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Home»PSU COMPINIES»PSU (पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग): जाने क्या है पीएसयू और इसका महत्व
PSU COMPINIES

PSU (पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग): जाने क्या है पीएसयू और इसका महत्व

By Archana DwivediUpdated:June 27, 2022
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पीएसयू का फुल फॉर्म पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग होता है जिसे हिंदी में सार्वजनिक क्षेत्रक उपक्रम कहा जाता है।

ऐसी व्यावसायिक ईकाइयाँ जिनका नियंत्रण और प्रबंधन सेंट्रल गवर्मेंट, स्टेट गवर्मेंट या स्थानीय सरकार द्वारा किया जाता है, उन्हें सार्वजनिक क्षेत्रक उपक्रम अर्थात पीएसयू कहा जाता है ।

सार्वजनिक उपक्रमों या पीएसयू के अन्तर्गत राष्ट्रीयकृत निजी क्षेत्र के उद्यम जैसे- भारतीय गैस प्राधिकरण (गेल), LIC बैंक, GIC बैंक, हिन्दुस्तान मशीन टूल्स, NABARD, आदि आते है ।सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में बहुत ही अहम भूमिका है। अतः इस प्रकार सरकार के स्वामित्व वाले सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी पूंजी की भागीदारी 51 प्रतिशत या इससे अधिक हो सकती है । भारत में पीएसी संस्थाओं को कई रूप में वर्गीकृत किया गया है आइए जानते हैं कि पीएसी कितने प्रकार के होते हैं

पीएसयू के प्रकार

सार्वजनिक उपक्रमों को तीन समूहों में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार है-

  • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम (PSE)
  • केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम (CPSEs)
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSB)

PSU इक्विटी का अधिकांश भाग सरकार के पास होता है यह पूर्ण रूप से सरकार के पास नहीं होती है लेकिन उसके मेजर शेयर होल्डर यदि सरकार के पास होते हैं तो इसे सरकारी कंपनी के नाम से जाना जाता है। जिस कंपनी के शेयर होल्डर सरकार के पास नहीं होते उसे प्राइवेट कंपनी का आ जाता है। अगर 51% शेयर होल्डर्स सरकार के पास नहीं है तो प्राइवेट कंपनी के अंतर्गत ही आएगी।

पीएसयू में आवेदन करने की उम्र सीमा क्या है?

इसके लिए एक निश्चित उम्र सीमा निर्धारित की गई है यदि आप इसमें आवेदन के लिए इच्छुक है तो इसके नियमों के अनुसार आपकी आयु 22 वर्ष से 40 वर्ष के बीच में होनी चाहिए।

पीएसयू का वर्गीकरण तीन प्रकार से किया गया है ।सार्वजनिक उपक्रमों अर्थात पीएसयू के प्रारूप इस प्रकार है-

पीएसयू का वर्गीकरण व प्रारूप

सार्वजनिक क्षेत्रक उपक्रम

1.विभागीय उपक्रम (Departmental Undertaking)

इस प्रकार के संगठनों का संचालन और नियंत्रण सरकार के एक मंत्रालय के अधीन होता है | विभागीय उपक्रम के स्वरुप का प्रयोग मुख्य रूप से आवश्यक सेवाएं जैसे- रेलवे, डाक सेवाएँ आदि के को मैनेज करनें के लिए किया जाता है।

2.सार्वजनिक निगम (Public Corporation)

इसके लिए वित्त व्यवस्था का प्रबंध सरकार द्वारा किया जाता है। सार्वजनिक निगम को पार्लियामेंट या राज्य विधानमण्डल द्वारा क़ानून बनाकर पारित किया जाता है | इस कानून में निगम के कार्य, उनके अधिकार और उसे संचालित करनें की प्रक्रिया को स्पष्ट किया जाता है | राज्य व्यापार निगम, एलआईसी आदि संगठन इसी श्रेणी में आते हैं।

3. सरकारी कंपनी (Government Company)

ऐसी कम्पनियां जिनमें 51 प्रतिशत या इससे अधिक की भागीदारी सरकार की होनें पर वह कम्पनी सरकारी होती है। इसमें सेल, गेल, ओएनसीजी आदि कंपनियां इसी श्रेणी में आती हैं।      

अनुच्छेद 25 की कंपनियां (Article 25 Companies)

ऐसी कंपनियों का जिक्र कंपनी एक्ट के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत आता है, जिसके कारण इन्हें अनुच्छेद 25 की कंपनियां कहा जाता है । इस प्रकार की कंपनियों का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं बल्कि महत्वपूर्ण सेवाएं उपलब्ध कराना होता है।

पीएसयू की आवश्यकता (PSU Required)

इस प्रकार की समस्याओं को देखते हुए सार्वजनिक क्षेत्र का खाका विकसित किया गया और देश नें योजनाबद्ध आर्थिक विकास की नीतियां बनाकर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विकास की परिकल्पना को अपनाया। सरकार की भागीदारी होनें से लोगो का विश्वास बढ़ता गया और नये-ने उद्यम स्थापित होनें लगे | जिससे देश को आर्थिक और सामाजिक रूप से लाभ मिलने के साथ ही लोगो को रोजगार की प्राप्ति होनें लगी | इस प्रकार देश में बेरोजगारी की समस्या में कमी आने लगी और देश उन्नति की तरफ बढ़ने लगा

पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग (पीएसयू) का महत्व

  • अर्थव्यवस्था के आधारभूत उद्योगों को बढ़ावा देना ।
  • निजी एकाधिकार के प्रभाव को सीमित करना ।
  • आर्थिक असमानता को कम करना
  • बेरोजगारी में कमी लाना
  • आवश्यक वस्तुओं का कीमत को नियंत्रित करना राजनीति के निजी क्षेत्रों में लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना।
  • जनकल्याण के कामों पर ध्यान ध्यान देना ।
  • राष्ट्रीय विकास में सहयोग देना
  • संतुलित क्षेत्रीय विकास।
  • निर्यात प्रवर्तन ।

यह भी पढ़े: क्या होती है महारत्न, नवरत्न और मिनिरत्न कंपनियां

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