जीवन परिचय
मानवीय मूल्यों के पोषक संत रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फ़रवरी 1836 को बंगाल प्रांत स्थित कामारपुकुर ग्राम में हुआ था। इनके बचपन का नाम गदाधर था। पिताजी के नाम खुदीराम और माताजी के नाम चन्द्रा देवी था।उनके भक्तों के अनुसार रामकृष्ण के माता पिता को उनके जन्म से पहले ही अलौकिक घटनाओं और दृश्यों का अनुभव हुआ था। गया में उनके पिता खुदीराम ने एक स्वप्न देखा था जिसमें उन्होंने देखा की भगवान गदाधर ( विष्णु के अवतार ) ने उनसे कहा -” वे उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे।” उनकी माता चंद्रमणि देवी को भी ऐसा एक अनुभव हुआ था उन्होंने शिव मंदिर में अपने गर्भ में रोशनी प्रवेश करते हुए देख इनकी बालसुलभ सरलता और मंत्रमुग्ध मुस्कान से हर कोई सम्मोहित हो जाता था। रामकृष्ण परमहंस एक परम आध्यात्मिक संत थे।संत रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानंद जी के गुरु थे। जिन्होंने विवेकानंद जी को मानवी जीवन के मूल्यों का सार समझाया।
दस प्रेरक विचार
1.ईश्वर सभी इंसानों में है लेकिन सभी इंसानों में ईश्वर का भाव हो ये जरुरी हो नही है, इसलिए हम इन्सान अपने दुखो से पीड़ित है।
2.ईश्वर दुनिया के हर कण में विद्यमान है और ईश्वर के रूप को इंसानों में आसानी से देखा जा सकता है इसलिए इंसान की सेवा करना ईश्वर की सच्ची सेवा है।
3.. जब तक हमारे मन में इच्छा है, तब तक हमे ईश्वर की प्राप्ति नही हो सकती है।
4.जब फूल खिलता है तो मधुमक्खी बिना बुलाये आ जाती है ठीक इसी प्रकार जब हम प्रसिद्ध होंगे तो लोग बिना बताये हमारा गुणगान करने लगेगे।
5.पानी और उसका बुलबुला एक ही चीज है उसी प्रकार जीवात्मा और परमात्मा एक ही चीज है अंतर केवल यह है कि एक परिमीत है दूसरा अनंत है एक परतंत्र है दूसरा स्वतंत्र है।
6.जिसने आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर लिया उस पर काम और लोभ के विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
7.अगर तुम पूर्व की ओर जाना चाहते हो तो पश्चिम की ओर मत जाओ।
8.दुनिया वास्तव में सत्य और विश्वास का एक मिश्रण है।
9.जिस व्यक्ति में ये तीनो चीजे हैं, वो कभी भगवान को प्राप्त नहीं कर सकता या भगवान की द्रष्टि उस पर नहीं पड़ सकती। ये तीन हैं –लज्जा, घृणा और भय।
10.वह मनुष्य व्यर्थ ही पैदा होता है, जो बहुत कठिनाईयों से प्राप्त होने वाले मनुष्य जन्म को यूँ ही गवां देता हैं और अपने पूरे जीवन में भगवान का अहसास करने की कोशिश ही नहीं करता हैं।