महाशिवरात्रि भगवान शिव की पूजा-अर्चना का एक प्रमुख पर्व है, जिसे फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन शिव भक्त व्रत, उपवास और रात्रि जागरण करते हैं तथा शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र आदि चढ़ाकर भगवान शिव की आराधना करते हैं।
महाशिवरात्रि से जुड़ी प्रमुख कथाएँ
1. शिव-पार्वती विवाह की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। माता पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया और महाशिवरात्रि के दिन उनका विवाह हुआ। इसलिए इस दिन को शिव-पार्वती विवाह के रूप में भी मनाया जाता है।

2. समुद्र मंथन और नीलकंठ की कथा
एक अन्य प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तब उसमें से विष (कालकूट) निकला, जिससे पूरा ब्रह्मांड जलने लगा। सभी देवता भगवान शिव के पास गए और प्रार्थना की। भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने के लिए उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और वे “नीलकंठ” कहलाए। इस घटना की स्मृति में महाशिवरात्रि मनाई जाती है।
3. शिकारी और शिवलिंग की कथा

एक प्राचीन कथा के अनुसार, एक शिकारी जंगल में शिकार की तलाश में निकला। रात होने पर वह एक बेल वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया। उसे पता नहीं था कि नीचे एक शिवलिंग है। पूरी रात वह बेल वृक्ष से पत्ते तोड़-तोड़कर नीचे गिराता रहा, जो अनजाने में शिवलिंग पर गिरते रहे। इसके साथ ही वह भय के कारण “भोलेनाथ” शब्द भी बोलता रहा। इस प्रकार अनजाने में ही उसने महाशिवरात्रि का व्रत कर लिया, जिससे उसकी समस्त बुरी कर्मों से मुक्ति मिल गई।
महाशिवरात्रि का महत्व
- यह दिन आत्मशुद्धि, भक्ति और संयम का प्रतीक है।
- भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए इस दिन व्रत, ध्यान और रात्रि जागरण का विशेष महत्व है।
- शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद, घी और बेलपत्र चढ़ाने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
- इस दिन शिव मंत्रों का जाप करने से मनोवांछित फल मिलता है।
महाशिवरात्रि केवल एक पर्व नहीं, बल्कि शिव भक्ति का महान अवसर है, जो भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।
हर हर महादेव!