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Home»festival»Vat Savitri Vrat 2021: कब है वट सावित्री व्रत? जानें व्रत कथा और इसका महत्व
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Vat Savitri Vrat 2021: कब है वट सावित्री व्रत? जानें व्रत कथा और इसका महत्व

By Archana DwivediUpdated:June 13, 2021
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Vat Savitri Vrat 2021: वटवृक्ष क्या होता है ? इससे संबंधित पूजा की विधि एवं पूजा करने का उद्देश्य-

फ़िकस बेंघालेंसिस, जिसे आमतौर पर बरगद , बरगद का अंजीर और भारतीय बरगद के रूप में जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप का एक पेड़ है।

वटवृक्ष(बरगद का पेड़) का अर्थ एवं महत्व

बरगद बहुवर्षीय विशाल वृक्ष है। इसे ‘वट’ और ‘बड़’ भी कहते हैं। यह एक स्थलीय द्विबीजपत्री एंव सपुष्पक वृक्ष है। इसका तना सीधा एंव कठोर होता है।

पुराणों के अनुसार बरगद के पेड़ में त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास भी माना जाता है। इसलिए कहते हें कि इस पेड़ की पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष जिसका अर्थ है बरगद का पेड़, का खास महत्व होता है। इस पेड़ में लटकी हुई शाखाओं को सावित्री देवी का रूप माना जाता है।

वट वृक्ष में किस देवता का वास होता है?

वटवृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु व अग्रभाग में शिव का वास माना गया है. यह पेड़ लंबे समय तक अक्षय रहता है, इसलिए इसे ‘अक्षयवट’ भी कहते हैं. अखंड सौभाग्य और आरोग्य के लिए भी वटवृक्ष की पूजा की जाती है।

वट वृक्ष पूजा का धार्मिक महत्व व लाभ-

धार्मिक मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु, सुख-समृद्घि और अखंड सौभाग्य देने के साथ ही हर तरह के कलह और संताप मिटाने वाली होती है। वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व के बोध को भी दर्शाता है। वट वृक्ष ज्ञान व निर्माण का प्रतीक है।

2021 में वट वृक्ष पूजा किस दिन है?

इस दिन सुहागन स्त्रियां बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. वट सावित्री व्रत सौभाग्य प्राप्ति के लिए एक बड़ा व्रत माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल वट सावित्री व्रत 10 जून दिन गुरूवार को रखा जाएगा.

वटवृक्ष पूजा विधि –

इस दिन विवाहित स्त्रियां अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए वटवृक्ष की पूजा करती हैं. वृक्ष की परिक्रमा करते समय इस पर 108 बार कच्चा सूत लपेटा जाता है. महिलाएं सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं. सावित्री की कथा सुनने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, और पति के संकट दूर होते हैं।

वट वृक्ष पूजा करने का कारण व महत्व

वट वृक्ष यानी बरगद का पेड़ देव वृक्ष माना जाता है. देवी सावित्री भी इस वृक्ष में निवास करती हैं. मान्यताओं के अनुसार, वटवृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति को पुन: जीवित किया था. तब से ये व्रत ‘वट सावित्री’ के नाम से जाना जाता है।

वट सावित्री व्रत की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सावित्री, मद्रदेश में अश्वपति नाम के राजा की बेटी थी। विवाह योग्य होने पर सावित्री को वर खोजने के लिए कहा गया तो उसने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान का जिक्र किया। ये बात जब नारद जी को पता चली तो वे राजा अश्वपति से बोले कि सत्यवान अल्पायु हैं और एक वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी।

ये जानकर भी सावित्री विवाह के लिए अड़ी रही। सावित्री के सत्यवान से विवाह के पश्चात सावित्री सास-ससुर और पति की सेवा में लगी रही। नारद जी ने मृत्यु का जो दिन बताया था, उस दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ वन में चली गई।

वन में सत्यवान जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगा, उसके सिर में असहनीय दर्द शुरू हो गया।

