कार्तिक मास की यह महापुण्यदायी और मोक्ष प्रदान करने वाली रमा एकादशी व्रत आज 28 अक्टूबर को है, जिसकी पूजा शाम में की जाती है और व्रत कथा सुनी जाती है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने वाले व्रती यानी भक्त और साधक को इस एकादशी की व्रत कथा अवश्य सुननी-पढ़नी चाहिए, अन्यथा पूजा अधूरी मानी जाती है। इस कथा को सुनने की एक और वजह यह है कि इस व्रत की कथा और माहात्म्य स्वयं भगवान योगेश्वर कृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाया था।
इस एकादशी पर गऊ पूजन का भी विधान है। वहीं, भगवान श्री हरि विष्णु अभी गहन शयन अवस्था हैं। उनके शयन अवस्था उनकी पूजा का यह अंतिम एकादशी है। इसके 15 दिन बाद देवोत्थान या देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु नींद से जागेंगे।
रमा एकादशी व्रत करने का शुभ मुहूर्त और तिथि
एकादशी तिथि की शुरुआत 27 अक्टूबर यानी कल सुबह 5 बजकर 23 मिनट पर हो चुकी है और समापन 28 अक्टूबर यानी आज सुबह 7 बजकर 50 मिनट पर होगा। रमा एकादशी का पारण 29 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 31 मिनट से लेकर 8 बजकर 44 मिनट तक रहेगा।
रमा एकादशी की व्रत कथा

धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा, “हे भगवन! कार्तिक कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि क्या है? इसके करने से क्या फल मिलता है। सो आप विस्तारपूर्वक बताइए।”
युधिष्ठिर ये परम वचन सुनकर भगवान श्रीकृष्ण बोले, “हे राजन! कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम रमा है। यह बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली है। इसका माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूं, ध्यानपूर्वक सुनो।”
क्यों नहीं है और कैसे स्थिर हो सकता है आप बताइए, फिर मैं अवश्यमेव वह उपाय करूँगा। मेरी इस बात को आप मिथ्या न समझिए।”
शोभन ने कहा “मैंने इस व्रत को श्रद्धारहित होकर किया है। अत: यह सब कुछ अस्थिर है। यदि आप मुचुकुंद की कन्या चंद्रभागा को यह सब वृत्तांत कहें तो यह स्थिर हो सकता है।”
ऐसा सुनकर उस श्रेष्ठ ब्राह्मण ने अपने नगर लौटकर चंद्रभागा से सब वृत्तांत कह सुनाया। ब्राह्मण के वचन सुनकर चंद्रभागा बड़ी प्रसन्नता से ब्राह्मण से कहा, “हे ब्राह्मण! ये सब बातें आपने प्रत्यक्ष देखी हैं या स्वप्न की बातें कर रहे हैं।” ब्राह्मण कहने लगा “हे पुत्री! मैंने महावन में तुम्हारे पति को प्रत्यक्ष देखा है। साथ ही किसी से विजय न हो ऐसा देवताओं के नगर के समान उनका नगर भी देखा है। उन्होंने यह भी कहा कि यह स्थिर नहीं है। जिस प्रकार वह स्थिर रह सके सो उपाय करना चाहिए।”
चंद्रभागा कहने लगी, “हे विप्र! तुम मुझे वहां ले चलिए, मुझे पतिदेव के दर्शन की तीव्र लालसा है। मैं अपने किए हुए पुण्य से उस नगर को स्थिर बना दूंगी। आप ऐसा कार्य कीजिए जिससे उनका हमारा संयोग हो क्योंकि वियोगी को मिला देना महान पु्ण्य है।
ब्राहमण सोम शर्मा यह बात सुनकर चंद्रभागा को लेकर मंदराचल पर्वत के समीप वामदेव ऋषि के आश्रम पर गया। वामदेवजी ने सारी बात सुनकर वेद मंत्रों के उच्चारण से चंद्रभागा का अभिषेक कर दिया। तब ऋषि के मंत्र के प्रभाव और एकादशी के व्रत से चंद्रभागा का शरीर दिव्य हो गया और वह दिव्य गति को प्राप्त हुई।
इसके बाद बड़ी प्रसन्नता के साथ अपने पति के निकट गई। अपनी प्रिय पत्नी को आते देखकर शोभन अति प्रसन्न हुआ। और उसे बुलाकर अपनी बाईं तरफ बिठा लिया।
चंद्रभागा कहने लगी, “हे प्राणनाथ! आप मेरे पुण्य को ग्रहण कीजिए। अपने पिता के घर जब मैं आठ वर्ष की थी तब से विधिपूर्वक एकादशी के व्रत को श्रद्धापूर्वक करती आ रही हूं। इस पुण्य के प्रताप से आपका यह नगर स्थिर हो जाएगा तथा समस्त कर्मों से युक्त होकर प्रलय के अंत तक रहेगा।” इस प्रकार चंद्रभागा ने दिव्य आभूषणों और वस्त्रों से सुसज्जित होकर अपने पति के साथ आनंदपूर्वक रहने लगी।
राजा मुचकुंद, उसकी पुत्री चंद्रभागा और शोभन की यह कथा सुनाकर भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा, “हे राजन! यह मैंने रमा एकादशी का माहात्म्य कहा है, जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, उनके ब्रह्म हत्यादि समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों की एकादशियाँ समान हैं, इनमें कोई भेदभाव नहीं है। दोनों समान फल देती हैं। जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ते अथवा सुनते हैं, वे समस्त पापों से छूटकर विष्णुलोक को प्राप्त होता हैं।”