हर निर्माण के पीछे एक ज्ञान, कौशल और समर्पण छिपा होता है। विश्वकर्मा—वह दिव्य हस्ती जिनके हाथों से देवों के भवन, यंत्र और अस्त्र जन्म लेते हैं—उनके प्रति आदर स्वरूप मनाया जाने वाला पर्व ही विश्वकर्मा पूजा है। यह त्यौहार शिल्पकारों, कारीगरों, इंजीनियरों, मैकेनिकों और उन सभी का सत्कार है जो किसी न किसी रूप में बनाते-गढ़ते हैं।
इस वर्ष कब मनाएं? (तारीख और समय)
तिथि: इस वर्ष विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर 2025 (बुधवार) को पड़ रही है।
उपयुक्त समय (शुभ संकेत): सुबह-दोपहर के बीच पूजा करना श्रेष्ठ माना जाता है; कई स्थानों पर विजय-मुहूर्त दोपहर में आता है।
सुझाव: औधोगिक स्थानों पर प्रातः काम से पहले उपकरणों की सफाई कर, आरोग्य का ध्यान रखते हुए पूजन करें।
पूजा का अर्थ और महत्व
विश्वकर्मा पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं — यह कर्म और उपकरणों के प्रति सम्मान की शिक्षा है। औजारों का सम्मान करने से हम यह मानते हैं कि कामयाबी केवल निपुणता से नहीं, बल्कि उपकरणों की शुद्धता, रख-रखाव और समर्पण से भी आती है। पूजा से कर्मस्थल पर सुरक्षा, समृद्धि और अनुशासन की भावना स्थापित होती है।
रोचक कथा (संक्षेप में)
पुराणों में कहा जाता है कि विश्वकर्मा ही वे दिव्य शिल्पी हैं जिन्होंने देवताओँ के लिए अनगिनत आश्चर्यजनक वस्तुएँ बनाईं — स्वर्णलंकाएँ, दिव्य रथ, दिव्य अस्त्र और विशाल महल। उनके शिल्प से देवलोक सुसज्जित हुआ और मनुष्य-समुदाय को निर्माण कला का आशीर्वाद मिला। इसलिए श्रमिक और शिल्पियों ने उन्हें अपना संरक्षक माना और उनके सम्मान में यह व्रत-वंदन आरम्भ हुआ।
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पूजा-विधान (सरल, चरणबद्ध तरीके से)
1. तैयारी और स्वच्छता
अपने कार्यस्थल, उपकरण और हाथ–पैर अच्छी तरह धो लें। साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दें।
छोटे-मंदिर की तरह एक पूजा-कोना तय कर लें, जहाँ चित्र/मूर्ति रखी जा सके।
2. स्थापन और सामग्री
विश्वकर्मा जी की प्रतिमा/चित्र रखें। यदि संभव हो तो छोटे-छोटे औजार भी सामने सजाएं।
जरूरी सामग्रियाँ: फल, फूल, अक्षत (चावल), दीप, धूप, जल, गुड़/मिठाई, रोली/कुंकु्म, कलश (वांछित)।
3. प्रारम्भ: गणेश-प्रार्थना
सब कार्यों की शुरुआत 0 को स्मरण कर करें — “ॐ गम गणपतये नमः” मंत्र से आरम्भ अच्छा रहता है।
4. मुख्य पूजन
विश्वकर्मा जी को तिलक-अक्षत लगाएं, पुष्प चढ़ाएं, दीप और धूप अर्पित करें।
अपने उपकरणों पर भी हल्का अक्षत-फूल अर्पित कर उनका सम्मान करें।
कार्यस्थल के कोने-कोने में आज सुरक्षा एवं समृद्धि की प्रार्थना करें।
5. मंत्र पाठ और भजन0
अपनी श्रद्धानुसार विश्वकर्मा-सम्बंधी चलन-मान्य मंत्र या श्लोक बोलें/सुनें। (नीचे सरल मंत्र दिया गया है)।
यदि संभव हो तो संगीतमय भजन/कीर्तन करें — यह एकता और उत्साह बढ़ाता है।
6. दान-प्रसाद
पूजा के बाद प्रसाद बाँटें; छोटे कर्मचारियों/साथियों में मिठाई, फल दें।
सामूहिक कार्यस्थलों में पौधे लगाना या जरूरतमंदों को खाना खिलाना भी उत्तम कार्य है।
7. समापन
आरती कर के सभी औजारों पर शुद्ध जल छिड़कें और उन्हें सम्मानपूर्वक फिर कार्य में लगाएँ।
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सरल
सरल मंत्र और श्लोक (उपयोग हेतु)
छोटी सी आराधना/मंत्र:
“ॐ विश्वकर्मणे नमः” — यह सरल और प्रभावकारी है; 11–21 बार जप कर सकते हैं।
थोड़ा विस्तृत श्लोक:
“ॐ विश्वकर्माय विद्महे, शिल्पनिधये धीमहि, तन्नो विश्वकर्मा प्रचोदयात्।”
(आप चाहें तो इन्हें प्रार्थना की शुरुआत या अंत में बोल सकती हैं।)
विश्वकर्मा जी की आरती (संक्षिप्त-सरल स्वरूप — समूह-पूजन के लिए)
जय विश्वकर्मा, जय विश्वकर्मा,
शिल्प गुण के दाता, नित नवरत्न प्रभा।
औजारों के रचयिता, सर्व कृति के स्वामी,
सत्कार कर अतुलित, करुणा के सुमामी॥
(आरती-घुमाएँ, दीप दिखाएँ)
यदि आपका कार्यशाला कार्यचलन में तेज-गति से मशीनें चलती हों, तो पूजा करते समय मशीनों को बंद रखकर सुरक्षित दूरी बनायें।
जो लोग स्वास्थ्य कारणों से उपवास न रख सकें, वे हार्दिकता और सेवा-भाव से भाग लें — कर्म ही प्रमुख है।
पूजा के बाद उपकरणों का निरीक्षण कर लें — टूटी पीसी/रशनें ठीक कर दें; यह भी पूजा का हिस्सा है।
सामूहिक पूजा में सभी कर्मचारियों को शामिल करके मनोबल बढ़ाएँ — यह टीम-भाव को भी मजबूत करता है।
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आधुनिक प्रासंगिकता — क्यों जरूरी है यह पूजा आज भी?
आज के युग में विश्वकर्मा पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि काम-साधना, सुरक्षित कार्यस्थल और उपकरणों के प्रति जवाबदेही का प्रतीक भी है। मास्टर-कटर, इंजीनियर, तकनीशियन और श्रमिक—जब मिलकर अपने औजारों को पूजते हैं, तो वे संकेत देते हैं कि उनका काम निष्ठा, सुरक्षा और सतत देखभाल पर आधारित है। यह छोटे-छोटे कदम उद्योग में दक्षता और दीर्घायु लाते हैं।
निष्कर्ष (संक्षेप में)
विश्वकर्मा पूजा एक सरल परन्तु गहन संदेश देती है: जिस चीज़ से हम बनाते हैं, उसी का सम्मान करें। यह पर्व श्रम-गौरव, तकनीकी निष्ठा और सामूहिक सुरक्षा का प्रतीक है। श्रद्धा के साथ की गई पूजा उपकरणों को दीर्घायु और कार्यों को सफल बनाती है — और यही वास्तविक त्यौहार की सार्थकता है।