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Home»धर्म»परिवर्तनीय एकादशी, जाने क्या है पूजा करने का शुभ मुहूर्त व विधान
धर्म

परिवर्तनीय एकादशी, जाने क्या है पूजा करने का शुभ मुहूर्त व विधान

By Archana Dwivedi
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एकादशी का व्रत प्रमुख रूप से भगवान विष्णु के लिए रखा जाता है। हिंदू धर्म में भगवान श्री विष्णु की कृपा पाने के लिए किसी भी महीने के कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष में पड़ने वाली एकादशी का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है. श्री हरि की कृपा बरसाने वाली एकादशी का महत्व तब और ज्यादा बढ़ जाता है जब यह भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में पड़ती है और परिवर्तनी या फिर जलझूलनी एकादशी कहलाती है. इस साल परिवर्तनी एकादशी का व्रत कब पड़ेगा और इसकी किस विधि से पूजा करनी चाहिए? पूजा विधि से लेकर शुभ मुहूर्त तक, सभी जरूरी बातों को आइए विस्तार से जानते हैं. 

परिवर्तनी एकादशी का शुभ मुहूर्त 

हिंदू धर्म में जिस व्रत को करने पर व्यक्ति के अच्छे दिन आते हैं और उसे सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है, वह परिवर्तनी एकादशी का व्रत इस साल 03 सितंबर2025 को रखा जाएगा और इस व्रत का पारण अगले दिन 04 सितंबर 2025 को दोपहर 01:36 से 04:07 बजे के बीच होगा. 

परिवर्तनीय एकादशी  पूजन व्रत विधि

परिवर्तनी एकादशी के दिन प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठें और स्नान-ध्यान करने के बाद पूजा से जुड़ी सभी सामग्री अपने पास रख लें. इसके बाद अपने घर के पूजा स्थान पर श्री हरि को पहले शुद्ध जल अर्पित करें फिर उसके बाद धूप-दीप, रोली-चंदन, फल-फूल, मिष्ठान, नारियल, पंचामृत, तुलसीदल, आदि अर्पित करके एकादशी व्रत की कथा कहें. कथा को कहने या फिर सुनने के बाद श्री हरि के मंत्र का तुलसी की माला से कम से कम एक माला जप करें.

रात्रि में जागरण कर “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें।

व्रती दिनभर उपवास रखे या केवल फलाहार करें।

एकादशी व्रत बगैर पारण के अधूरा रहता है, इसलिए इसके अगले दिन विधि-विधान से इस व्रत का पारण कर श्री हरि से आशीर्वाद मांगते हुए अपनी मनोकामना कहें तथा किसी देवालय में जाकर पुजारी को अपने सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा दें। इस प्रकार अगले दिन द्वादशी को दान-दक्षिणा और भोजन कराकर व्रत का पारण करें।

परिवर्तिनी एकादशी (जिसे पद्मा एकादशी, जलझूलनी एकादशी या डोल ग्यारस भी कहते हैं) भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है। यह व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि इसी दिन से भगवान श्रीविष्णु योगनिद्रा में करवट बदलते हैं। इस कारण इसे परिवर्तिनी (करवट बदलने वाली) एकादशी कहा जाता है।

परिवर्तिनी एकादशी का महत्व

1. विष्णु जी का करवट बदलना – चातुर्मास में देवशयन एकादशी को भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और परिवर्तिनी एकादशी को वे करवट बदलते हैं। इसी से इसका नाम पड़ा है।

2. विशेष पुण्यफल – इस व्रत को करने से मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में इसे सहस्र अश्वमेध यज्ञ और सैकड़ों राजसूय यज्ञ के बराबर फलदायी कहा गया है।

3. संसारिक लाभ – व्रती को आयु, आरोग्य, धन-वैभव और पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है।

4. पितरों की मुक्ति – इस व्रत के पुण्य से पितरों को तृप्ति मिलती है और उनका उद्धार होता है।

5. चातुर्मास का विशेष दिन – चातुर्मास के चार माह में यह सबसे पवित्र एकादशी मानी गई है। इस दिन दान, पुण्य और व्रत का विशेष महत्व होता है।

मान्यता है कि जो श्रद्धाभाव से परिवर्तिनी एकादशी का व्रत करता है, उसे जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति और अंत में भगवान विष्णु के धाम की प्राप्ति होती है।

💐 परिवर्तनी एकादशी की व्रत कथा 💐

पुराणों के अनुसार, सत्ययुग में एक बार बलि नामक दैत्यराज ने बहुत घोर तपस्या की और तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। देवता उससे भयभीत होकर भगवान विष्णु के पास गए और निवेदन किया कि वह हमें बलि के अत्याचारों से बचाएँ।

भगवान विष्णु वामन अवतार धारण कर दैत्यराज बलि के यज्ञ में ब्राह्मण के रूप में पहुँचे। वामन ने बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी।

पहले पग में भगवान ने पूरी पृथ्वी नाप ली।

दूसरे पग में आकाश और स्वर्ग लोक नाप लिया।

तीसरे पग के लिए कोई स्थान शेष न रहा, तब बलि ने अपना शीश झुका दिया।

भगवान ने बलि के सिर पर पग रखकर उसे पाताल लोक भेज दिया।

लेकिन भगवान विष्णु ने उसकी भक्ति और सत्यनिष्ठा से प्रसन्न होकर कहा –
“हे बलि! यद्यपि तुम दैत्य हो, परंतु तुमने वचन का पालन किया है। अतः मैं तुम्हारे पास पाताल लोक में रहूँगा और तुम्हारी रक्षा करूंगा।”

इसी कारण से भगवान विष्णु चातुर्मास में बलि के लोक में रहते हैं और परिवर्तिनी एकादशी के दिन करवट बदलते हैं।

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Archana Dwivedi
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I’m Archana Dwivedi - a dedicated educator and founder of an educational institute. With a passion for teaching and learning, I strive to provide quality education and a nurturing environment that empowers students to achieve their full potential.

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