सार
कनपुरिया बुकनू को कौन नहीं जानता। कानपुर में बुकनू अब एक धरोहर की तरह हो गई है सब्जी मसाला के गढ़ नयागंज से इसे बनाने की शुरुआत की गयी।अब मोहल्ला-मोहल्ला कुटीर उद्योग के रूप में विकसित हो गया है। पूर्वी व मध्य उत्तर प्रदेश के गांवों से निकला ये उत्पाद अब कई ब्रांडों में उपलब्ध है।
विस्तार
बुकनू के निर्माण की शुरुआत कानपुर के नयागंज बाजार से मानी जाती है। पूर्वी व मध्य उत्तर प्रदेश के गांवों में वर्षों से परंपरागत अम्मा के खल्लर-कुटना (मसाला छोटे-छोटे टुकड़ों में करने का पात्र) से निकलकर बुकनू अब मोहल्ला-मोहल्ला कुटीर उद्योग और कई नामचीन ब्रांडों के रूप में वैश्विक पहचान पाकर लाखों को रोजगार दे रहा हैं।
गांवों में बुजुर्ग महिलाओं की बुकनू में जड़ी-बूटियों का मिश्रण भी रहता था। अब प्रतिस्पर्धा के दौर में नमक की मात्रा बढ़ाने से कई बार वैसी गुणवत्ता नहीं होती। हालांकि, कुछ विश्वसनीय कुटीर उद्यमी व ब्रांड गुणवत्ता बरकरार रखे हैं। सिलबट्टा और सिलौटी (गांवों में मसाला, चटनी पीसने का पात्र) की जगह भले मिक्सर-ग्राइंडर ने ले ली है, बाकी कुछ नहीं बदला। नयागंज सब्जी मसालों की बिक्री का गढ़ होने से यहीं से बुकनू की शुरुआत मानते हैं
जाने किन-किन देशों में लोकप्रिय है बुकनू
न्यूनतम 80-100 रुपये लेकर 2000 रुपये प्रतिकिलो तक बुकनू की बिक्री होती है। दरें बुकनू में पड़े मसालों के हिसाब से क्षेत्र और बदले स्वरूप से तय होती हैं। प्रदेश से दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र समेत दूसरे प्रांतों और अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, मारीशस जैसे तमाम देशों तक गए लोग इस स्वाद को वहां ले गए। इसके बाद बाकी लोगों की जुबां पर चढ़ गया। तैयार किए जाने की प्रक्रिया ने ही इसे बुकनू नाम दिया। इसके कानपुर में ही 25 नामचीन ब्रांड हैं, जबकि प्रदेश भर में 10 हजार से अधिक कुटीर उद्यमी अलग-अलग क्षेत्रों में उत्पादन करते हैं