परशुराम जयंती भगवान परशुराम के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। इसे हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है, जो अक्षय तृतीया के दिन भी होती है। इसे मनाने के कई महत्वपूर्ण कारण हैं:
परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है:
- भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में जन्म: परशुराम जी भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं, जो धर्म की रक्षा और अधर्म के नाश के लिए अवतरित हुए थे।
- अन्याय और अधर्म के विरोध के प्रतीक: उन्होंने अत्याचारी क्षत्रियों का 21 बार विनाश किया था ताकि समाज में संतुलन बना रहे और धर्म की स्थापना हो।
- अद्वितीय योद्धा और ब्रह्मण शक्ति का प्रतीक: वे ब्राह्मण कुल में जन्मे थे लेकिन क्षत्रिय धर्म निभाते हुए शक्तिशाली योद्धा बने। इससे यह संदेश मिलता है कि धर्म और न्याय के लिए कर्म प्रधान होता है।
- शस्त्र विद्या के गुरु: परशुराम जी को कई महान योद्धाओं का गुरु माना जाता है जैसे भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण। इसलिए उन्हें शस्त्र विद्या के आदर्श गुरु के रूप में पूजा जाता है।
- संस्कार और पराक्रम का आदर्श: उनका जीवन बल, भक्ति, ज्ञान और न्याय का आदर्श है, इसलिए उनका जन्मदिन श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है।
भगवान परशुराम विष्णु जी के छठे (6वें) अवतार माने जाते हैं।
विष्णु के दशावतारों में उनका क्रम:
- मत्स्य
- कूर्म
- वराह
- नरसिंह
- वामन
- परशुराम
- राम
- कृष्ण
- बुद्ध
- कल्कि (भविष्य में अवतार)
इस प्रकार, परशुराम जी छठवें स्थान पर आते हैं और उन्हें न्याय, शक्ति और शस्त्र विद्या का प्रतीक माना जाता है।