सार
प्रत्येक वर्ष 30 मार्च को शून्य अपशिष्ट प्रबंधन दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाए जाने का उद्देश्य अधिक टिकाऊ और अपशिष्ट मुक्त दुनिया के निर्माण को बढ़ावा देना है।
विवरण
आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय शून्य अपशिष्ट दिवस 2023 के विषय – ‘कचरे को कम करने और उसके प्रबंधन के लिए टिकाऊ और पर्यावरणीय रूप से मजबूत प्रथाओं को प्राप्त करना’ के अनुरूप स्वच्छोत्सव- अंतर्राष्ट्रीय शून्य अपशिष्ट दिवस: कचरा मुक्त शहरों के लिए रैली का आयोजन किया गया था । वर्ष 2024 में भी शून्य अपशिष्ट दिवस का आयोजन किया जा रहा है ।
शुरूआत
14 दिसंबर 2022 को संयुक्त राष्ट्र संघ की साधारण सभा ने एक प्रस्ताव पास कर 30 मार्च को “शून्य अपशिष्ट का अंतर्राष्ट्रीय दिवस” प्रत्येक वर्ष मनाने का निर्णय किया।
दुनियाभर के युवाओं , संस्थाओं, नागरिकों,चिंतकों आदि स्टेक होल्डर्स से आह्वान किया गया कि राष्ट्रीय,राज्य,उपमहाद्वीपीय, क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर सतत विकास की अवधारणा के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए “शून्य अपशिष्ट” प्रबंधन की दिशा में पहल करनी अत्यंत जरूरी है।
यह प्रस्ताव तुर्की और 105 अन्य देशों द्वारा सह-प्रायोजित था और कचरे से निपटने के प्रस्तावों की एक श्रृंखला का हिस्सा है।
इसका उद्देश्य शून्य-अपशिष्ट पहलों को बढ़ावा देकर सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा में सभी उद्देश्यों और लक्ष्यों को प्राप्त करना है.
अपशिष्ट प्रबंधन पृथ्वी व मानवता के स्वास्थ्य के लिए क्यू जरूरी है तथा इसकी भयावहता कितनी है इसको कुछ उदाहरणों द्वारा समझ सकते है:-
संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण कार्यक्रम के आंकड़ों के अनुसार शिपिंग कंटेनर्स में पैकिंग मटेरियल से एक वर्ष में ही इतना वेस्ट उत्पन्न होता है कि पृथ्वी को उससे 25 बार लपेटा जा सकता हैं।यदि हमने कोई ठोस उपाय नहीं किए तो सन् 2050 तक म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट का उत्पादन 3.8 बिलियन टन वार्षिक होगा।
मानव 430 मिलियन टन प्लास्टिक प्रति वर्ष उत्पन्न कर रहा है जिसका दो तिहाई हिस्सा जल्द ही वेस्ट में तब्दील हो जाता हैं क्योंकि इसकी लाइफ अत्यल्प होती हैं।
अंतर्राष्ट्रीय शून्य अपशिष्ट दिवस का लक्ष्य: –
“शून्य अपशिष्ट” के लक्ष्यों में सभी अपशिष्ट शामिल हैं जैसे :-खाने का अपशिष्ट, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन व इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट ।
अपशिष्ट प्रबंधन पृथ्वी व मानवता के स्वास्थ्य के लिए क्यू जरूरी है तथा इसकी भयावहता कितनी है इसको कुछ उदाहरणों द्वारा समझ सकते है:- संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण कार्यक्रम के आंकड़ों के अनुसार शिपिंग कंटेनर्स में पैकिंग मटेरियल से एक वर्ष में ही इतना वेस्ट उत्पन्न होता है कि पृथ्वी को उससे 25 बार लपेटा जा सकता हैं।यदि हमने कोई ठोस उपाय नहीं किए तो सन् 2050 तक म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट का उत्पादन 3.8 बिलियन टन वार्षिक होगा।
मानव 430 मिलियन टन प्लास्टिक प्रति वर्ष उत्पन्न कर रहा है जिसका दो तिहाई हिस्सा जल्द ही वेस्ट में तब्दील हो जाता हैं क्योंकि इसकी लाइफ अत्यल्प होती हैं।
