1. चंद्र ग्रहण का कारण
जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है और उसकी छाया चंद्रमा पर पड़ती है, तब चंद्र ग्रहण होता है।
यह केवल पूर्णिमा की रात को ही हो सकता है।
चंद्र ग्रहण के प्रकार
पूर्ण चंद्र ग्रहण – जब पूरा चंद्रमा पृथ्वी की छाया में आ जाए।
आंशिक चंद्र ग्रहण – जब चंद्रमा का कुछ भाग ही छाया में हो।
उपछाया चंद्र ग्रहण – जब चंद्रमा पृथ्वी की हल्की छाया (Penumbra) में प्रवेश करता है।
3. वैज्ञानिक महत्व
यह हमें खगोलीय पिंडों की गति और उनकी स्थिति को समझने में मदद करता है।
वैज्ञानिक ग्रहण का उपयोग पृथ्वी के वातावरण और परतों का अध्ययन करने में करते हैं।
चंद्रमा से परावर्तित प्रकाश का विश्लेषण कर वैज्ञानिक वायुमंडल में मौजूद धूल और गैस के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।
प्राचीन समय में ग्रहण का उपयोग खगोलशास्त्र और गणितीय गणना को सुधारने में किया जाता था।
4. मानव जीवन पर प्रभाव (वैज्ञानिक दृष्टि से)
वैज्ञानिकों के अनुसार चंद्र ग्रहण का सीधा कोई हानिकारक प्रभाव मानव शरीर पर नहीं पड़ता।
यह एक खगोलीय घटना है, जिसे खुले आँखों से बिना किसी हानि के देखा जा सकता है।
गर्भवती महिलाओं या खाने-पीने पर रोक वैज्ञानिक आधार पर नहीं है, यह केवल धार्मिक मान्यताएँ हैं।
चंद्र ग्रहण से सीख
यह हमें सिखाता है कि खगोलीय घटनाएँ प्राकृतिक हैं और इनका हमारे जीवन पर कोई अशुभ प्रभाव नहीं है।
इससे वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड और ग्रहों की गति को समझने में बहुत मदद मिलती है।
चंद्र ग्रहण मानव सभ्यता के लिए ज्ञान, गणना और खगोलशास्त्र को आगे बढ़ाने का एक साधन है।
चंद्र ग्रहण से जुड़ी पौराणिक कथा
यह कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है –
1. समुद्र मंथन के समय
जब देवताओं और दानवों ने समुद्र मंथन किया, तब अमृत का कलश निकला।
अमृत पीने से अमरत्व मिलता था, इसलिए देवता और दानव दोनों ही उसे पाना चाहते थे।
2. विष्णु का मोहिनी रूप
विवाद को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और अमृत को देवताओं में बाँटना शुरू किया।
दानवों को अमृत न मिले, यह युक्ति थी।
3. राहु का छल
एक दानव जिसका नाम स्वर्भानु था, वह देवताओं का रूप बनाकर अमृत पीने बैठ गया।
जब अमृत उसके गले से नीचे उतरने ही वाला था, तभी सूर्य और चंद्रमा ने उसे पहचान लिया और मोहिनी (विष्णु) को बता दिया।
4. विष्णु जी का सुदर्शन चक्र
तुरंत भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चलाकर स्वर्भानु का सिर धड़ से अलग कर दिया।
चूँकि उसने अमृत की कुछ बूँदें पी ली थीं, इसलिए वह नहीं मरा। उसका सिर “राहु” कहलाया और शरीर “केतु” कहलाया।
5. राहु-केतु का बदला
राहु को यह क्रोध था कि सूर्य और चंद्रमा के कारण उसकी पहचान उजागर हुई।
तभी से वह समय-समय पर सूर्य और चंद्रमा को निगल लेता है।
जब राहु चंद्रमा को निगलता है तो उसे चंद्र ग्रहण कहते हैं।
जब राहु सूर्य को निगलता है तो उसे सूर्य ग्रहण कहते हैं।
महत्व
इस कथा का भावार्थ यह है कि ग्रहण केवल एक खगोलीय घटना है, जिसे पौराणिक कथाओं में प्रतीकात्मक रूप में समझाया गया है।
राहु-केतु को यहाँ छाया ग्रह कहा गया है, और यही वैज्ञानिक रूप से भी सही बैठता है, क्योंकि ग्रहण छाया से ही बनता है।