कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी पर गुरुवार को भगवान श्री हरि के जागने का पर्व देवोत्थानी एकादशी मनाया जाएगा जिसे देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है । इसके अलावा इसका दूसरा नाम श्री हरि प्रबोधिनी एकादशी भी है। यह एकादशी अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन भगवान श्री हरि चार महीना के बाद अपने निद्रा अवस्था छोड़कर जागेंगे इसी दिन शालिग्राम और तुलसी जी का विवाह भी होता है।
क्या है मान्यता?
ऐसा माना जाता है की आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी पर भगवान 4 महीने योग्य निद्रा में चले जाते हैं इसके बाद देव उठनी एकादशी या हरिप्रबोधनी पर उनके जागने के साथ ही विवाह संबंधी सभी मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाएंगे।इसके अलावा इसी दिन तुलसी शालिग्राम विवाह भी होगा हुआ था इसलिए तुलसी शालिग्राम विवाह करने के बाद ही सभी मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।
शुभ मुहूर्त
ज्योतिषियों के अनुसार ऐसा बताया जा रहा है की एकादशी तिथि बुधवार रात 11:30 बजे से गुरुवार 9:01 बजे तक रहेगी इस दिन चातुर्मास समाप्त होगा। धर्म धर्म ग्रंथो के अनुसार साल भर की 24 एकादशियों में इस एकादशी का महत्व बहुत ज्यादा अधिक है इस दिन भगवान के नाम जप और कीर्तन के विशेष महत्व होती है भगवान की कृपा के लिए पूजा पाठ करना चाहिए। ऐसा माना जाता है भगवान की कृपा और उनके आशीर्वाद पाने हेतु जो व्यक्ति इस दिन तुलसी का पौधा लगता है उसके घर में सुख समृद्धि बढ़ती है और उसका वंश सफलता फूलता है । यानी इस दिन तुलसी का पौधा लगाना बहुत शुभ माना जाता है।
इस दिन घरों में भगवान विष्णु की पंचों प्रचार विधि स्नान रोली, चंदन ,अक्षत, पुष्प ,धूप, दीप और मिष्ठान अर्पित कर पूजा करनी चाहिए ।पूजा में गन्ना और सिंघाड़ा विशेष रूप से चढ़ाना चाहिए । यह भगवान को जगाने का उपक्रम होता है। इस दिन से बहुत से मंदिरों और परिवारों में भगवान को उन्हें वस्त्र पहनने की शुरुआत भी हो जाती है।
आज मनाया जायेगा तुलसी विवाह
कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के तुलसी विवाह भी होता है इस दिन घरों में तुलसी की पूजा की जाती है ।तुलसी की गमलों को गेरू से रंग कर उसे पर ईख से मंडप बनाया जाता है फिर आंगन में भगवान विष्णु के चरण कलात्मक रूप से अंकित किए जाते हैं । इसके अलावा आप शालिग्राम की बटिया भी रख सकते हैं। पूजा के बाद गमले पर साड़ी लपेट के चुनरी उड़ाई जाती है ।चूड़ी समेत श्रृंगार की सभी सामग्री भी चढ़ाई जाती है। फिर शालिग्राम जी का सिंहासन लेकर तुलसी के चारों ओर साथ में परिक्रमा करवाई जाती है इस प्रकार तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह संपन्न हो जाता है ।कहते हैं कि इस दुनिया पूजा विशेष रूप से करवाई जानी चाहिए क्योंकि इस भगवान का विशेष आशीर्वाद भी प्राप्त होता है एवं इस दिन से ही सभी मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाते हैं।