संसाधनों की उपयोगिता में तेजी से वृद्धि के कारण तीन तरह के संकट पृथ्वी पर बढ़ते जा रहे हैं जो 1.जलवायु परिवर्तन संकट 2.प्रकृति एवं जैव- विविधता का संकट व 3. प्रदूषण है।
पृथ्वी पर मानव की सतत विकास की अवधारणा के विपरीत गतिविधियों के कारण उत्पादन व अंधाधुंध उपभोग की आदतों ने पृथ्वी को इस वैनाशिक संकट की तरफ धकेला है।
अपशिष्ट संकट की भयावहता का अंदाजा आप इस तथ्य से भी लगा सकते है कि घरेलू, लघु व्यवसाय,और नागरिक सेवा प्रदाताओं द्वारा पैकेजिंग , इलेक्ट्रॉनिक,प्लास्टिक व खाने की वस्तुओं से प्रति वर्ष 2.1 बिलियन से 2.3 बिलियन म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट उत्पन्न हो रहा है जिसे दुनियाभर की अपशिष्ट प्रबंधन सेवाओं द्वारा निपटान में विफलता हाथ लग रही है।इससे हमे यह चेतावनी मिलती है कि मानवता को इस पृथ्वी पर यदि स्वस्थ वातावरण प्रदान करना है तो हमे अपशिष्ट संकट से निपटने हेतु आपात स्थिति मानकर कार्य करना जरूरी है।
उपाय
अपशिष्ट प्रबंधन के लिए अपशिष्ट का संकलन,फिर उसे रीसाइकल करना तथा उसके अन्य स्वस्थ वेस्ट प्रबंधन उपाय आज की आपात जरूरत है।
अपशिष्ट संकट से निपटने हेतु अपशिष्ट को हमे अब एक संसाधन की तरह मानना होगा।जितना संभव हो सके दुनियाभर में लोगो में यह जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए कि अपशिष्ट को संसाधन की तरह मानकर उसे जितना संभव हो रीसाइकल करे,वापस उपयोग में लाए और उत्पाद ड्यूरेबल तथा ऐसे पदार्थों से बनाए जाने को प्राथमिकता देने की जरूरत है जिनका पर्यावरण पर नुकसानदायक प्रभाव कम से कम हो जिससे कि हवा , मिट्टी व जल का प्रदूषण कम होगा और सीमित व कीमती अमूल्य प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव कम होगा जिससे हमे संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत विकास की अवधारणा के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
दुनियाभर के समुदायों,समाजों ,सरकारों व अन्य स्टेक होल्डर्स को अपशिष्ट प्रबंधन के लिए धन का प्रबंधन व साथ ही नीति ऐसी बनानी होगी जो मार्जिनेलाइज्ड समूहों यथा :-शहरी गरीबों, महिलाओं व युवाओं को नुकसान न पहुंचाए या उनकी जिंदगी पर विपरीत प्रभाव न डाले या कम से कम डाले।
उपभोक्ताओं को भी उनकी आदतों में बदलाव के लिए जागरूक करना अत्यंत आवश्यक है ताकि वे उत्पादों का पुनः उपयोग ज्यादा से ज्यादा करे,रीसाइकल को बढ़ावा दे और हो सके तो किसी भी उत्पाद को डिस्पोज करने से पहले रिपेयर करके एक बार जरूर स्तेमाल करे।
भारतीय संस्कृति सदैव पृथ्वी और मानवता के साथ साथ तमाम जीवो के संरक्षण के लिए सनातन काल से ही प्रयासरत है लेकिन वर्तमान में पश्चिम की भोगवादी संस्कृति से भारतीय संस्कृति में भी उनके दुष्प्रभाव आए हैं और वे निश्चय ही विनाशकारी है जिन्हे हम जितना जल्दी त्याग दे उतना ही दुनिया का भला होगा और हम हमारी संस्कृति की परंपराओं के अनुसार चलकर न सिर्फ देश बल्कि दुनिया को भी एक दिशा दे सकते है जिससे सतत विकास की अवधारणा के लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिलेगी और मानवता का भला होगा।
अपशिष्ट संकट से दुनिया का कोई कोना अछूता नहीं रहा है अतः अपशिष्ट प्रबंधन सेवाओं को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी संपूर्ण पृथ्वी वासियों की है।यदि ईमानदारी से सामूहिक व प्रभावी प्रयास किए जाएंगे तो निश्चय ही हम अपशिष्ट संकट के इस ग्लोबल दुष्प्रभाव से दुनिया को बचा पाएंगे।