वो सावित्री की गोद में अपना सिर रखकर लेट गया। कुछ देर बाद सावित्री ने देखा यमराज अनेक दूतों के साथ वहां पहुंचे और वे सत्यवान के अंगुप्रमाण जीव को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए।

सावित्री को अपने पीछे आते देख यमराज ने कहा, हे पतिपरायणे! जहां तक मनुष्य साथ दे सकता है, तुमने अपने पति का साथ दे दिया. अब तुम लौट जाओ। सावित्री ने कहा, जहां तक मेरे पति जाएंगे, वहां तक मुझे जाना चाहिए. ये मेरा पत्नी धर्म है. यमराज ने सावित्री की धर्मपरायण वाणी सुनकर वर मांगने को कहा। सावित्री ने कहा, मेरे सास-ससुर अंधे हैं, उन्हें नेत्र-ज्योति दें।

यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर उसे लौट जाने को कहा, किंतु सावित्री उसी प्रकार यमराज के पीछे चलती रही यमराज ने उससे पुन: वर मांगने को कहा। सावित्री ने वर मांगा, मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य उन्हें वापस मिल जाए। यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर उसे फिर से लौट जाने को कहा, परंतु सावित्री नहीं मानी। सावित्री की पति भक्ति व निष्ठा देखकर यमराज पिघल गए। उन्होंने एक और वर मांगने के लिए कहा तब सावित्री ने वर मांगा, मैं सत्यवान के पुत्रों की मां बनना चाहती हूं। कृपा कर आप मुझे यह वरदान दें।

सावित्री की पति-भक्ति से प्रसन्न हो इस अंतिम वरदान को देते हुए यमराज ने सत्यवान को पाश से मुक्त कर दिया और अदृश्य हो गए। सावित्री अब उसी वट वृक्ष के पास आई वट वृक्ष के नीचे पड़े सत्यवान के मृत शरीर में जीव का संचार हुआ और वह उठकर बैठ गया। सत्यवान के माता-पिता की आंखें ठीक हो गईं और उन्हें उनका खोया हुआ राज्य वापस मिल गया।

इसी प्रकार से वृक्ष पूजा करने वाले प्रत्येक नारी को सावित्री की भांति ही पति के प्रति प्रेम और समर्पण के साथ प्रत्येक नारी को यह वट वृक्ष पूजा करनी चाहिए। जिससे उसका पति दीर्घायु होता है एवं भगवान उस नारी से प्रसन्न होते हैं और अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान देते हैं।

शुभ मुहूर्त:

वट सावित्री अमावस्या – गुरुवार, 10 जून 2021

अमावस्या तिथि प्रारंभ- 9 जून 2021 दोपहर 01:57 से

अमावस्या तिथि समाप्त- 10 जून 2021 शाम 04:22 तक

व्रत पारण तिथि- 11 जून 2021 शुक्रवार

कोरोना महामारी में कैसे करें पूजा?

कोरोना काल के चलते अगर आप बरगद के पेड़ की पूजा करने नहीं जा सकते हैं तो अपने घर पर ही त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पूजा कर सकते हैं।

इसके अलावा, बरगद के पेड़ की टहनी तोड़ कर उसे गमले में लगा लें और विधिवत इसकी पूजा करें। पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल और धूप का इस्तेमाल करें।

सबसे पहले वट वृक्ष की पूजा करें। फिर सावित्री-सत्यवान की कथा सुने और दूसरों को भी सुनाए। अब फिर भीगा हुआ चना, कुछ धन और वस्त्र अपनी सास को देकर आशीर्वाद लें। पूजा के बाद किसी जरूरतमंद विवाहित स्त्री को सुहाग का सामान दान करें।

इसके अलावा, किसी ब्राह्मण को वस्त्र और फल भी दान कर सकते हैं।

ऐसी ही और भी महत्वपूर्ण पूजा विधियों एवं उनके महत्व को जानने के लिए जुड़े अपने वेबसाइट Indiamitra.com के साथ।

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