“जग के नाथ अर्थात जगन्नाथ” कोई और नही बल्की स्वयं भगवान नारायण के 8 वे अवतार भगवान श्री कृष्ण ही है । द्वापर युग के बाद भगवान श्री कृष्ण पुरी में आकर वास करने लगे थे। जगन्नाथ पुरी भगवान के चार धामों में से एक धाम है। यहां पर भगवान श्री कृष्णा अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ विराजे हुए हैं।
“बंगाल की खाड़ी”के पूर्वी किनारे पर बसी एक नगरी पुरी बहुत यू पवित्र नगरी है ।आज जिसे हम उड़ीसा कहते है वो उड़ीसा प्राचीनकाल में उत्कल प्रदेश के नाम से जाना जाता था। पुराने के हिसाब से इसे धरती का वैकुंठ भी माना जाता है। जगन्नाथ पुरी को और भी कई नाम से जाना जाता है , जैसे कि:- श्रीक्षेत्र, श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरि ।

आपको बता दें कि…ब्रह्म पुराण और स्कंद पुराण के अनुसार यहां पर भगवान विष्णु नीलमाधव के रूप में अवतरित हुए थे , और वे सबर जनजाति के परम पूज्य देवता भी बन गए थे । ज्येष्ठ पूर्णिमा से लेकर आषाढ़ पूर्णिमा तक सबर जाति के दैतापति जगन्नाथजी की सारी रीतियां करते हैं। जगनाथ पुरी का लगभग 2 कोस क्षेत्र बंगाल की खाड़ी में डूब चुका है। इसका सिर वाला क्षेत्र पश्चिम दिशा में है जिसकी रक्षा स्वयं महादेव करते हैं।
जगन्नाथ में लहरता है …हवा के विपरीत ध्वज
श्री जगन्नाथ मंदिर के ऊपर लगा लाल ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में ही लहराता है । यह भी काफी आश्चर्यचकित बात है कि मंदिर के ऊपर लगा ध्वज मानव द्वारा शाम के समय उल्टा चढ़कर बदला जाता है। यह ध्वज इतना भव्य है कि जब यह लहराता है तो सब देखते ही रह जाते हैं। ध्वज पर भगवान शिव जी का चंद्र बना हुआ है।
जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी रहस्यमई बातें -:
• 9वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने यहां की यात्रा की थी और यहां पर उन्होंने चार मठों में से एक गोवर्धन मठ की स्थापना की थी।
• पांचों पांडव भी अज्ञातवास के दौरान भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने गए थे। श्री मंदिर के अंदर पांडवों का स्थान अब भी मौजूद है।
•महान सिख सम्राट महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर को प्रचुर मात्रा में स्वर्ण दान किया था, जो कि उनके द्वारा स्वर्ण मंदिर, अमृतसर को दिए गए स्वर्ण से कहीं अधिक था।