भारत और चीन के संबंध हमेशा से जटिल और बहुआयामी रहे हैं। कभी व्यापारिक साझेदारी, तो कभी सीमा विवाद—इन रिश्तों में उतार-चढ़ाव की लंबी कहानी है। अगस्त–सितंबर 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा को इसी पृष्ठभूमि में देखा जा रहा है। यह यात्रा शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के अवसर पर हुई और इसे पिछले सात वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की सबसे अहम चीन यात्रा माना जा रहा है।
1. सीमा प्रबंधन और विश्वास बहाली
मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच सबसे अहम चर्चा सीमा पर शांति और स्थिरता को लेकर रही। दोनों नेताओं ने सहमति जताई कि सीमा प्रबंधन के लिए विशेष प्रतिनिधि स्तर पर संवाद को तेज़ किया जाएगा।
2020 के बाद से चले आ रहे तनाव को पीछे छोड़ते हुए दोनों देशों ने भरोसे का माहौल बनाने पर बल दिया। मोदी ने साफ कहा कि रिश्तों में बाहरी शक्तियों का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
यह संदेश सीधा है—भारत और चीन को अपने विवादों का समाधान खुद ही करना होगा।
2. यात्रा और संपर्क के नए रास्ते

कैलाश-मानसरोवर यात्रा को पुनः शुरू करने पर सहमति हुई। यह भारत के तीर्थयात्रियों के लिए बड़ी राहत है।
दोनों देशों ने सीधी उड़ानों को बहाल करने का भी निर्णय लिया। हालाँकि तारीख तय नहीं हुई, लेकिन यह कदम व्यापार और पर्यटन दोनों को नई दिशा देगा।
वीज़ा और यात्रा प्रक्रियाओं को सरल बनाने पर भी चर्चा हुई।
3. व्यापार और आर्थिक सहयोग
भारत और चीन का व्यापार संतुलन लंबे समय से भारत के लिए चुनौती रहा है। इस यात्रा में:
चीन ने द्विपक्षीय व्यापार घाटे को कम करने की बात स्वीकार की।
विशेष वस्तुओं (rare-earth minerals, उर्वरक, दवाइयों से जुड़े कच्चे पदार्थ आदि) पर निर्यात प्रतिबंधों में ढील देने का आश्वासन दिया।
दोनों देशों ने निवेश बढ़ाने और नई तकनीकों में सहयोग पर भी चर्चा की।
यह समझौता भारतीय उद्योग और किसानों दोनों के लिए सकारात्मक माना जा रहा है।
4. बहुपक्षीय मंचों पर साझेदारी
SCO सम्मेलन में भारत, चीन और रूस ने मिलकर ‘विकास साझेदार’ (Development Partners) का दृष्टिकोण अपनाया।
मोदी ने वैश्विक दक्षिण (Global South) की आवाज़ बुलंद की और बहुध्रुवीय दुनिया (Multipolar World) के लिए सहयोग बढ़ाने का आह्वान किया।
यह संकेत है कि भारत, चीन और रूस मिलकर पश्चिमी देशों के एकाधिकार से अलग एक नए आर्थिक-राजनीतिक ढांचे को बढ़ावा देना चाहते हैं।
5. राजनीतिक और कूटनीतिक महत्व
यह यात्रा मोदी की चीन में सात साल बाद वापसी थी, इसलिए प्रतीकात्मक रूप से भी बहुत अहम रही।
सीमा विवाद और व्यापार असंतुलन जैसी चुनौतियों के बावजूद, यह मुलाकात बताती है कि दोनों देश टकराव नहीं, सहयोग का रास्ता तलाशना चाहते हैं।
कूटनीतिक दृष्टि से, यह भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता (Strategic Autonomy) का भी उदाहरण है—जहाँ वह अमेरिका और यूरोप से भी संबंध बनाए रखता है और चीन-रूस के साथ भी तालमेल बिठाता है।
निष्कर्ष
मोदी की चीन यात्रा केवल एक औपचारिक कूटनीतिक कार्यक्रम नहीं थी, बल्कि यह भारत-चीन रिश्तों में नए संतुलन की तलाश का संकेत है।
सीमा पर शांति,
व्यापार में संतुलन,
यात्रा-संपर्क की सहजता,
और बहुपक्षीय सहयोग—
ये चार स्तंभ इस यात्रा की मुख्य उपलब्धियाँ कही जा सकती हैं। आने वाले समय में इन समझौतों का वास्तविक असर इस बात पर निर्भर करेगा कि दोनों देश इन्हें जमीनी स्तर पर कितनी ईमानदारी से लागू करते हैं