सुकरात (469-399 ईसा पूर्व) एक यूनानी दार्शनिक थे, जिन्हें पश्चिमी दर्शन के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से एक माना जाता है। वह एथेंस में रहते थे और अपने तर्कसंगत और प्रश्नोत्तरी विधि के लिए जाने जाते थे, जिसे सुकराती विधि कहा जाता है।
सुकरात के बारे में :
- सुकरात को पहले नैतिक दार्शनिकों में से एक माना जाता है।
- सुकरात ने कभी कुछ नहीं लिखा, बल्कि सरलता से जीवन जीने में विश्वास रखते थे।
- सुकरात को प्रश्न और उत्तर की सुकरात पद्धति से जाना जाता है।
- सुकरात को हेमलॉक जहर देकर मौत की सज़ा सुनाई गई थी।
- सुकरात ने निर्वासन में भागने के बजाय इस फ़ैसले को स्वीकार कर लिया।
- सुकरात ने देवत्व और आत्मा के बारे में चर्चा की है।
सुकरात के अनमोल विचार:
- “ज्ञान की शुरुआत अज्ञानता को स्वीकार करने से होती है।”
- “मैं जानता हूं कि मैं कुछ नहीं जानता।”
- “जीवन का उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना और उसे उपयोग में लाना है।”
- “अच्छाई और बुराई के बीच का अंतर समझना ही ज्ञान है।”
- “जीवन में सबसे बड़ा खतरा यह है कि हम अपने जीवन को जीने के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए जीते हैं।”
- “स्वतंत्रता का अर्थ है अपने विचारों और कार्यों के लिए जिम्मेदार होना।”
- “ज्ञान और समझ के बिना जीवन एक अंधकारमय जीवन है।”
- “अपने आप को जानना ही सबसे बड़ा ज्ञान है।”
- “जीवन में सबसे बड़ा सुख ज्ञान और समझ का सुख है।”
- “मृत्यु का भय जीवन को जीने से रोकता है।”
सुकरात की शिक्षाएं और विचार आज भी प्रासंगिक हैं और उन्हें दर्शन, नैतिकता, और जीवन के मूल्यों के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करते हैं।