एक छोटे से गाँव में आदित्य नाम का लड़का रहता था। उसके सपने बहुत बड़े थे—वह एक वैज्ञानिक बनना चाहता था। लेकिन उसके घर की हालत बहुत कमजोर थी। पिता मजदूरी करते, मां सिलाई। कई बार घर में इतना पैसा भी नहीं होता कि दीया जलाने के लिए तेल खरीदा जा सके।
आदित्य पढ़ाई में तेज था, लेकिन जब भी वह किसी बड़ी समस्या से टकराता, उसके मन में एक ही सवाल उठता—
“क्या इतना बड़ा सपना मेरे जैसे गरीब लड़के का पूरा हो सकता है?”
एक दिन स्कूल से लौटते समय उसने देखा कि एक किसान अपने खेत में हल चला रहा है। खेत में जगह-जगह पत्थर भरे थे। किसान हर पत्थर को उठाकर किनारे रख रहा था।
आदित्य ने पूछा,
“काका, आप हर पत्थर क्यों उठाते हैं? सीधे हल क्यों नहीं चला लेते?”
किसान मुस्कुराया,
“बेटा, अगर मैं एक-एक पत्थर नहीं हटाऊँगा, तो हल कभी सीधा नहीं चलेगा, और फसल खराब हो जाएगी। जिस दिन आखिरी पत्थर हट जाएगा, उसी दिन सबसे अच्छी फसल उगेगी।”
ये सुनकर आदित्य रुक गया। किसान ने आगे कहा—
“सपनों का खेत भी ऐसा ही होता है।
हर परेशानी एक पत्थर है।
अगर हम हर पत्थर को एक-एक करके हटा दें…
तो मंज़िल अपने आप साफ दिखने लगती है।”
ये बात आदित्य के दिल में बैठ गई। उसी दिन उसने फैसला किया कि वह हर मुश्किल को एक पत्थर मानेगा और हर दिन एक पत्थर हटाएगा—
कभी एक घंटा पढ़ाई बढ़ाकर,
कभी नए कॉन्सेप्ट समझकर,
कभी कमजोर विषय सुधारकर।
साल बीतते गए।
धीरे–धीरे वह गाँव का सबसे होनहार लड़का बन गया।
फिर उसने छात्रवृत्ति से कॉलेज किया और आखिरकार एक दिन वह वही बन गया, जो वह बचपन में बनना चाहता था—
एक वैज्ञानिक।
जब वह अपने गाँव लौटा, लोग उसकी सफलता देखकर हैरान थे।
आदित्य ने सिर्फ इतना कहा—
“मैंने कुछ खास नहीं किया…
मैंने सिर्फ अपने रास्ते के पत्थर हटाए।”
(सीख)
➡️ “हर मुश्किल एक पत्थर है—उसे हटाओ, मंज़िल साफ दिख जाएगी।”
या
