लालची ब्राह्मण
राजा कृष्णदेवराय की माँ बहुत धार्मिक थीं। एक दिन वह आईं और उन्होंने राजा से कहा कि वह अगली सुबह ब्राह्मणों को पके आमों की भेंट देना चाहती हैं। राजा ने अपने सेवक से आम लाने को कहा। उसी रात, राजा की माँ की मृत्यु हो गई। राजा बहुत दुखी थे, लेकिन उन्हें अपनी माँ की आखिरी इच्छा याद थी।
राजा ने सभी आवश्यक धार्मिक संस्कार किए। अंतिम दिन, उन्होंने कुछ ब्राह्मणों को बुलाया और उनसे अपनी माँ की अंतिम इच्छा पूरी करने का सुझाव मांगा। ब्राह्मण लालची थे, चर्चा के बाद, उन्होंने राजा से कहा कि उनकी माँ की आत्मा तभी शांत होगी जब राजा उन्हें सोने से बने आमों को दान करेंगे।
राजा ने अगली सुबह ब्राह्मणों को सोने के आमों को देने के लिए आमंत्रित किया। तेनालीराम ने जब यह सुना तो वो एक बार में ही समझ गए कि ब्राह्मण लालची थे। उन्होंने ब्राह्मणों को सबक सिखाने के लिए अपने घर बुलाया।
सभी ब्राह्मण राजा से सोने के बने आमों को पाकर बहुत खुश थे। अगले दिन तब वे तेनाली के घर गए तो उन्होंने सोचा कि वो भी उन्हें कुछ अच्छा दान देंगे। लेकिन जब वो लोग उनके घर के अंदर गए, तो उन्होंने तेनाली को हाथ में गर्म लोहे की पट्टी के साथ खड़े देखा।
ब्राह्मण यह देखकर हैरान थे। तेनाली ने उन्हें बताया कि उनकी माँ गठिया के रोग से पीड़ित थी। वह दर्द कम करने के लिए गर्म छड़ से अपने पैरों को जलाने की कामना करती थी। इस प्रकार, वह ब्राह्मणों के पैरों को जलाना चाहते थे ताकि उनकी माँ की आत्मा को शांति मिले।
ब्राह्मण तेनाली की चाल को समझ गए। शर्मिंदगी के साथ उन्होंने सोने के आमों को तेनाली को वापस लौटा दिया और वहाँ से चले गए। तेनाली ने राजा को सभी सोने के आम लौटा दिए और उन्हें बताया कि कैसे अपने लालच के चलते राजा को ब्राह्मणों ने फंसाया बनाया था।
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से मैं हमें या शिक्षा मिलती है कि हमें कभी लालच नहीं करना चाहिए और भगवान ने हमें जो कुछ भी दिया है उसमें खुश रहना चाहिए।