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Home»inspirational»हिमा दास की कहानी – कैसे बनी भारत की उड़नपरी
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हिमा दास की कहानी – कैसे बनी भारत की उड़नपरी

By Archana DwivediUpdated:June 14, 2023
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दोस्तो ,आज हम आप लोगो को एक ऐसी लड़की की कहानी के बारे में आपको बताने जा रहे है जिसने अपनी विषम परिस्थितियों व गरीबी से संघर्ष करते हुए भी एक ऐसा नाम एवं मुकाम हासिल किया है जिसने लोगो के हृदय में एक चेतना जागृत कर दी है। जो लोगो को एक अद्भुत प्रेरणा देती है खासकर उन महिलाओं को व बच्चियों को जिनके अंदर हुनर तो है परंतु गरीबी व धन के अभाव के कारण पिछड़ जाती है।

आज हम बात करने वाले है फ़िनलैंड में जाकर देश का तिरंगा लहराने वाली एक ऐसी भारतीय लड़की के बारे में जिसने संसाधनों की कमी के बावजूद स्वर्ण पदक जीत कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया |हम बात कर रहे है असम के साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाली भारतीय रेसर हिमा दास के बारे में जो आईएएएफ वर्ल्ड अंडर 20 चैंपियनशिप में 400 मीटर दौड़ गोल्ड मैडल जितने वाली प्रथम भारतीय महिला बन गयी है |जिन्हें लोग एक ‘डिंग एक्सप्रेस ‘ के नाम से जानते है।

जन्म और प्रारंभिक जीवन-

हिमा का जन्म 9 जनवरी 2000 को असम राज्य के नौगांव जिले के ढिंग गाँव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था | हिमा दास के पिता का नाम रणजीत दास और माता का नाम जोनाली दास है। उनका परिवार एक संयुक्त परिवार था जिसमे कुल 16 सदस्य थे | हिमा के पांच भाई बहन है और ये उनके परिवार में सबसे छोटी लड़की है । जिले में ज्यादातर किसान धान की खेती करते हैं। उनके परिवार का गुजारा भी धान की खेती से होता था। उनके माता पिता चावल की खेती करते हैं। ये चार भाई-बहनों से छोटी हैं। दास ने अपने विद्यालय के दिनों में लड़कों के साथ फुटबॉल खेलकर क्रीड़ाओंं मेंं अपनी रुचि की शुरुआत की थी। वो अपना कैरियर फुटबॉल में देख रही थीं और भारत के लिए खेलने की उम्मीद कर रही थीं। फिर जवाहर नवोदय विद्यालय के शारीरिक शिक्षक शमशुल हक की सलाह पर उन्होंने दौड़ना शुरू किया। शमशुल हक़ ने उनकी पहचान नगाँव स्पोर्ट्स एसोसिएशन के गौरी शंकर रॉय से कराई। फिर हिमा दास जिला स्तरीय प्रतियोगिता में चयनित हुईं और दो स्वर्ण पदक भी जीतीं। जिला स्तरीय प्रतियोगिता के दौरान ‘स्पोर्ट्स एंड यूथ वेलफेयर’ के निपोन दास की नजर उन पर पड़ी। उन्होंने हिमा दास के परिवार वालों को हिमा को गुवाहाटी भेजने के लिए मनाया जो कि उनके गांव से 140 किलोमीटर दूर था। पहले मना करने के बाद हिमा दास के घर वाले मान गए।

हिमा दास के जीवन की संघर्ष पूर्ण कहानी

संघर्ष की कहानी भारतीय धावक हिमा दास (Hima Das) के पहले कोच उनके पिता थे और वह चावल के किसान थे। इसी कारण से वह कई सालों तक सुबह 4 बजे दौड़ लगाती थी, खास बात यह है कि वह धान के खेतों में ही प्रैक्टिस करती थीं। इसके बाद वह दिन में अपने पिता की खेत में जुताई करने में मदद करती थी। हिमा दास का धिंग गांव में है, जहां रनिंग ट्रैक नहीं था लेकिन हिमा दास के पास जो कुछ था उन्होंने उससे ही ट्रेनिंग की। हिमा दास ने छोटे से गांव से ही अपने करियर की शुरुआत असम से की।

