राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत राष्ट्र निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है और मौलिक अधिकार नागरिकों के व्यक्तित्त्व विकास के महत्वपूर्ण है। नागरिकों को उनके सम्पूर्ण विकास के लिए मौलिक अधिकार प्रदान किया गया है। जबकि नीति निर्देशक तत्व राष्ट्र निर्माण के लागू किया गया है।
मौलिक अधिकार, वे अधिकार है जो नागरिकों के व्यक्तित्त्व विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। इसका वर्णन भारतीय संविधान के भाग 3 में है। और नीति निर्देशक तत्व संविधान के भाग 4 में वर्णित है। नीति निर्देशक तत्व से आशय संविधान द्वारा राज्य को दिया गया निर्देश है। राज्य किस प्रकार के तत्वों पर अपनी नीतियों का निर्धारण करेगा, इसका वर्णन नीति निर्देशक सिद्धांत में है। तो आज हम आपसे मौलिक अधिकार और नीति निदेशक तत्वों के बीच अंतर के बारे में बात करेंगे।
- मौलिक अधिकार राज्य की नकारात्मक भूमिका का वर्णन करते है तथा राज्य को कुछ विशेष कृत्य करने से रोकते है वही ये मौलिक अधिकार राज्य की सकारात्मक भूमिका दायित्व का वर्णन करते है तथा राज्य से अपेक्षा करते है कि वह जनकल्याण हेतु विशिष्ट प्रयास करें।
- मौलिक अधिकार देश मे राजनैतिक जनतंत्र स्थापित करते है वही ये तत्व देश मे सामाजिक आर्थिक जनतंत्र लाते है
- मौलिक अधिकार जनता को दिये जा चुके है वही निर्देशक तत्व निर्देशात्मक ,जो नए अधिकारों की चर्चा तो करते है पर्ंतु वास्तव मे देते कुछ नही है।
- मौलिक अधिकार कड़े वैधानिक शब्दों मे वर्णित हैं, जब कि डीपीएसपी तत्व मात्र सामान्य भाषा में।
- दोनों की न्यायालय मे स्थिति पूर्णतः भिन्न है सर्वाधिक महत्वपूर्ण निर्देशक तत्व 39 ब तथा स है।
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नीति निदेशक तत्व की आवश्यकता क्यों है और इसका क्या है लाभ है?
भारतीय संविधान के भाग 4 अनुच्छेद 35 से 51 में वर्णित नीति निर्देशक तत्व एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना का निर्देश देते हैं। हालांकि यह लोगों पर बाध्यकारी नहीं है। परंतु राज्य को इन्हें लागू करना अति आवश्यक है। जिस प्रकार से राष्ट्र के विकास के लिए अधिकारों का होना आवश्यक है, उसी प्रकार राज्य के विकास के लिए नीति निदेशक तत्वों का होना आवश्यक है ।इसलिए प्रत्येक राज्य सरकार को इन्हें लागू करना चाहिए और इन पर विशेष ध्यान देना चाहिए। हमारे भारतीय संविधान में नीति निर्देशक तत्व को तीन विचारधाराओं के आधार पर अपनाया गया है:-
- गांधीवादी
- समाजवादी
- बौद्धिक
- अनु 39 ब के अनुसार राज्य के संसाधन इस प्रकार प्रयोग हो कि उनका लाभ जनसंख्या के सभी भागों को प्राप्त हों
- अनु 39 स कुछ व्यक्तियॉ के हाथों मे धन के केन्द्रीयकरण को रोकता है
- अनु 37 के अनुसार नीति निर्देशक तत्वों को न्यायालय मे प्राप्त करने लायक तो नही बताते है पर्ंतु देश के शासन मे इन्हे मौलिक रूप मे निहित मानते है यह राज्य का कर्तव्य है कि वह इन तत्वॉ को अपनी नीतियो में शामिल करे।
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