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Home»tenali raman stories»तेनालीराम की कहानी: जटाधारी सन्यासी
tenali raman stories

तेनालीराम की कहानी: जटाधारी सन्यासी

By Archana Dwivedi
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भारत में ऐसे कई महान व बुद्धिमान व्यक्ति हुए हैं, जिनकी बुद्धिमत्ता का लोहा हर किसी ने माना है। उनके व्यक्तित्व व चतुराई से जुड़े किस्से हर किसी को प्रभावित व रोमांचित करते हैं। भारत के इतिहास में ऐसे ही शख्स हुए हैं, जिनका नाम है तेनालीराम। तेनालीराम की बुद्धिमानी से भला कौन परिचित नहीं है। तेनालीराम की जीवनी विजयनगर नगर से ही शुरू होती है। जहां वह महाराज कृष्णदेव राय के सबसे प्रिय मंत्री हुआ करते थे। वह उन्हें हर उलझन से निकालने में मदद करते थे। तेनालीराम के किस्से तब भी प्रसिद्ध थे और आज भी हैं।

यही नहीं तेनाली राम से जुड़े ऐसे कई चुटीले किस्से हैं, जो न सिर्फ हर किसी को गुदगुदाते हैं, बल्कि हंसी-हंसी में एक सीख भी दे जाते हैं। आज ऐसी ही  तेनालीराम की एक कहानी हम आपके  लिए लेकर आए हैं। हमारी आज की कहानी का शीर्षक है-

जटाधारी सन्यासी

विजयनगर राज्य के राजा कृष्णदेव राय के मन में एक दिन बड़ा से शिवालय बनाने की इच्छा जगी। इस सोच के साथ उन्होंने अपने खास मंत्रियों को बुलाया और उन्हें शिवालय के लिए एक अच्छी सी जगह ढूंढने को कहा। कुछ ही दिनों में एक अच्छी सी जगह को शिवालय के लिए सभी ने चुन लिया। राजा ने भी उस जगह को पसंद किया और वहां काम शुरू करने की इजाजत दे दी।

मंदिर बनाने का पूरा जिम्मा राजा ने एक मंत्री को सौंप दिया। वो अपने साथ कुछ लोगों को लेकर उस जगह की साफ-सफाई करवाने लगा। तभी वहां खुदाई के दौरान शंकर देव की एक सोने की मूर्ति मिली। सोने की मूर्ति देखकर मंत्री के मन में लालच आ गया और उसने लोगों को कहकर उस मूर्ति को अपने घर में रखवा दिया।

साफ-सफाई करने वालों में से कुछ लोग तेनालीराम के खास थे। उन्होंने सोने की मूर्ति और मंत्री के लालच के बारे में तेनाली को बता दिया। इन सारी बातों का पता चलने के बाद भी तेनालीराम ने कुछ नहीं किया। वो सही वक्त का इंतजार करते रहे।

कुछ दिनों के बाद मंदिर के लिए सुनिश्चित की गई जगह पर भूमि पूजन करने का मुहूर्त निकाला गया। सब कुछ अच्छे से होने के बाद राजा दरबार में अपने मंत्रियों के साथ मंदिर के लिए मूर्ति बनवाने की बातचीत करने लगे। उन्होंने अपने सारे मंत्रियों से इसके बारे में राय मांगी। सबसे बात करने के बाद भी राजा मूर्ति को लेकर कुछ फैसला नहीं ले पाए।

राजा ने अगले दिन फिर अपने सारे मंत्रियों को दरबार में मूर्ति के बारे में चर्चा करने के लिए बुलाया। तभी एक जटाधारी संन्यासी दरबार में आया। संन्यासी को देखकर सबने उन्हें आदरपूर्वक बैठने के लिए कहा। एक आसन पर बैठकर जटाधारी संन्यासी ने राजा से कहा कि मुझे स्वयं महादेव ने यहां भेजा है। मैं जानता हूं कि आप लोग शिव मंदिर बनाने की सोच रहे हैं और वहां स्थापित करने के लिए मूर्ति कैसी हो उसपर यहां चर्चा हो रही है। इसी वजह से मैं यहां आया हूं।

जटाधारी संन्यासी ने आगे कहा कि भगवान शिव ने मुझे खुद आप लोगों की परेशानी दूर करने के लिए यहां भेजा है। राजा कृष्णदेव ने आश्चर्य से कहा कि खुद भगवान शिव ने आपको भेजा है। जटाधारी संन्यासी ने जवाब देते हुए कहा, “हां, स्वयं महाकाल ने मुझे भेजा है।” उन्होंने कहा कि शिव शम्भू ने अपनी एक सोने की मूर्ति आपके लिए भेजी है। जटाधारी संन्यासी ने अपनी उंगली एक मंत्री की तरफ दिखाते हुए कहा कि उस मूर्ति को भगवान ने इस मंत्री के घर में रखा है। इतना कहकर संन्यासी वहां से चले गए।

संन्यासी की बात सुनकर वो मंत्री डर के मारे कांप रहा था। उसके मन में हुआ कि इस जटाधारी को आखिर मूर्ति के बारे में कैसे पता चला होगा। अब उसे राजा के सामने यह बात स्वीकार करनी पड़ी कि खुदाई के दौरान उसे सोने की मूर्ति मिली थी

यह सब देखकर महाराज ने दरबार में नजर दौड़ाई और तेनालीराम को ढूंढा, लेकिन वो कहीं नजर नहीं आए। तभी कुछ देर बाद तेनालीराम दरबार में आ गए। उन्हें देखते ही सब जोर-जोर से हंसने लगे। तभी एक व्यक्ति ने कहा कि अच्छा! तो यही थे वो जटाधारी संन्यासी। आपने अपनी जटाएं और कपड़े तो उतार दिए, लेकिन माला उतारना भूल गए।

सबको हंसता देख महाराज भी मुस्कुराने लगे और तेनालीराम की तारीफ करते हुए मंदिर का काम करवाने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर सौंप दी।

कहानी से सीख

इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें कभी लालच नहीं करना चाहिए क्योंकि लालच और कपट से किया गया कार्य हमेशा आपके पाटन के रास्ते खोलता है इसलिए हमेशा सरल और अच्छे मन से कार्य करना चाहिए। ऐसा करने से लोगों के सामने कभी शर्मिंदा होना नहीं पड़ता।

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Archana Dwivedi
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I’m Archana Dwivedi - a dedicated educator and founder of an educational institute. With a passion for teaching and learning, I strive to provide quality education and a nurturing environment that empowers students to achieve their full potential.

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