पापमोचनी एकादशी की व्रत कथा इस प्रकार है:
प्राचीन समय में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी नामक एक तेजस्वी और तपस्वी ऋषि थे। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और गहन तपस्या में लीन रहते थे।
इंद्रलोक में एक अप्सरा थी — मंजुघोषा। जब इंद्र ने देखा कि मेधावी ऋषि की तपस्या से स्वर्गलोक का सिंहासन हिलने लगा है, तो उन्होंने मंजुघोषा को भेजा ताकि वह उनकी तपस्या भंग कर सके।
मंजुघोषा ने अपनी मोहक अदाओं से मेधावी ऋषि को मोहित कर लिया। उनकी तपस्या भंग हो गई, और वे सांसारिक सुखों में लिप्त हो गए। समय का पता ही न चला, और कई साल बीत गए।
जब अंततः मेधावी ऋषि को अपनी गलती का एहसास हुआ, तो वे अत्यंत दुखी हुए। उन्होंने मंजुघोषा को श्राप देकर भगा दिया और स्वयं भी अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए वन में चले गए।
वहां उन्होंने अपने पिता च्यवन ऋषि से मार्गदर्शन मांगा। च्यवन ऋषि ने उन्हें पापमोचनी एकादशी के व्रत का पालन करने का सुझाव दिया। उन्होंने बताया कि इस एकादशी का व्रत करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति को पवित्रता एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मेधावी ऋषि ने विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत किया, जिससे वे पापमुक्त हो गए और पुनः अपनी तपस्या में लीन हो गए।
इसलिए, पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है।

पापमोचनी एकादशी व्रत का महत्व
पापमोचनी एकादशी का व्रत मुख्य रूप से पापों से मुक्ति और आत्मिक शुद्धि के लिए किया जाता है। इसका महत्व धार्मिक ग्रंथों में विस्तार से बताया गया है। आइए जानते हैं इसके पीछे के कारण:
1. पापों से छुटकारा
इस व्रत को करने से व्यक्ति जाने-अनजाने में किए गए पापों से मुक्त हो जाता है। मेधावी ऋषि की कथा इसका उदाहरण है, जिन्होंने इस व्रत के प्रभाव से अपने बड़े से बड़े पाप का प्रायश्चित किया।
2. काम, क्रोध, लोभ, मोह पर विजय
यह व्रत मनुष्य को अपनी बुरी आदतों और मानसिक विकारों से मुक्त करता है। इसे करने से मन शांत और संयमित होता है, जिससे व्यक्ति अपने मनोविकारों पर काबू पा सकता है।
3. पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति
जो व्यक्ति इस व्रत को विधिपूर्वक करता है, उसे जीवन में पुण्य मिलता है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
4. स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि
मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से न केवल मानसिक बल्कि शारीरिक कष्ट भी दूर हो जाते हैं। घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
5. पूर्वजों की आत्मा की शांति
इस व्रत को करने से पूर्वजों के पितृदोष भी शांत होते हैं, जिससे उनके आशीर्वाद से परिवार पर शुभ फल बरसते हैं।