल ने अपने पति अर्थात् अवध के नवाब को कोलकाता भेज दिया। नवाब को कोलकाता भेज देने के बाद बेगम हज़रत महल ने अवध के बागडोर को सँभालने की शपथ ली। उन्होंने अपने नाबालिग पुत्र को अवध की राजगद्दी पर बिठाकर अंग्रेजी का मुक़ाबला किया।
1857 में शुरू हुआ पहला स्वतंत्रता संग्राम …
सन 1857 से लेकर 1858 तक के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, राजा जयलाल सिंह के द्वारा किए गए नेतृत्व में बेगम हज़रत महल ने ब्रिटिश इंडिया कंपनी के सेना का विद्रोह किया । उसके बाद लखनऊ पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद जब अंग्रेजों ने लखनऊ और अवध के लगभग भागों पर कब्ज़ा जमा लिया तब बेगम हज़रत महल को हार मानकर पीछे हटना पड़ा।
इसके बाद उन्होंने नाना साहेब ,जिन्होंने कानपुर में रहकर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था । बेगम हजरत महल ने उनके साथ मिलकर अंग्रेजो का विद्रोह किया । उन्होंने अंग्रेजों पर हिन्दु और मुसलमान के धर्म में बीच में दखलंदाजी करने का आरोप लगाया था।
बेगम हजरत महल का बाद का जीवन ….
अंग्रेजों से हार जाने के बाद बेगम हजरत महल को भारत छोड़कर नेपाल में जाना पड़ा। शुरुआत में तो नेपाल के प्रधानमंत्री जंग बहादुर ने मना कर दिया था पर उसके बाद उन्होंने बेगम हजरत महल को नेपाल में रहने की आज्ञा दे दी । इसके बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन नेपाल में ही व्यतीत किया था । सन 1879 में नेपाल में उनकी मृत्यु हो गयी थी । उन्हें काठमांडू के जामा मस्जिद में दफनाया दिया गया था।