आज यानी 10 अप्रैल को नवरात्रि का दूसरा दिन है। वहीं इस दिन ब्रह्मचारिणी की पूजा- अर्चना की जाती है। चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल से शुरू हो गए हैं ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य है -‘ब्रह्म’ का अर्थ तपस्या है और ‘चारिणी’ का अर्थ आचरण करने वाली यानी तप का आचरण करने वाली देवी।
देवी के इस रूप को माता पार्वती का अविवाहित रूप माना जाता है। वहीं ब्रह्मचारिणी देवी की आराधना करने से भक्त के तप की शक्ति में वृद्धि होती है। साथ ही सुख- समृद्धि की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं मां ब्रह्मचारिणी कौन हैं और इनकी पूजा का क्या महत्व है…की पूजा का विधान
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान
नवरात्रि की पूजन में माता की पूजा स्वच्छता के साथ करनी चाहिए। नवरात्रि के 9 दिन घर में प्याज लहसुन का प्रयोग नहीं करना चाहिए। क्योंकि प्याज को तामसिक माना जाता है। इसका प्रयोग करने से माता रुष्ट हो जाती हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन भी पहले दिन के तरह ही जल्दी उठ जाएं और स्नान करके साफ- सुथरे वस्त्र धारण कर लें। वहीं पूजा की चौकी पर मांं ब्रह्मचारिणी का फोटो या चित्र स्थापित करें। साथ ही अगर आपके पास मांं ब्रह्मचारिणी का फोटो नहीं है तो आप नवदुर्गा का फोटो स्थापित कर सकते हैं। वहीं इसके बाद घूप और अगरबत्ती प्रज्वलित करें। साथ ही मां का षोडशोपचार पूजन करें। वहीं फिर मां को चीनी का भोग लगाएं और फल अर्पित करें। साथ ही अंत में दुर्गा सप्तशती का पाठ कर मां ब्रह्मचारिणी की आऱती करें।
मां ब्रह्मचारिणी का सिद्ध पूजन मंत्र
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
मां ब्रह्माचारिणी की कथा
पूर्वजन्म में ब्रह्मचारिणी देवी ने पर्वतों के राजा हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था। साथ ही नारदजी के उपदेश से भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए।
कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह आप से ही संभव थी। आपकी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही आपके पिता आपको लेने आ रहे हैं। मां की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है।
|| जय हो माता ब्रह्मचारिणी की||
अपमाता ब्रह्मचारिणी की आरती
जय अंबे ब्रह्मचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्म मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्मचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी। ।
जय जय जय मां ब्रह्मचारिणी माता||
मां ब्रह्मचारिणी को इस चीज का लगाएं भोग
आज नवरात्रि की दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी का विशेष दिन है इस दिन मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर का भोग लगाना चाहिए। शक्कर का भोग लगाया नहीं से व्यक्ति दीर्घायु होता है एवं माता की विशेष कृपा भी प्राप्त होती है । आज के दिन व्रत रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को एक कन्या को व्रत के प्रसाद का भोग करवाना चाहिए। वैसे नवरात्रि की पूजन में एक विधान और है कि नवरात्रि की नौ दिन एक कन्या का प्रतिदिन पूजन कर कन्या भोज करना चाहिए तथा नवमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन करना चाहिए। इससे माता प्रसन्न होती हैं।
मां ब्रह्मचारिणी का कवच
त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
अंत में क्षमा प्रार्थना करें
“आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं, पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरी” ।