हिंदी व्याकरण में स्त्रीलिंग-पुल्लिंग पढ़ा था, बचपन की यह कुछ खास यादें हैं। याद है? चलिए, एक छोटा सा टेस्ट हो जाए—शिक्षक का स्त्रीलिंग? शिक्षिका। लेखक? लेखिका। नर्तक? नर्तकी। वैज्ञानिक? … हां, अब अटक गए ना? चित्रकार? वकील? निदेशक? जवाब नहीं सूझ रहा, क्योंकि शायद इनका स्त्रीलिंग शब्द बना ही नहीं!
असल में, जब तक लड़कियों ने इन पेशों में कदम रखना शुरू किया, तब तक शायद सिर्फ शिक्षक-शिक्षिका और लेखक-लेखिका जैसे गिने-चुने विकल्प ही प्रचलन में आए थे। लेकिन अब सोचिए, अगर कोई महिला इंजीनियर है, तो वह हिंदी में क्या कहलाएगी? इंजीनियरनी? इंजीनियरी? इंजीनियरा? या फिर निदेशक का स्त्रीलिंग निदेशिका होगा? जवाब साफ है- ऐसा कोई शब्द है ही नहीं!
पर इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हिंदी में इनके शब्द नहीं बने, तो महिलाएं इन पेशों में आगे नहीं बढ़ीं! डॉक्टर, चित्रकार, वकील, इंजीनियर, सैनिक- हर जगह महिलाओं ने अपनी जगह बनाई। यहां तक कि पायलट, ड्राइवर और एस्ट्रोनॉट तक बन गईं, मगर हिंदी में अब भी इनके लिए कोई स्वीकृत स्त्रीलिंग नहीं है।
अब आप कह सकते हैं कि इनमें से कुछ शब्द जेंडर न्यूट्रल होते हैं, तो फिर स्त्रीलिंग शब्दों की ज़रूरत ही क्या है? ठीक है, मान लिया! लेकिन जब आप किसी को यह कहते सुनते हैं—कवि का कहना है- तो आपके दिमाग में कौन-सी छवि आती है? एक पुरुष कवि, है ना? कभी सुना है—कवि आ रही है? शायद नहीं! क्योंकि भाषा अब भी पितृसत्ता (Patriarchy) के सांचे में ढली हुई है।