बहुत समय पहले की बात है गुरु कुल में जब शिष्य जाते थे तो वह गुरु से अन्य प्रकार की शिक्षा ग्रहण करते थे गुरु उन्हें नाना प्रकार की अलग-अलग शिक्षाएं देते थे एवं उनके रहने और खाने का खाना खाने का भी बंदोबस्त करते थे। शिष्य गुरु की प्रत्येक बातें मानते थे एवं उनकी आज्ञा का पालन करते थे।
बात उन दिनों की है जब चरक ऋषि शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरुकुल गए थे। चरक ऋषि अपनी शिक्षा के दौरान गहन अध्ययन कठोर परीक्षा में लगे रहते थे । एक दिन उनके पैर में एक फोड़ा हो गया और इससे काफी दर्द होने लगा। उन्होंने अपनी इस समस्या के बारे में गुरु जी को बताया । तब गुरु जी ने तब गुरु जी पुनर्वसु आत्रेय ने उनकी बात ध्यान से सुनी और फिर मुस्कुराते हुए कहा है – ” वत्स, इस फोड़े का उपचार तो विशेष औषधि से संभव है।
ऋषि चरक जंगल में उसे औषधि की खोज के लिए निकल गए । चरक ऋषि के हजार बार प्रयास करने के बावजूद भी उन्हें औषधि नहीं मिली अतः हताश निराश हो कि वह अपने आश्रम को लौट आए । आने के बाद अपने गुरु से बोले – “गुरु जी, हमें औषधि नहीं मिली हमने तो पूरा जंगल ठीक से खोज डाला परंतु औषधि प्राप्त नहीं कर पाए।
तब उनके गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा -“वत्स,जिस औषधि की तुम खोज कर रहे थे वह तो आश्रम के पीछे ही मौजूद है। चरक ने हैरान होकर कहा – “गुरुजी, जब आपको पता था की औषधि आश्रम के पीछे ही है तो आपने मुझे जंगल में भेजा ही क्यों?
तब गुरु जी ने समझाया कि बेटा औषधि कहां मिली यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना यह जानना महत्वपूर्ण है कि तुमने उसे पाने के लिए कितने प्रयास किए कितनी बार सफल हुए और कितनी बार असफल हुए । तुम्हारे फोड़े का दर्द तुम्हारे लिए असहनीय था फिर भी तुमने हर नहीं मानी। बल्कि लगातार प्रयास करते रहे ,यही प्रयास और यही जिज्ञासा तुम्हें एक दिन महान वैद्य बनाएगी।
जीवन में प्रयास करते रहना चाहिए यदि आप खोज नहीं करेंगे तो नई चीजों को नहीं जान पाएंगे नई चीज नहीं सीख पाएंगे इसलिए जीवन में लगातार सीखते रहना चाहिए और चीजों को खोजने रहना चाहिए।
जीवन में मेहनत धैर्य लग्न बहुत जरूरी है। गुरु जी की बातों ने चरक ऋषि के मन में गहरी छाप छोड़ दी वह जीवन भर खोज में लग रहे और जीवन में एक महान वैद्य बने। आज चरक ऋषि को पूरा विश्व जानता है कि उन्होंने आयुर्वेद में किस प्रकार से अपना स्थान बनाया है।