यह बात उस समय की है जब रामकृष्ण परमहंस के सबसे प्रिय शिष्य विवेकानंद जी अमेरिका से दुबारा इंग्लैंड गए। उस दौरान भारत इंग्लैंड के अधीन था। इस प्रसंग में स्वामी विवेकानंद की महानता का बड़ा ही प्रसंशनीय व अद्भुत वर्णन किया गया है । आइए जानते है कि क्या है स्वामी विवेकानंद जी की महानता?
एक दिन लंदन की सभा में भारत की वैज्ञानिक और परिष्कृत संस्कृति पर वार्ता चल रही थी। स्वामी जी वैज्ञानिक उदाहरण देकर बता रहे थे कि भारत में हिंदुओं की संख्या अधिकाधिक होने के बावजूद वहां पर सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं। हिंदू प्रत्येक जाति धर्म के त्योहारों को महत्व देते हैं और उन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं । भारत ने किसी भी धर्म और जाति के साथ कोई भी भेदभाव नहीं किया जाता इसीलिए भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिख ,इसाई सभी जाति के लोग मिलजुलकर स्नेही पूर्वक रहते हैं।
सभा में कुछ ऐसे लोग भी थे जो स्वामी जी के कठोर विरोधी थे ।फिर उसने कहा – “स्वामी जी आप हिंदू और भारत के प्रशंसा के पुल बांधे जा रहे हैं। जरा, आप मुझे यह बताइए कि क्या भारत में हिंदुओं ने सभी किसी दूसरे देश पर विजय प्राप्त किया है? बल्कि दूसरे देशों के लोग उन पर हमला बोलते रहें ” । इस पर स्वामी जी मुस्कुराते हुए बोले-“ऐसा मत कहिए श्रीमान, उन्होंने बेवजह कभी किसी दूसरे देश को कष्ट देने के लिए आक्रमण नहीं किया और ना ही बेवजह उन्हें परेशान किया ।उन्होंने कभी किसी को अपने अधीन नहीं करना चाहा। किसी भी देश का गौरव दूसरे देश को बंधक बनाकर उनको परेशान करने में नहीं है, बल्कि उसे मुक्त करने में है। किसी भी देश के लोगो का शोषण करने में महानता नहीं समझना चाहिए ।”महानता इस बात में है कि विश्व के किसी भी देश को बंधक बनाए बिना अपने देश की विशाल संस्कृति सभ्यता महानता और साहित्य व सद्गुरु को दूसरों को बांटा जाए वास्तव में असली महानता यही है“
स्वामी जी ने अपने वक्तव्य को स्पष्ट करते हुए आगे कहा -” जिस तरह पिंजरे में बंद पक्षी घुटना दर्द का एहसास करता है। वही हाल पराधीन देश या व्यक्ति का होता है। इसके विपरीत पक्षी को पिंजरे से मुक्त करने में जो खुशी मिलती है। वही परोपकार और बंदी को मुक्त करने में मिलती है ।यकीन नहीं ,तो आज ही किसी निर्दोष पक्षी को पिंजरे में कैद करके और फिर से मुक्त करके देखिए, आपको असली प्रसन्नता महसूस होगी और वास्तव में असली खुशी इसी में है। ” स्वामी विवेकानन्द जी की बात पर सभा करतल ध्वनि से गूंज उठी और वह भी सिर झुका कर नीचे बैठ गया।