हरितालिका तीज का व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है।
यह मुख्य रूप से सुहागिन स्त्रियों और कन्याओं का व्रत है।
विवाहित महिलाएँ इसे पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य के लिए रखती हैं।
अविवाहित कन्याएँ इसे अच्छे पति की प्राप्ति के लिए करती हैं।
इस व्रत में महिलाएँ निर्जला उपवास (बिना जल और भोजन के) करती हैं और रात्रि को जागरण करती हैं।
हरितालिका नाम क्यों पड़ा?
“हरि” = अपहरण करना
“तालिका” = सखी (सहेली)
कथा के अनुसार, जब पार्वती जी के पिता हिमवान ने उनका विवाह विष्णु जी से तय कर दिया, तो पार्वती जी की सहेली (तालिका) ने उन्हें वहाँ से “हर” (अपहरण) करके वन में ले जाकर तप कराया।
यहीं से इसका नाम पड़ा – हरितालिका
हरितालिका तीज का व्रत सौभाग्य, अखंड सुहाग, अच्छे पति की प्राप्ति और शिव-पार्वती जैसे दाम्पत्य प्रेम की प्राप्ति के लिए किया जाता है। यह व्रत नारी के धैर्य, त्याग, भक्ति और संयम का प्रतीक है।
हरतालिका तीज पूजन का विधान

1.स्नान और संकल्प – प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। व्रत का संकल्प लें कि भगवान शिव-पार्वती की कृपा प्राप्त करने के लिए निराहार रहकर यह व्रत करेंगी।
2. पूजा का स्थान सजाना – मिट्टी से शिवलिंग बनाए जाते हैं, उनके साथ पार्वती माता और गणेश जी की प्रतिमाएँ भी स्थापित की जाती हैं।
3. व्रत उपवास – यह व्रत निर्जला उपवास के रूप में प्रसिद्ध है। महिलाएँ जल तक ग्रहण नहीं करतीं।
4. श्रृंगार और पूजन – सुहागिन स्त्रियाँ सोलह श्रृंगार करती हैं। पूजा में फूल, बेलपत्र, फल, मिष्ठान, सुहाग-सामग्री (चूड़ी, बिंदी, मेहँदी आदि) अर्पित की जाती हैं।
5. आरती और कथा-श्रवण – रात्रि को हरितालिका व्रत की कथा सुनी जाती है और शिव-पार्वती का विवाह-गीत गाए जाते हैं।
6. जागरण – रात्रि में जागरण करने की परंपरा है।
7. पारण – अगले दिन प्रातः ब्राह्मण या किसी सुहागिन स्त्री को भोजन करवाकर और दक्षिणा देकर स्वयं व्रत का पारण किया जाता है।
हरतालिका तीज व्रत करने का कारण
1.माता पार्वती का आदर्श –
पार्वती जी ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप और निर्जल उपवास किया। उनके तप से ही यह व्रत शुरू हुआ।
इसलिए यह व्रत माता पार्वती की भक्ति और धैर्य का स्मरण कराता है।
2. सौभाग्य और अखंड सुहाग –
सुहागिन स्त्रियाँ यह व्रत अपने पति की लंबी उम्र और दाम्पत्य सुख के लिए रखती हैं।
3. अच्छे वर की प्राप्ति –
अविवाहित कन्याएँ यह व्रत इसलिए करती हैं कि उन्हें शिव जी जैसे आदर्श पति की प्राप्ति हो।
4. त्याग और संयम की सीख –
यह व्रत निर्जला (बिना जल) रखा जाता है, जो तपस्या और संयम का प्रतीक है। यह स्त्री को आत्मबल और धैर्य प्रदान करता है।
व्रत का महत्व
1. धार्मिक महत्व –
इसे करने से भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त होती है और उनका आशीर्वाद अखंड सौभाग्य देता है।
2. आध्यात्मिक महत्व –
यह व्रत मन को अनुशासन और तप की शक्ति देता है। स्त्री अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करना सीखती है।
3. सामाजिक महत्व –
यह व्रत स्त्रियों के बीच आपसी प्रेम और एकता को बढ़ाता है।
सामूहिक कथा-श्रवण और जागरण से संस्कृति जीवित रहती है।
4. व्यावहारिक महत्व –
पति-पत्नी के बीच संबंध को मजबूत करने की मान्यता है।
परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
हरितालिका व्रत कथा

प्राचीन समय की बात है –
हिमालय की पुत्री पार्वती जी भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थीं। उन्होंने बचपन से ही यह निश्चय कर लिया था कि वे केवल महादेव को ही अपना पति बनाएँगी।
लेकिन उनके पिता हिमवान ने उनका विवाह भगवान विष्णु जी से तय कर दिया। विवाह की तैयारी होने लगी। यह सुनकर माता पार्वती बहुत दुखी हुईं, परंतु वे अपनी इच्छा अपने पिता को बताने में असमर्थ थीं।
तब उनकी सखी ने उन्हें सहारा दिया और कहा – “तुम चिंतित मत हो, मैं तुम्हें इस संकट से निकालूँगी।”
वह सखी माता पार्वती को अपने साथ लेकर घने वन (जंगल) में चली गई। वहाँ जाकर पार्वती जी ने कठोर तपस्या शुरू की। उन्होंने निर्जला व्रत रखा और भगवान शिव की आराधना में लीन हो गईं।
उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर वहाँ प्रकट हुए। उन्होंने माता पार्वती से कहा –
“हे देवी! मैं तुम्हारे तप से प्रसन्न हूँ। आज से तुम मेरी अर्धांगिनी होगी।”
इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ।
हरितालिका तीज व्रत की आरती

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा।। ॐ जय शिव ओंकारा।।
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसासन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजे।।
ॐ जय शिव ओंकारा…
दो भुज, चार भुज, दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते, त्रिभुवन जन मोहे।।
ॐ जय शिव ओंकारा…
अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै, भाल शशिधारी।।
ॐ जय शिव ओंकारा…
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे।।
ॐ जय शिव ओंकारा…
करके मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी, जगपालन कारी।।
ॐ जय शिव ओंकारा…
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✨ यह आरती करने से मन को शांति, पापों का नाश और शिवजी की कृपा प्राप्त होती है।