जहाँ रनिंग ट्रैक नहीं था लेकिन हिमा दास के पास जो कुछ था उन्होंने उससे ही ट्रेनिंग की। हिमा दास ने छोटे से गांव से ही अपने करियर की शुरुआत की। जीवन के शुरुआती सालों में हिमा दास को फुटबॉल खेलना पसंद थे लेकिन उन्हें जल्दी ही इस बात का आभास हो गया था कि केवल एक ही रास्ते पर चलकर वह अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर सकती। इसके बाद उन्होंने फुटबॉल से रनिंग में करियर बनाने का फैसला किया और इसमें उनके पिता ने भी उनका बहुत साथ दिया। लाइवमिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, “मुझे फुटबॉल खेलना पसंद था, यहां तक की मुझे फुटबॉल प्लेयर ही बनना था लेकिन सच कहूं तो मुझे नहीं पता था कि फुटबॉल में मेरे करियर का क्या होगा। मैं असम के एक क्लब में स्ट्राइकर की भूमिका में भी खेली थी। इस भारतीय धावक ने बताया कि “मैं अपने देश का प्रतिनिधित्व करना चाहती थी और फुटबॉल में मेरा करियर क्या होगा, ये मुझे पता नहीं था इसलिए मैंने कुछ और करने का सोचा”। इसका फायदा हिमा को जल्दी ही मिला और उन्होंने 100 मीटर की स्थानीय रेस में गोल्ड मेडल जीता, ये उनका पहला पदक था और अब जीतने का सिलसिला चल ही रहा है। इसके 5 साल बाद 2018 में ये भारतीय धावक आईएएएफ वर्ल्ड अंडर-20 चैंपियनशिप (IAAF World U20 Championships) में गोल्ड जीतने वाली भारत की पहली एथलीट बनीं।

चावल के खेतों में काम करने से लेकर भारतीय स्प्रिन्टर बनने तक कि हिमा दास की कहानी काफी चुनोतियों पूर्ण रही रही है । 09 जनवरी 2000 को जन्मी हिमादास एक ऐसी भारतीय धावक हैं। जो आईएएएफ वर्ल्ड अंडर-20 एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। हिमा ने 400 मीटर की दौड़ स्पर्धा में 51.46 सेकेंड का समय निकालकर स्वर्ण पदक जीता। करियर को बदलने वाला वह साल 2018 धिंग एक्सप्रेस के नाम से मशहूर हिमा दास ने अपने करियर की शुरुआत साल 2018 ऑस्ट्रेलिया में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स की। इसके बाद उन्होंने उन्होंने फेडरेशन कप में उन्होंने 400 मीटर रेस जीती। किसी खिलाड़ी को यह नहीं पता होगा कि कॉमनवेल्थ गेम्स क्या होते हैं और दो साल बाद उन्होंने ना केवल उसमें हिस्सा लिया बल्कि अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन (51.32) करते हुए छठा स्थान हासिल किया। इसके तीन महीने बाद ही उन्होंने शानदार प्रदर्शन की बदौलत गोल्ड मेडल जीत लिया। फिनलैंड में हुई वर्ल्ड अंडर-20 चैंपियनशिप की 400 मीटर रेस में उन्होंने 51.46 सेकेंड में रेस में वर्ल्ड ट्रैक इवेंट में जीत हासिल करने वाली वह भारत की पहली धावक बनीं। इसके बाद भी हिमा दास को पता नहीं था कि उन्होंने क्या हासिल किया है, जब सोशल मीडिया पर उन्होंने देखा कि पूरा देश उनकी बात कर रहा है, तब जाकर उन्हें अपनी कामयाबी का पता चला। कामयाबी का स्तर बढ़ता ही गया देखते ही देखते उनकी जिंदगी ही बदल गयी। अब हिमा दास को अपने इमोशन को छुपा कर रखना था कि क्योंकि उनका सफर काफी लंबा था। अगस्त 2018 में जकार्ता में हुए एशियन गेम्स में हिमा दास ने राष्ट्रीय रिकॉर्ड (51.00) बनाते हुए 400 मीटर के लिए क्वालिफाय किया। फाइनल में 50.79 सेकेंड में ही रेस पूरी कर सिल्वर पदक अपने नाम कर लिया। अभी जर्काता में भारतीय धावक को और कामयाबी देखनी थी। इस खिलाड़ी ने 4×100 वुमेंस पिले रेस में तो गोल्ड जीता ही बल्कि मिक्स्ड रिले कैटेगिरी में भी स्वर्ण पदक अपने नाम किया। इन उपलब्धियों से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उनका यह साल कैसा बीता। उनके इस शानदार प्रदर्शन को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया। क्या हुआ जब एक साथ मिली कई जीते?(एक महीने में 5 गोल्ड मेडल) हिमा दास ने अपने इस शानदार सफर को साल 2019 में भी जारी रखा, खासकर जुलाई महीना तो उनके लिए यादगार बन गया। 200 मीटर कैटेगिरी में उन्होंने दो गोल्ड मेडल जीते। पहला गोल्ड मे़ल उन्होंने पोडनेन एथलीट्स ग्रांड प्रिक्स में और दुसरा स्वर्ण कुतनो एथलीट्स मीट में अपने नाम किया।

13 जुलाई को उन्होंने चेक गणराज्य में कल्दो एथलेटिक्स (Kladno Athletics Meet) मीट में 23.43 सेकंड के समय के साथ 200 मीटर में गोल्ड मेडल जीता, वहीं इसके 4 दिन बाद ही टैबोर एथलेटिक्स मीट (Tabor Athletics Meet ) में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 23.25 सेकेंड का समय निकाला। नोवे मेस्तो में 400 मीटर रेस में उन्होंने एक और गोल्ड जीतकर केवल 19 दिनों में अपना 5वां स्वर्ण पदक जीता, उनके इस प्रदर्शन के बाद सोशल मीडिया पर एक बार फिर आग लग गई।

