धार्मिक ग्रंथो में एकादशी का महत्व विशेष तौर पर माना गया है। एकादशी में भगवान विष्णु की पूजा का माहात्म्य है।एकादशी पर व्रत और दान के साथ ही भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है। इस एकादशी का व्रत करने से हर तरह की परेशानियां और जाने-अनजाने में किए गए पाप खत्म हो जाते हैं।
आज 5 अप्रैल 2024 को पाप मोचन एकादशी मनाई जा रही है। इस व्रत के दौरान कुछ बातों का खासतौर से ध्यान रखा जाता है। जो कि ग्रंथों में बताई गई है। पद्म, स्कंद और विष्णु धर्मोत्तर पुराण का कहना है कि एकादशी व्रत में अन्न नहीं खाना चाहिए। अन्य के स्थान पर फल या व्रत में खाने योग्य चीज/ (फलाहार) खाए जा सकते है।
एकादशी व्रत करने का नियम
एकादशी व्रत करने के अपने कुछ नियम होते हैं जिनका व्रत करने वाले व्यक्ति प्रत्येक द्वारा पालन करना होता है नियमों का पालन करने वाले उपासक को हो को पूर्ण फल मिलता है।
आईए जानते हैं कि क्या एकादशी व्रत के नियम
इस दिन सुबह जल्दी उठकर नहाएं और स्नान के बाद तुलसी के पौधे में जल चढ़ाएं।
2. भगवान विष्णु के सामने व्रत और दान का संकल्प लेना चाहिए।
3. दिनभर कुछ नहीं खाना चाहिए। संभव न हो सके तो फलाहार कर सकते हैं।
4. दिन में मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर दान करना चाहिए।
5. किसी मंदिर में भोजन या अन्न का दान करना चाहिए।
6. सुबह-शाम तुलसी के पास घी का दीपक जलाना चाहिए और तुलसी की परिक्रमा करनी चाहिए।
7. शाम को भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए।
पापमोचनी एकादशी व्रत करने का शुभ मुहूर्त
पापमोचिनी एकादशी 5 अप्रैल यानी आज
एकादशी तिथि प्रारंभ- 4 अप्रैल यानी कल दोपहर 4 बजकर 14 मिनट से
एकादशी तिथि समापन- 5 अप्रैल यानी आज दोपहर 1 बजकर 28 तक
पारण का समय – 6 अप्रैल यानी कल सुबह 6 बजकर 5 मिनट से सुबह 8 बजकर 37 मिनट तक एकादशी व्रत कथा
पापमोचनी एकादशी व्रत कथा
पुराणों के अनुसार स्वंय श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पापमोचनी एकादशी व्रत कथा का महत्व बताया था। कथा के अनुसार चैत्ररथ नामक एक बहुत सुंदर वन था।जहां अप्सरायें विहार किया करती थीं। इसी वन में मेधावी नाम के ऋषि तपस्या करते थे। मेधावी ऋषि शिव भक्त थे लेकिन अप्सराएं शिवद्रोही कामदेव की अनुचरी थी, इसलिए एक समय कामदेव ने मेधावी ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए मंजू घोषा नामक अप्सरा को भेजा।
मंजूघोषा नृत्य, गायन और सौंदर्य से मेधावी मुनि की तपस्या में बाधा डालने में सफल हुई।
अप्सरा की सुंदरता पर ऋषि मोहित हो गए और सालों तक उसके साथ विलास में समय व्यतीत किया। काफी समय बीत जाने के बाद मंजूघोषा ने वापस जाने के लिए ऋषि से अनुमति मांगी, तब मेधावी ऋषि को अपनी भूल और तपस्या भंग होने का आत्मज्ञान हुआ। उन्होंने अपने तपोबल से ये जाना कि कैसे मंजूघोषा ने उनकी तपस्या भंग की थी।
अप्सरा के इस कृत्य पर ऋषि क्रोधित हुए और उन्होंने मंजूघोषा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया। इसके बाद अप्सरा ऋषि के पैरों में गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा।मंजूघोषा के बार-बार विनती करने पर मेधावी ऋषि ने उसे श्राप से मुक्ति पाने के लिए बताया कि पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से तुम्हारे समस्त पापों का नाश हो जाएगा और तुम पुन: अपने पूर्व रूप में आ जाओगी। मेधावी ऋषि ने भी पाप किया था ऐसे में उनके सारे पुण्य नष्ट हो गए।
प्रायश्चित के लिए ऋषि मेधावी ने भी पापमोचनी एकादशी का व्रत किया. इस प्रकार पापमोचनी एकादशी का व्रत करके अप्सरा मंजूघोषा श्राप से मुक्त होकर पुन: स्वर्ग में अप्सरा बनकर लौट गई और और मेधावी ऋषि के भी सभी पाप खत्म हो गए।
इस प्रकार से जो कोई भी भगवान विष्णु के पापमोचनी एकादशी के व्रत को करता है कथा पढ़ता है ,कथा सुनता है तो दूसरों को सुनाता है भगवान विष्णु उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं एवं सदैव उनकी रक्षा करते हैं।