हिंदू सनातन धर्म में छठ पूजा माता छठी की पूजा की जाती है दीपावली की 5 दिन की उत्सव के बाद यह पर्व मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में इस वर्ष छठ पूजा का पहला दिन 5 नवंबर से नहाय-खाय के साथ शुरू होगा और इस पर्व को पवित्रता से जुड़ा हुआ माना जाता है, क्योंकि इस शुभ दिन पर व्रती महिलाएं खुद को शुद्ध करती हैं और सात्विक और पवित्र तरीके से छठ व्रत की शुरुआत करती हैं. छठ पूजा का पहला दिन, जिसे ‘नहाय खाय’ कहा जाता है,
छठ पूजा की शुरुआत
छठ पूजा : हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को छठ पूजा का पहला दिन शुरू होता है और इसी दिन नहाय-खाय की परंपरा निभाई जाती है इस दिन कुछ खास रीति-रिवाजों का पालन करना शुभ माना जाता है।
इस पूजा का प्रारंभ स्नान ध्यान करके शुद्ध सात्विक भोजन करने से होता है।नहाय-खाय में व्रती महिलाएं या पुरुष चावल के साथ लौकी की सब्जी, छोले और मूली आदि का सेवन करते हैं. उपवास करने वाले व्रती के भोजन करने के बाद ही परिवार के बाकी सदस्य इस महाप्रसाद का सेवन करते हैं.
पूजा का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, इस साल नहाय-खाय 05 नवंबर 2024 को शुरू होगा। इस दिन सूर्योदय सुबह 6 बजकर 39 मिनट पर होगा और सूर्यास्त शाम 5 बजकर 41 मिनट पर होगा इस दौरान व्रती लोग पूजा कर सकते हैं। छठ पूजा में मान्यता है कि जिस प्रकार से उगते सूरज को अर्थ दिया जाता है वैसे ही शाम के समय डूबती सूरज को भी अधिक देकर इस पूजा को संपन्न किया जाता है। इस पूजा में डूबते सूरज को अर्थ देना शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है ऐसा माना जाता है कि शाम के समय डूबते सूरज को अर्थ देने से भगवान सूर्य और उनकी पत्नी प्रत्यूषा दोनों का आशीर्वाद मिलता है।
छठ पूजा करने का विधान
नहाय-खाय को छठ पूजा की शुरुआत और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति किसी पवित्र नदी या तालाब में स्नान करते हैं और प्रसाद के रूप में कच्चे चावल, चने और लौकी की सब्जी भोजन के तौर पर ग्रहण करते हैं।यह भोजन शुद्ध और पवित्र माना जाता है।
इस दिन नमक वाला भोजन केवल एक बार ही किया जाता है। इस दिन व्रत रखने वाले लोग शुद्धता और पवित्रता का पालन करते हुए दिन भर कई धार्मिक अनुष्ठान करते हैं लेकिन नहाय खाय की प्रक्रिया शुरू करने से पहले घर और किचन की पूरी सफाई की जाती है । इस पूजा में शुद्धता और सफाई का विशेष व महत्व है।
यह पूजा 4 दिनों तक चलती है। पहले दिन छठ पूजा की शुरुआत करके दूसरे दिन खरना की रस्म पूरी की जाती है और तीसरे दिन यानी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा की जाती है। छठ पूजा के चौथे दिन सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठ पर्व का समापन हो जाता है।
जाने डूबते सूरज को अर्थ देने का कारण
छठ पूजा में तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है, क्योंकि यह समय प्रतीकात्मक रूप से जीवन के संघर्षों और कठिनाइयों को समाप्त करने और नवजीवन का आरंभ करने का संकेत देता है। डूबते सूर्य की पूजा करके व्यक्ति जीवन में आने वाले अंधकार को दूर करने और नई ऊर्जा के साथ अगली सुबह का स्वागत करने की शक्ति प्राप्त करता है।
मान्यता है कि जब सूर्य देव अपनी पत्नी संज्ञा से अलग हुए, तो संज्ञा के रूप का विस्तार प्रत्यूषा और छाया के रूप में हुआ। प्रत्यूषा और छाया दोनों ही संज्ञा के विभिन्न रूप माने गए। सूर्य के अस्त होते समय प्रत्यूषा का प्रभाव बढ़ता है इसलिए, डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते समय प्रत्यूषा की भी पूजा होती है। यह पूजा समस्त जीव-जंतुओं को ऊर्जा प्रदान करने के लिए सूर्य देव के प्रति कृतज्ञता की अभिव्यक्ति है।
नहाए खाए छठ पूजा में होता है यह विधान..
नहाय खाय के दिन क्या होत है
- नहाय खाय वाले दिन व्रती लोग सुबह जल्दी उठकर गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करते हैं।
- यदि नदी न हो तो घर में ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं।
- स्नान के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है। इस दौरान भगवान सूर्य और छठी मैया से व्रत पूरा करने की प्रार्थना की जाती है।
- छठ का व्रत करने वाली व्रती महिलाएं भगवान सूर्य को जल अर्पित कर पूजा-अर्चना करें भगवान को भोग लगाएं
- गरीबों को विशेषकर अनाज और कपड़े दान दिए जाते हैं
- पूजा के लिए आवश्यक सभी सामग्री जैसे कि फल, फूल, दीपक, धूप आदि तैयार किए जाते हैं.
- शाम को फिर से स्नान किया जाता है और सूर्यास्त के समय सूर्य देवता को अर्घ्य दिया जाता है
- घर में या नदी के किनारे कमर तक पानी खड़े होकर छठी मैया की पूजा की जाती है
- दिन में सिर्फ एक बार सात्विक भोजन किया जाता है, जिसमें आमतौर पर फल, सब्जियां और दही शामिल होते हैं
- नहाय खाय वाले दिन बनने वाले भोजन में प्याज-लहसुन का इस्तेमाल करना वर्जित माना जाता है
- इस दिन कद्दू की सब्जी, लौकी, चने की दाल और भात यानी चावल बनाया जाता है और भगवान को भी चढ़ाया जाता है।
- पूजा करने के बाद सबसे पहले व्रती इसे खाएं उसके बाद ही परिवार के अन्य सदस्य इसे ग्रहण करने दें।
छठ पूजा का महत्व
हिंदू सनातन धर्म में छठ पूजा का विशेष महत्व है माता छठ की पूजा करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है एवं व्यक्ति को सुख समृद्धि एवं संपन्निता मिलती है।नहाय खाय का दिन शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। इस दिन से छठ पूजा का व्रत शुरू होता है। स्नान और व्रत रखने से शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं. यह दिन सूर्य देवता को समर्पित होता है, जो जीवन को नई दिशा प्रदान करता है। नहाय खाय के दौरान पूरी तरह से शुद्ध रहना आवश्यक है। सात्विक भोजन का सेवन करें और पूरे दिन धैर्य और शांति बनाए रखना होता है। पूजा के सभी विधि-विधानों का पालन किया जाता है।नहाय खाय के दिन व्रत रखने से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक शांति मिलती है और भगवान सूर्य और छठी मैया की कृपा प्राप्त होती है।