अजा एकादशी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को आती है। वर्ष 2025 में यह व्रत 19 अगस्त, यानि कल मंगलवार को मनाई जाएगी।
जाने क्यों कहते हैं इसको अजा एकादशी
अजा एकादशी का नाम “अजा” शब्द से निकला है। संस्कृत में “अज” या “अजा” का अर्थ होता है – “जन्म न लेने वाली, अनादि और अविनाशी”।
कारण कि इसे अजा एकादशी कहा जाता है:
1. पापों का नाश
इस तिथि का व्रत करने से मनुष्य के जन्म-जन्मांतर के पाप समाप्त हो जाते हैं। जब पाप ही “जन्म” नहीं ले पाते यानी उनका पुनः उदय नहीं होता, तभी इसे अजा (अर्थात् जो उत्पन्न न हो) कहा गया।
2. मोक्ष की प्राप्ति
“अजा” का एक अर्थ मुक्ति भी है। इस व्रत के फलस्वरूप जीव पुनर्जन्म (आवागमन) से मुक्त हो जाता है और मोक्ष को प्राप्त करता है।
3. कथा से संबंध
जब ऋषि गौतम ने राजा हरिश्चंद्र को यह व्रत करने की सलाह दी थी, तब उन्होंने कहा था कि इस व्रत से आपके जीवन की सारी विपत्तियाँ और पाप नष्ट हो जाएंगे और कोई नया पाप “जन्म नहीं लेगा”। तभी से इसे अजा एकादशी कहा जाने लगा।
4. भगवान विष्णु का अजा स्वरूप
कुछ ग्रंथों में उल्लेख है कि भगवान विष्णु का एक नाम “अज” भी है, जिसका अर्थ है – अनादि, अजन्मा और सर्वव्यापी। इस तिथि को भगवान विष्णु के उस रूप की विशेष पूजा की जाती है।
अजा एकादशी करने का शुभ मुहूर्त व पारण समय
एकादशी तिथि प्रारंभ: 18 अगस्त 2025, शाम 5:22 बजे
एकादशी तिथि समाप्त: 19 अगस्त 2025, दोपहर 3:32 बजे
व्रत पारण (द्वादशी): 20 अगस्त सुबह 05:50 से 08:30 बजे तक शुभ समय
अजा एकादशी की कथा

प्राचीन समय में सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र को कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ा। उन्हें अपना राज्य, परिवार और सुख-सुविधा सब कुछ त्यागना पड़ा और श्मशान में दास बनकर कार्य करना पड़ा।
एक दिन महान ऋषि गौतम ने उन्हें अजा एकादशी व्रत करने का उपदेश दिया। राजा ने श्रद्धापूर्वक यह व्रत किया। इसके प्रभाव से उनका सारा दुख समाप्त हुआ, राज्य वापस मिला और अंत में उन्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई।
यही कारण है कि अजा एकादशी को सत्य, धर्म और मोक्ष की तिथि माना जाता है।
पूजा विधि और विधान
अजा एकादशी का व्रत बहुत पवित्र माना जाता है। इसकी सही विधि इस प्रकार है:
व्रत पूर्व तैयारी (दशमी तिथि – 18 अगस्त)
सात्विक भोजन करें।
मांसाहार, प्याज़-लहसुन और नशे जैसी वस्तुओं से परहेज़ करें।
मन, वचन और कर्म से शुद्ध रहें।
एकादशी दिन (19 अगस्त)
1. प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. भगवान विष्णु का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें।
3. धूप, दीप, पुष्प, फल, पंचामृत और तुलसीदल अर्पित करें।
4. श्रीहरि को पीले फूल और पीले वस्त्र चढ़ाएँ।
5. विष्णु सहस्रनाम या गीता के श्लोकों का पाठ करें।
6. दिनभर उपवास करें। फलाहार लिया जा सकता है, पर अनाज-चावल वर्जित है।
7. रात्रि में भजन-कीर्तन करें और जागरण का महत्व है।
द्वादशी (20 अगस्त – पारण)
प्रातः स्नान कर विष्णुजी की पूजा करें।
व्रत पारण समय (सुबह 5:50–8:30) में भोजन करें।
जरूरतमंद को दान देने से व्रत पूर्ण फल मिलता है।
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⏰ पूजा का शुभ मुहूर्त (19 अगस्त 2025)
अभिजीत मुहूर्त: 11:56 AM – 12:48 PM
सायंकाल पूजा: संध्या समय दीपक जलाना विशेष शुभ होता है।
अजा एकादशी की आरती
(यह आरती विशेष रूप से अजा एकादशी पर भगवान विष्णु के लिए गाई जाती है)
आरती ओम जय जगदीश हरे
ओम जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट,
क्षण में दूर करे॥
अजा एकादशी मंत्र
पूजा के समय इन मंत्रों का जाप अत्यंत फलदायी माना जाता है:
1. विष्णु मंत्र
> ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः॥
2. अजा एकादशी व्रत संकल्प मंत्र
> अजा एकादशी व्रतमहं करिष्ये,
पापमोचनं पुण्यवर्धनं मोक्षप्रदं श्रीविष्णुप्रीत्यर्थम्॥
3. तुलसी अर्पण मंत्र
> तुलसी दलं समर्पयामि श्रीहरये नमः॥
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अजा एकादशी केवल एक उपवास नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और ईश्वर से निकटता का माध्यम है।
जो भी भक्त इस दिन सच्चे मन से भगवान विष्णु का व्रत व पूजन करता है, उसके जीवन से दुःख-दर्द समाप्त होकर शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।