सनातन धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। । यह एकादशी, जयंती एकादशी भी कहलाती है। इसका यज्ञ करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।
एकादशी का व्रत करना अधिकतम माना जाता है या व्रत भगवान विष्णु के लिए किया जाता है जिससे भगवान अपने भक्त को आशीर्वाद देते हैं और पापो से मुक्त करते हैं। पापियों के पाप नाश करने के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन मेरी (वामन रूप की) पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं।
परिवर्तिनी एकादशी की निश्चित तिथि
इस साल परिवर्तिनी एकादशी का व्रत 14 सितंबर शनिवार को रखा जाएगा। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने और व्रत करने से आपको सभी पापों से मुक्ति मिलने के साथ ही मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।
मान्यता के अनुसार इस तिथि पर भगवान विष्णु पाताललोक में चातुर्मास की योग निद्रा के दौरान करवट बदलते हैं। इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं। परिवर्तिनी एकादशी को जलझूलनी एकादशी और पद्मा एकादशी भी कहा जाता है।
परिवर्तनी एकादशी में पूजा करने का विधान व महत्व
परिवर्तिनी एकादशी के दिन व्रत करने से व्रती के जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और उनको अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन स्नान दान करने का भी विशेष महत्व माना जाता है।
एकादशी के व्रत को करने से भगवान विष्णु आपके आर्थिक कष्ट दूर करते हैं और आपके घर को सुख समृद्धि से भर देते हैं। इस व्रत करने वालों को भगवान सांसारिक जीवन के बाद अपने चरणों में स्थान देते हैं। इस साल परिवर्तिनी एकादशी के दिन रवि योग शुभ संयोग भी बना है। इस शुभ योग में व्रत की पूजा करने से आपको हर कार्य में मनचाहा फल प्राप्त होता है।
परिवर्तनी एकादशी की व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत काल में पांडव भाइयों में सबसे बड़े युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत के बारे में पूछा. तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें ब्रह्मा जी के नारद मुनि को सुनाई एक कथा सुनाई. नारद जी ने ब्रह्मा जी से पूछा था कि भाद्रपद की एकादशी को भगवान विष्णु के किस रूप की पूजा की जाती है. ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को बताया कि भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान हृषिकेश की पूजा होती है. उन्होंने बताया कि सूर्यवंश में मान्धाता नाम का एक चक्रवती और महा प्रतापी राजर्षि हुआ करता था. उसके राज्य में सभी सुखी थे. एक बार कर्म फल के कारण उसके राज्य में तीन वर्ष तक अकाल पड़ा. प्रजा के निवेदन पर मान्धाता अकाल का कारण जानने निकल पड़े. इस दौरान उनकी मुलाकात अंगिरा ऋषि से हुई और उन्होंने अपनी परेशानी उन्हें बताई और उसका कारण जानना चाहा.
अंगिरा ऋषि ने बताया कि सत्य युग में केवल ब्राह्मण ही तपस्या कर सकते हैं लेकिन तुम्हारे राज्य में एक शुद्र तपस्या कर रहा है. मान्धाता ने कहा मैं तपस्या करने के लिए उसे दंड नहीं दे सकता. तब ऋषि अंगिरा ने उन्हें भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत (Ekadashi Vrat) रखने की सलाह दी. इसके बाद मान्धाता लौट आए और प्रजा के साथ भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत रखा. इसके बाद राज्य में वर्षा होने लगी और सभी समस्याओं का अंत हो गया. भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि परिवर्तिनी या पद्मा एकादशी का व्रत रखने और कथा सुनने से सभी प्रकार के पाप कट जाते हैं.