जीवन में आई चुनौतियां…

जीत के साथ कुछ चुनोतियां भी – कहते है कि ‘जीवन का नाम ही संघर्ष है ‘व्यक्ति जिंदगी में कितना ही क्यों न सफल हो जाये संघर्ष तो चलता ही रहता है क्योंकि वह जीवन का एक अंग है। बात करते है कि आगे क्या हुआ हालांकि, उनका सफर सिर्फ अच्छा ही नहीं रहा। साल 2019 में वर्ल्ड एथलीट्स चैंपियनशिप से ठीक पहले की चोट फिर से उबर गई, जिसके कारण वह दोहा में होने वाले इस इवेंट में हिस्सा नहीं ले पाईं। इसके बाद उन्होंने ट्रैक पर लौटने के लिए अपनी जान लगा दी लेकिन चोटों के कारण वह लगातार परेशान ही रही। इस खिलाड़ी के पास पदक जीतने की प्रतिभा तो है लेकिन लगातार होती चोटों के कारण वह ऐसा नहीं कर पाई रहीं। इस स्टार धावक ने एएनआई एजेंसी को बताया कि सभी एथलीट ओलंपिक के बारे में सोचते हैं और मैं भी यही सोचती हूं। एथलीट के तौर पर जिंदगी काफी छोटी होती है, पता नहीं कब आप चोटिल हो जाएं।” ओलंपिक का स्थगित होना भारतीय खिलाड़ी के लिए कहीं ना कहीं अच्छी ही खबर है, अब हिमा दास को वापसी करने के लिए और फिट होने के लिए और समय मिल गया है। हिमा दास के पास हासिल करने के लिए अभी बहुत कुछ बचा हुआ है।

हिमा दास को कैसे मिलन डिंग एक्सप्रेस?

प्रसिद्धि इन्हें डिंग एक्सप्रेस के नाम से जाना जाता है। ये addidas की ब्रांड एम्बेसडर भी है ।एक ऐसी लड़की जिसके पास पहनने के लिए जूते तक नही थे।

आज उसके नाम पर ही जूते बिकते है ।जिसे पहले लोग addidas के नाम से खरीदते थे उसे आज हिमदास के नाम से खरीदते है। हिमा दास खेल कि दुनिया का एक ऐसा नाम जिसके बारे में बहुत से लोग नहीं जानते। लेकिन हिमा दास ने एक समय में हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया था और वो समय था जुलाई 2019 का

अगर आप को भी नहीं पता तो आपको बता देता हूं, हिमा दास एक भारतीय धावक (runner) हैं जो ट्रैक एवं फील्ड पर दौड़ती हैं। हिमा दास ने इसी खेल में जुलाई 2019 में छह गोल्ड मेडल भारत के लिए जीते थे। लेकिन कहते हैं कि कोई भी रुकावट तुम्हें रोक नहीं सकती कोई भी परेशानी तुम्हें हरा नहीं सकती जब तक तुम खुद से हार जाओ। हिमा दास ने इतनी परेशानियों के बीच आज यहां तक पहुंच कर इस कथन को सत्य साबित कर दिया है।

हिमा दास की उपलब्धियां

* हिमा दास अंडर 20 चैंपियनशिप में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली महिला हैं।

* हिमा दास को 25 सितंबर 2018 को भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के द्वारा उनके बेहतरीन प्रदर्शन के चलते अर्जुन अवॉर्ड दिया गया।

* जुलाई 2019 को सिर्फ 21 दिनों में हिमा दास ने पांच गोल्ड मेडल भारत के लिए जीतकर भारत का नाम रोशन किया।

* हिमा दास को 1 नवंबर 2019 को भारत के प्रसिद्ध टीवी शो कौन बनेगा करोड़पति से बुलावा आया था।

* हिमा असम से दूसरी खिलाड़ी हैं जो अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में भारत के लिए स्वर्ण पदक लाई हैं। इससे पहले असम के भोगेश्वर बरुआ भारत के लिए स्वर्ण जीत चुके हैं।

हिमा दास का व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन-

√ 100 मीटर- (11.74 सेकेंड में), √ 200 मीटर- (23.10 सेकेंड में), √ 400 मीटर- (50.79 सेकेंड में) तथा √ 4X400 मीटर रिले- (3:33.61 में)। √ 20 दिन में 6 गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं।

तो दोस्तो आशा करती हूं कि हिमादास की यह प्रेरणादायक कहानी व उनके बारे में आवश्यक विशेष जानकारी आपको अच्छी लगी होगी । आगे इसी प्रकार और भी प्रभावशाली महिलाओ की संघर्ष भारी कहानी जानने व पढने के लिए दोस्तो आप जुड़े रहिये indiamitra पर जो आपको आगे भी प्रेरित करने वाले वैयक्तिक से अवगत करायेगा। धन्यवाद।

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