लखनऊ की शान कहे जाने वाले बड़ा इमामबाड़ा अपने आप में बहुत ही अद्वितीय और और मनोहर है। यहां के कण-कण में अद्भुत कलाकृति देखने को मिलती है।
लखनऊ की इस शानदार इमारत का निर्माण साल 1784 में किया गया था। जिसका निर्माण नवाब आसफुद्दौला द्वारा करवाया गया था। कई साल बीत जाने के बाद भी यह इमारत बाहर से जितनी आकर्षक है, अंदर से उतनी ही खूबसूरत भी है।
बड़ा इमामबाड़ा को भूल भुलैया के नाम से भी जाना जाता है, अंदर जाने के लिए यहां 1000 से भी ज्यादा छोटे-छोटे रास्तों का जाल है, वहीं बाहर निकलने के लिए सिर्फ 2 रास्ते हैं। यहां आकर अच्छे से अच्छा पर्यटक भी रास्ता भूल जाता है।
बड़ा इमामबाड़ा की कुछ दिलचस्प बातें …
1 * बड़ा इमामबाड़ा की सबसे खास बात है यहां के रास्ते। यहां के रास्ते इतने भ्रामक बनाए गए हैं कि यदि ध्यान ना दे तो आप भटक सकते हैं, इसको इस तरीके से बनाए जाने का सबसे बड़ा कारण यह था कि शत्रु का भय बना रहता था कि वे किस दिशा से कब आक्रमण कर दें।इसके अलावा यदि कोई अजनबी इसके अंदर प्रवेश करे तो वह राजा के हाथों से बचकर ना जाने पाए। इसे नवाब की कब्र के लिए आसफी इमामबाड़ा और भ्रामक रास्तों के कारण भूल-भुलैया भी कहा जाता है।
2* गोमती नदी के किनारे स्थित बड़ा इमामबाड़ा की वास्तुकला, ठेठ मुगल शैली को प्रदर्शित करती है जो पाकिस्तान में लाहौर की बादशाही मस्जिद से काफी मिलती जुलती है और इसे दुनिया की सबसे बड़ी पाचंवी मस्जिद भी माना जाता है।
3* इसकी सबसे रोचक बात यह है कि यह ना तो पूरी तरह से मस्जिद है और ना ही मकबरा है। कमरों का निर्माण और दीवारों के उपयोग में सशक्त इस्लामी प्रभाव स्पष्ट रूप से झलकता है।
4* इस भवन में कुल 3 विशाल कक्ष है और इनकी दीवारों के बीच छुपी हुई लंबी-लंबी गलियां हैं जो लगभग 20 फीट तक मोटी हैं।
5* बड़ा इमामबाड़ा की छत पर जाने के लिए 84 सीढ़ियां हैं जो ऐसे रास्तों से होकर जाती हैं जो किसी भी अनजान व्यक्ति को भ्रम में डाल दें,
6*भूल भुलैया के कुछ रास्ते तो इतने खतरनाक थे कि लोग इस में फंस कर अपनी जान तक गंवा चुके हैं। मान्यता है कि भूल भुलैया भूमिगत सुरंगों का ऐसा जाल है जो इमामबाड़े को दिल्ली कोलकाता और फैजाबाद से जोड़ता है हालांकि अब लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर इन्हें बंद कर दिया गया है।
7* बड़ा इमामबाड़ा में एक बहुत बड़ी सी बावड़ी भी है जिसे इस वक्त बंद कर दिया गया है।
8 * भूल भुलैया की बालकनी पूरे विश्व में प्रसिद्ध है इसका प्रमुख कारण यह है कि इस बालकनी में अगर आप माचिस की तीली भी जलाएंगे तो बालकनी के दूसरे कोने तक आसानी से उसकी आवाज सुनाई पड़ती है।
9 *इस इमारत को बनाने में कहीं भी लोहे का इस्तेमाल नहीं किया गया है, जो इसकी सबसे मुख्य विशेषता है। इसके साथ ही इसमें किसी भी यूरोपीय शैली की वास्तुकला को शामिल नहीं किया गया है।
10 * भूल भुलैया की कई दीवारें ऐसी खोखली बनाई गई है कि एक कोने पर खड़े व्यक्ति की आवाज दूसरे छोर पर खड़े व्यक्ति को आसानी से सुनाई देती है। इसके बारे में कहा जाता है कि यहां की दीवारों के भी कान हैं।
कितना समय लगा बड़ा इमामबाड़ा बनने में?
इमामबाड़ा का निर्माण और अकाल दोनों ही 11 साल तक चले। इमामबाड़ा के निर्माण में करीब 20,000 श्रमिक शामिल थे। इसका केंद्रीय हॉल दुनिया का सबसे बड़ा वॉल्टेड चैंबर बताया जाता है। बड़ा इमामबाड़ा को हालांकि भूल भुलैया के नाम से ज्यादा ख्याति प्राप्त है। इस विशाल इमामबाड़ा का गुंबदनुमा हॉल 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है। उस जमाने में इसके निर्माण में कुल 8 से 10 लाख रुपये की लागत आई थी।