आज की रात्रि का आकाश एक अद्भुत और दुर्लभ खगोलीय घटना का साक्षी बनने जा रहा है। 7 सितम्बर 2025 को पूर्ण चंद्रग्रहण लग रहा है, जो भारत सहित अनेक देशों में दिखाई देगा। यह केवल वैज्ञानिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
⏰ ग्रहण का समय
आरंभ : रात्रि 9:58 बजे
मध्य (पूर्ण अवस्था) : रात्रि 11:41 बजे
समापन : प्रातः 1:26 बजे (8 सितम्बर)
कुल अवधि : लगभग 3 घंटे 28 मिनट
ग्रहण का ‘सूतक काल’ दोपहर 12:57 बजे से प्रारंभ होकर ग्रहण की समाप्ति तक प्रभावी रहेगा।
चंद्रग्रहण का प्रभाव

ज्योतिष के अनुसार यह ग्रहण कुम्भ राशि और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में घटित हो रहा है।
शुभ प्रभाव : मेष, वृश्चिक, धनु और मीन राशि वालों के लिए यह समय सकारात्मक ऊर्जा, कार्यों में प्रगति और नई संभावनाएँ ला सकता है।
सावधानी आवश्यक : वृषभ, मिथुन, सिंह, तुला, मकर और कुम्भ राशि के जातकों को स्वास्थ्य, आर्थिक या मानसिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
ध्यान रहे कि यह प्रभाव व्यक्ति की जन्मकुंडली के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकता है।
✅ ग्रहण काल में क्या करें?

1. मंत्रजप और ध्यान – महामृत्युंजय मंत्र, विष्णु मंत्र अथवा अपने इष्टदेव का नाम जप करना विशेष फलदायी है।
2. स्नान और शुद्धि – ग्रहण से पूर्व तथा ग्रहण समाप्ति के बाद गंगाजल मिलाकर स्नान करें और घर में गंगाजल का छिड़काव करें।
3. दान और पूजन – वस्त्र, अन्न अथवा धन का दान करना पुण्यकारी माना गया है।
4. पितृ कर्म – यह ग्रहण पितृ पक्ष की पूर्णिमा पर पड़ रहा है, अतः तर्पण और श्राद्ध कर्म विशेष फल प्रदान करते हैं।
5. गर्भवती महिलाओं के लिए – घर के भीतर ही रहें, धार्मिक पाठ करें और आत्मिक शांति बनाए रखें।
🙅♂️क्या न करें?🚫
भोजन बनाना या ग्रहण काल में भोजन करना वर्जित है।
किसी भी शुभ कार्य जैसे विवाह, यात्रा, गृहप्रवेश या नया कार्य प्रारंभ करने से बचना चाहिए।
मंदिर में प्रवेश, मूर्तियों का स्पर्श और तुलसी को छूना भी निषिद्ध है।
धारदार उपकरण जैसे चाकू या कैंची का प्रयोग टालना उचित माना जाता है।
पौराणिक दृष्टि से महत्व 🌛
पुराणों के अनुसार चंद्रग्रहण का कारण राहु और केतु माने जाते हैं। समुद्र मंथन के समय जब राहु ने अमृत पान कर लिया था, तब भगवान विष्णु ने उसका मस्तक काट दिया। परंतु अमृत का प्रभाव होने से वह अमर हो गया और समय-समय पर सूर्य और चंद्र को ग्रस लेता है। इसे ही हम ग्रहण के रूप में देखते हैं।
धार्मिक मान्यता है कि ग्रहण काल में जप-तप, स्नान और दान का प्रभाव हजारों गुना अधिक होता है। अतः यह समय नकारात्मकता से भयभीत होने का नहीं, बल्कि आत्मिक उन्नति का अवसर है।
निष्कर्ष
7 सितम्बर 2025 का चंद्रग्रहण हमें यह स्मरण कराता है कि प्रकृति और ब्रह्मांड की घटनाएँ केवल आकाशीय दृश्य नहीं, बल्कि हमारे जीवन और आचरण से भी जुड़ी होती हैं। यदि हम ग्रहण काल में संयम, साधना और श्रद्धा से आचरण करें, तो नकारात्मक प्रभाव घटकर सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित हो सकते हैं।