भगवान सूर्य की उपासना का महापर्व छठ शुक्रवार को शुरू हो गया है इस नहाए खाए छठ पूजा में सूर्य भगवान के उदय और अस्त दोनों रूपों में उनकी पूजा की जाती है उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। इस पूजा में महिलाएं सात्विक भोजन करती है और घाटों पर जाकर पूजा वेदी बनाती हैं ।
लखनऊ स्थित लक्ष्मण मेला मैदान , सांझिया घाट, पंचमुखी घाट ,कुड़िया घाट समेत कई घाटों पर सफाई जारी कर दी गई है क्योंकि यहां पर भारी संख्या में लकर पूजा करने के लिए आते हैं। यह छठ पूजा शुक्रवार को प्रारंभ होकर सोमवार तक चलेगी। जिसमें रविवार को अस्ताचलगामी (सूर्य अस्त) को और सोमवार को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। नहाए खाए के साथ शुरू होने वाला यह पर सोमवार सुबह संपन्न होगा। सूर्य उपासना के पर्व सप्तमी तिथि को होते हैं लेकिन छठ पर ही ऐसा पर्व है जिसमें छठी तिथि पर भी छठ मनाई जाती है । जिसमें सूर्य देव की पूजा की जाती है। मान्यता यह है कि छठ मैया खरना से ढाई दिन के लिए अपने मायके आई हैं
क्या है खरना से निर्जला व्रत रखने का तरीका?
खरना को छोटी छठ भी कहते हैं इसी दिन मटर का केराव भी बनता है ।यही वह दिन है जिस दिन से महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं एवं व्रत रखने वाली महिलाएं रात को पुआल या कुश की चटाई पर सोती हैं। दूसरे दिन अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसमें गन्ना, सिंघाड़ा, अनार, नारियल, कद्दू ,केला,नींबू, सुपारी ,मूली, लौकी,पेड़ लगी अदरक और हल्दी , सुथनी सब समेत कई मौसमी फल चढ़ाए जाते हैं लेकिन पांच फल जरूरी होते हैं।
चार दिन का होता है यह महापर्व
यह त्योहार कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को नहाए खाए से छठ व्रत की शुरुआत होती है। पंचमी पर खरना होता है एवं छठे दिन यह अस्ताचलगामी तो सप्तमी पर उगते सूर्य को अर्घ्य देकर इस व्रत को पूरा किया जाता है।
सात्विकता है जरूरी
छठ के इस व्रत में सात्विक भोजन बनाना बहुत जरूरी है क्योंकि यही सात्विक भोजन ग्रहण भी करना होता है ।इसमें लहसुन ,प्याज समेत कई चीज डालना वर्जित होती है इस दिन लौकी मिलकर चने की दाल चावल खाया जाता है ,दूसरे दिन खरना होता है। इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं साठी के चावल के साथ गुड़ और दूध मिलाकर खीर व घी लगी रोटी खाते हैं। इसे भी शाम को ही ग्रहण किया जाता है इस व्रत में नियमों का पालन करना बेहद जरूरी माना जाता है।
कार्तिक मास आते ही शुरू हो जाती है इसकी तैयारी
कहते हैं कि छठ मैया का व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं जो भी व्यक्ति माता का यह व्रत रहता है उसकी माता सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। इसके साथ ही पति व स्वास्थ्य, समृद्धि की कामना के लिए भी लोग यह व्रत रखते हैं ।भोजपुरी समाज की इस पर्व में बड़ी आस्था है विवाहित महिलाओं के अलावा पुरुष भी या व्रत रखते हैं।
छठ पूजा की तैयारी कार्तिक मास आते ही प्रारंभ हो जाती है। पूरी प्रक्रिया में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। हम आपको बता दें कि पहले इसमें गेहूं को धोकर धूप में सुखाया जाता है वह भी इस तरीके से सिखाया जाता है कि इसमें कीड़ा मकोड़ा या पक्षी जाकर चोंच ना मार दी इसलिए वहीं बैठकर ही उसे सूखने का प्रावधान माना गया है। फिर हाथ की चक्की से गेहूं पीसकर बनाया जाता है ना कि बाहर पिसे हुए आटे का प्रयोग कर सकते हैं । इसके अलावा अरवा चावल भी सुखाकर पीस लिया जाता है पूरे घर की पूरी तरह सफाई भी की जाती है। जो कि व्रत में विशेष तौर पर जरूरी है।
ऐसे बनाया जाता है छठ माता का प्रसाद
छठ माता की व्रत में प्रसाद का भी अत्यंत महत्व है इसे भी बेहतर ढंग से बनाना चाहिए। आइए जानते हैं कि छठ माता के व्रत में किस चीज का भोग लगता है –
इसमें खरना पर सुबह घरों में मिट्टी का चूल्हा और पूजा की वेदी बनाई जाती है । सुबह गुड़ ,देसी, घी और आटे का ठेकुआ और भीगा चना इस त्यौहार का मुख्य प्रसाद है । दूसरे दिन भोर में उदय होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दौरान सारा प्रसाद बांस के बने डाला में रखा जाता है। महिलाएं सूप में प्रसाद लेकर नदी के जल में खड़ी होती हैं। सूप में पान के पत्ते पर बड़ी इलायची सुपारी और लॉन्ग होना जरूरी होता है।