दलित समाज को शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए तथा उनके लिए अपना सर्वस्व समर्पण करने वाले हमारे देश में कई महानायक हुए हैं, जिसमें से सबसे प्रमुख है डॉक्टर भीमराव अंबेडकर है । जिन्हें भारतीय संविधान का जनक कहा जाता है। परंतु आज हम आपसे बात करने वाले हैं कि ऐसे महानायक के बारे में जिन्होंने दलितों के सम्मान और उनकी सत्ता के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर दिया आइए जानते हैं कौन है वह व्यक्ति
काशीराम एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने दलितों के लिए अपने परिवार अपना घर यहां तक कि अपना सब कुछ निछावर कर दिया। एक बार की बात है कि इनकी माता-पिता ने काशीराम का विवाह तय कर दिया परंतु यह सुनने के बाद काशीराम घर छोड़कर हमेशा के लिए चले गए और उन्होंने अपने परिवार के नाम एक पत्र लिखा। बेटे के पत्र से काशीराम के पिता विशन बहुत उदास हुए । पहले उनकी समझ में नहीं आया कि वह क्या करें फिर बेटे को हाथ से जाता देख उसे समझाने पूना चले गए जहां पर वे गए थे।
यह उनका सबसे बड़ा बेटा था जो सरकारी नौकरी में था इसलिए उससे परिवार काफी उम्मीदें थी उन्होंने अपने बेटे का विवाह एक विधायक की बेटी से तय किया था सगाई का दिन भी पक्का हो गया था परंतु पुत्र घर छोड़कर चला गया और उसने पत्र में लिखा -” वह कभी भी घर वापस लौट के नहीं आएगा वैवाहिक बंधन से मुक्त रहेगा कि कि उसने अपने कंधे पर पूरे समाज की जिम्मेदारी ले ली है। पुणे में 2 महीने तक मां बेटे से घर चलने के लिए कहती है परंतु उन्होंने साफ इनकार कर दिया क्योंकि उन उनके लिए उनके व्यक्तिगत जीवन से अधिक प्रिय उनका समाज के लोग थे जिन को न्याय दिलाने के लिए उन्हें अभी बहुत अधिक संघर्ष करना था क्योंकि वे दलितों को शोषण से मुक्ति दिलाना चाहते थे और समाज में उनका एक स्थान स्थापित करना चाहते थे ताकि दलित समाज भी अन्य लोगों की बात सम्मान पूर्वक जी सके और सभी अधिकार प्राप्त कर सकें।
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि दलित समाज को न्याय दिलाने की नीव बाबा भीमराव अंबेडकर ने पहले ही रहती थी बस उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए इन्हें एक काम करना था अर्थात डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के विचार धाराओं का अनुसरण करते हुए दिशा में आगे बढ़ रहे थे।
काशीराम की मां काफी लंबे समय तक पुणे में अपनी बेटे के साथ ही रही। इन 2 महीने में रात में जब भी मां की जब भी नींद टूटती तू भी देखती क्यों उनका बेटा पढ़ाई कर रहा है जब भी उसे सोने के लिए कहती तो बेटा मना कर देता और कहता कि मां मुझे पढ़ने दो तो एक बार उनकी मां ने उसे किताब छीन कर पूछा-” इसमें ऐसा क्या है जो तुम दिन रात भर जागते रहते हो उसे पढ़ते रहते हो । ” बेटा बोला -‘मैं इस किताब में सत्ता और सम्मान पाने के उपाय लिखे हैं उन्हीं को आत्मसात करने की कोशिश कर रहा हूं ‘
बेटे को घर ले जाने की मां की हर कोशिश असफल रही मां हार मान गई। निराश होकर घर लौट आई घर आकर उसने बेटी की सगाई तोड़ दी।
यह बेटा फिर कभी परिवार के पास नहीं आया, राखी में भी नहीं आया और अपनी बहन की शादी में भी नहीं उपस्थित हुआ।यहां तक कि अपने पिता को मुखाग्नि देने के लिए भी नहीं आया क्योंकि उन्होंने पूरी तरह से अपने परिवार को त्याग दिया था।
उनकी मां अपने बेटे से बहुत प्यार करती थी मां की ममता बेबस होकर रह गई भाइयों से दूरी बना लेने वाले और कभी ना जाने की प्रतिज्ञा पूरी करने वाले इस शख्स का नाम काशीराम था।
यह वही काशीराम थे जिन्होंने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की समाज में दलित वर्गों को उचित स्थान प्राप्त करवाया। दलित समाज के नायक काशीराम का अनुसरण करते हुए मायावती ने इन्हे अपना गुरु मानते हुए दलित समाज के लिए कार्य करना शुरू कर दिया।
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ज्योतिबा फुले, शाहूजी महाराज, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के अंबेडकर के विचारों के जरिए दलितों को सत्ता और सम्मान दिलाने के लिए उन्होंने अपनी सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।
दलित समाज की महान नेताओं की वजह से आज दलित समाज शोषण से पूर्णतया मुक्त हो चुका है और उन्हें भी समाज में एक उच्च स्थान प्रदान करने के साथ-साथ भारतीय संविधान में भी उन्हें अधिकार प्रदान किए गए