महान गणितज्ञ रामानुजन जिन्हे आज हर कोई जानता है। रामानुजन ने हजारों साल पुराने रहस्य सुलझाएं जिन्हें अभी तक लोगों ने नहीं जाना था ।
रामानुजन की कहानी और उनके जीवन के बहुत सारे हिस्से हैं कि कैसे एक छोटे से गांव के बेहद गरीब परिवार में जन्मा ये लड़का बचपन से ही जीनियस था। घर की दीवारों और दरवाजों से लेकर, दुआरे के चबूतरे और स्कूल की हरेक ब्लैकबोर्ड तक पर हर वक्त गणित के सवाल हल करता रहता था। वो विज्ञान, इतिहास, अंग्रेजी और भूगोल की कक्षा में भी सिर्फ गणित ही पढ़ता रहता था।
आईए जानते हैं उन महान गणितज्ञ रामानुजन की जीवन के बारे में जिन्होंने अपने जीवन में अद्भुत रहस्य को उलझा कर एक विशेष नाम प्राप्त किया
रामानुजन का जीवन परिचय
रामानुजन का जन्म एक गरीब परिवार में 22 दिसम्बर, 1887 को तमिलनाडु के इरोड़ कस्बे में हुआ था। उनके पिता एक साड़ी की दुकान पर क्लर्क का काम करते थे। रामानुजन के जीवन पर उनकी माँ का बहुत प्रभाव था। जब वे 11 वर्ष के थे, तो उन्होंने SL Loney द्वारा लिखित गणित की किताब की पूरी मास्टरी कर ली थी।
संघर्षमय रहा जीवन
हाईस्कूल में गणित और अंग्रेजी में अच्छे अंक मिले थे तो स्कॉलरशिप भी मिल गई। लेकिन फिर बारहवीं में पहुंचने तक गणित के प्रति दीवानगी ऐसी बढ़ी कि बाकी विषय उन्होंने पढ़ना ही छोड़ दिया। नतीजा ये हुआ कि गणित छोड़ बाकी हर विषय में फेल हो गए।स्कॉलरशिप मिलनी बंद हो गई।परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि जीनियस बेटे को अपने दम पर पढ़ा पाते। प्राइवेट परीक्षा दिलवाने की कोशिश हुई तो वहां भी गणित छोड़ बाकी हर विषय में फेल हो गए।
रामानुजन की जिंदगी का वो पूरा दौर बहुत तकलीफों और संघर्षों भरा था पांच रुपए महीना में गणित का ट्यूशन पढ़ाकर वो अपना खर्चा चलाते तभी उनका विवाह हो गया। नौकरी करनी चाही तो नौकरी मिली नहीं क्योंकि वो तो बाहरवीं पास भी नहीं थे।
गणित का ज्ञान तो जैसे उन्हें ईश्वर के यहाँ से ही मिला था। 14 वर्ष की उम्र में उन्हें मेरिट सर्टीफिकेट्स एवं कई अवार्ड मिले। इसके अलावा रामानुजन को वर्ष 1904 में जब उन्होंने टाउन हाईस्कूल से स्नातक पास की, तो उन्हें के. रंगनाथा राव पुरस्कार, प्रधानाध्यापक कृष्ण स्वामी अय्यर द्वारा प्रदान किया गया।
जाने विवाह और नौकरी के बारे में…
वर्ष 1909 में उनकी शादी हुई, उसके बाद वर्ष 1910 में उनका एक ऑपरेशन हुआ। घरवालों के पास उनके ऑपरेशन हेतु पर्याप्त राशि नहीं थी। एक डॉक्टर ने उनका मुफ्त में यह ऑपरेशन किया था। इस ऑपरेशन के बाद रामानुजन नौकरी की तलाश में जुट गए। वे मद्रास में जगह-जगह नौकरी के लिए घूमे। इसके लिए उन्होंने ट्यूशन भी किए। वे पुनः बीमार पड़ गए।
इसी बीच वे गणित में अपना कार्य करते रहे। ठीक होने के बाद, उनका सम्पर्क नेलौर के जिला कलेक्टर-रामचन्दर राव से हुआ। वह रामानुजन के गणित में कार्य से बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने रामानुजन की आर्थिक मदद भी की।
जाने कैसे बने रामानुजन गणितज्ञ …
वर्ष 1912 में उन्हें मद्रास में चीफ अकाउण्टेंट के ऑफिस में क्लर्क की नौकरी भी मिल गई। वे ऑफिस का कार्य जल्दी पूरा करने के बाद, गणित का रिसर्च करते रहते, इसके बाद वे इंग्लैण्ड चले गए। वहाँ उनके कार्य को खूब प्रशंसा मिली। उनके गणित के अनूठे ज्ञान को खूब सराहना मिली।
वर्ष 1918 में उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज कैम्ब्रिज का फेलो (Fellow of Trinity College Cambridge) चुना गया। वह पहले भारतीय थे, जिन्हें इस सम्मान (Position) के लिए चुना गया।
बहुत मेहनती एवं धुन के पक्के थे। कोई भी विषम परिस्थिति, आर्थिक कठिनाइयाँ, बीमारी एवं अन्य परेशानियाँ उन्हें अपनी ‘धुन’ से नहीं डिगा सकीं। वे अन्ततः सफल हुए।
आज उन्हें विश्व के महान् गणितज्ञों में शुमार किया जाता है। 32 वर्ष की छोटी उम्र में ही इस प्रतिभाशाली व्यक्ति का देहावसान हो गया।