सबसे पहली बात तो यह है कि शिवरात्रि और महाशिवरात्रि दोनों एक नहीं है दोनों में बहुत बड़ा अंतर है । आपको बता दे कि प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को अमावस्या के एक दिन पहले की जो रात होती हैं वो,शिवरात्रि कहलाती है। अर्थात ये कि साल में 12 शिवरात्रि होती है, परंतु इन 12 शिवरात्रियों में फाल्गुन महीने की शिवरात्रि का विशेष महत्त्व है। जिसके कारण इसे महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है।
माना जाता हैं की एक कथा के अनुसार जब भगवान ब्रह्मा और विष्णु की उत्पत्ति हुई तो अपने आप को विश्व में अकेला पाकर दोनों में अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया जो कई वर्षों तक चलती रही और अंततः वे दोनों युद्ध को उद्धत हो गए। उसी समय महाशिवरात्रि के दिन उनके मध्य अग्नि का एक ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ। भगवान शिव ने कहा कि आपमें से जो भी मेरे छोर को ढूंढ कर आएगा वो ही श्रेष्ठ माना जाएगा। ब्रह्मा विष्णु जी को काफी कोशिशें के बाद भी ज्योतिर्लिंग का छोर नहीं मिला उसके पश्चात हार कर दोनों वापस आ गए और ब्रह्मा ने झूठ कह दिया कि वे इस लिंग का ऊपरी छोर छू कर आ रहे हैं। वहाँ उपस्थित केतकी के पुष्प ने भी ब्रम्हा का ही साथ दिया था । इसपर भगवान विष्णु ने उन्हें श्रेष्ठ मान कर उनकी पूजा करना आरम्भ कर दिया। तब भगवान शिव ने ब्रह्मा के झूठ के लिए विष्णु को दोनों में श्रेष्ठ बताया। उन्होंने केतकी के पुष्प को भी श्राप दिया कि उनकी पूजा में ये पुष्प निषिद्ध रहेगा।
भगवान शिव के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें…
* आपको बता दे की ब्रह्मपुराण के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही परमपिता ब्रह्म से भगवान शिव उत्पन्न हुए थे। बालक रूपी शंकर संसार में आते ही रोने लगे और इसी कारण उनका नाम रूद्र पड़ गया। उन्हें चुप करने के लिए ब्रह्माजी ने उन्हें एक एक करके 1008 नाम दिए जो कि रूद्र सहस्त्रनाम कहलाये।
* समुद्र मंथन के समय समुद्र से निकलने वाले विष को स्वयं शंकर जी ने महाशिवरात्रि के दिन अपने कंठ में धारण किया था।
* आपकी जानकारी के लिए बता दे की इसी दिन भगवान् शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था। इसी कारण इस दिन भगवान् शिव के विवाह का उत्सव भी मनाया जाता है। रात के समय भगवान शिव की बारात भी निकाली जाती है। अगले दिन प्रातः हवन कर व्रत समाप्त किया जाता है।
* पुराने के अनुसार चंद्र की 27 पतिया थी परंतु उनका सबसे अधिक स्नेह रोहिणी पर था इससे रुष्ट होकर उनकी बाकी पत्नियों ने अपने पिता दक्ष से जाकर चंद्र की शिकायत की क्रोध में आकर दक्ष ने चंद्र को क्षय होने का श्राप दे दिया। उसके पश्चात चंद्र ब्रह्मा जी के पास गए ब्रह्मा जी ने उन्हें महादेव की तपस्या करने की सलाह दी। भगवान् शिव ने प्रसन्न होकर चन्द्र को वरदान दिया कि उसकी कान्ति सदा के लिए समाप्त नहीं होगी और वह धीरे-धीरे बढ़कर अपनी पूर्ण कान्ति को प्राप्त करेंगे । चन्द्र को भगवान् शिव के दर्शन और ये वरदान महाशिवरात्रि के दिन ही मिला था।
*शास्त्रों के अनुसार देवी सती एवं देवी पार्वती की तपस्या भी महाशिवरात्रि के दिन ही पूर्ण हुई थी।
*महाशिवरात्रि के ही दिन महादेव ने उन्हें दर्शन देकर स्वयं को पति के रूप में पाने का वरदान दिया था।
महाशिवरात्रि वास्तव में तो मनुष्य को अज्ञान रुपी अमावस्या से ज्ञान रुपी पूर्णिमा तक में ले जाने का प्रतीक है।
।।ॐ नमः शिवाय।।ॐ नमः शिवाय।।ॐ नमः शिवाय।।ॐ नमः शिवाय।।ॐ नमः शिवाय।।ॐ नमः शिवाय।।ॐ नमः शिवाय।।ॐ नमः शिवाय।।ॐ नमः शिवाय।।ॐ नमः शिवाय।।ॐ नमः शिवाय।।
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