प्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु को कौन नहीं जानता है जगदीश चंद्र बसु ना कि केवल एक वैज्ञानिक थे बल्कि वह बहुत ही बड़े देशभक्त और समाज सुधारक भी रह चुके हैं उन्होंने बड़े-बड़े शोध कार्य भी किए हैं।
वैज्ञानिक रह चुके जगदीश चंद्र बसु कोलकाता में उन दिनों विज्ञान के शोध में लगे हुए थे और कोलकाता यूनिवर्सिटी के प्रेसीडेंसी कॉलेज में फिजिक्स पढ़ाते थे।उस कॉलेज में कुछ अंग्रेज अध्यापक भी विज्ञान पढ़ाया करते थे पद और योगिता समान होने के बावजूद उन्हें अंग्रेज अध्यापकों से कम से वेतन दिया जाता था क्योंकि वह अंग्रेज थे और जगदीश चंद्र बसु एक भारतीय व्यक्ति थे। जगदीश चंद्र बसु से यह अन्याय सहन नहीं होता था। वह सोचते थे जब हम दोनों की योग्यता समान है तो दोनों टीचर्स को अलग-अलग वेतन क्यों दिया जाता है। हमें अंग्रेज अध्यापकों के बराबर वेतन प्राप्त करने का अधिकार है।
जब जगदीश चंद्र बसु ने छेड़ी जंग
जगदीश चंद्र बसु इस अन्याय को सहन नहीं करना चाहते थे उनका मानना था यदि हम सब की योग्यता समान है तो हमारे साथ अन्याय क्यों किया जा रहा है इसके लिए उन्होंने कई बार शिकायत भी की परंतु उसे पर कोई भी एक्शन नहीं लिया गया। यानी कि अंग्रेज अधिकारियों पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा। जब जगदीश चंद्र बसु को यह लगा कि अन्याय और सहना पाप है तो उन्होंने सरकार को पत्र लिखकर इस बारे में सूचना दी।
सरकार ने बसु का पत्र तो पढ़ा परंतु इस पर ध्यान नहीं दिया। वसु ने विरोध के तौर पर हर महीने प्राप्त होने वाले वेतन को यह कहकर लौटाना शुरू कर दिया कि जब उन्हें अंग्रेज अध्यापकों के बराबर वेतन नहीं दिया जाता है तो वह यह वेतन स्वीकार नहीं करेंगे।
डॉ वसु का स्वाभिमान
जगदीश चंद्र बसु के स्वाभिमानी होने के कारण उन्होंने वेतन लेने से तो मना कर दिया परंतु इसका यह प्रभाव पड़ा कि वसु के घर में आर्थिक तंगी आ गई उन्हें पैसों की कमी पड़ने लगी अध्ययन और शोध कार्य बिना धन के तो नहीं हो सकते थे इसके लिए वसु थोड़ा सा परेशान रहने लगे परंतु इसमें सबसे बड़ा सहयोग उनके पद धर्मपत्नी ने किया। उनकी पत्नी उन्हें समझाया कि आप बिल्कुल भी परेशान ना हो हम आपकी पूरी मदद करेंगे आप अपना शोध कार्य बीच में ना छोड़े। समस्याएं तो आती जाती रहती हैं।
वासु की पत्नी ने उन्हें अपने सारे आभूषण देते हुए कहा कि आपका काम नहीं रुकना चाहिए फिलहाल आप इन्हें बेचकर अपना काम जारी रखी यदि आपके शोध कार्य में और धन की जरूरत पड़ी तो हम लोग कोलकाता के इस महंगे मकान को छोड़कर हुगली में सस्ते मकान में रह लेंगे। इस प्रकारवसु वर्षों 3 वर्ष तक बिना वेतन लिए अपना गुजारा और शोध कार्य करते रहे जिसकी वजह से उन पर काफी कर्ज भी हो गया था। कर्ज चुकाने के लिए उन्हें अपने पैतृक संपत्ति बेचनी पड़ी जब अंग्रेज सरकार के आला अधिकारियों को इस बात का पता चला तो उनके कान खड़े हो गए उन्होंने वसु से आकर मुलाकात की। आखिरकार कई वर्षों के संघर्ष के बाद वसु के सामने सरकार को झुकना ही पड़ा। सरकार ने उन्हें नियुक्ति की तारीख से लेकर उसे समय तक की पूरी अवधि का बकाया हुआ वेतन देने की घोषणा की। इस प्रकार से वसु ने अन्याय के विरुद्ध लड़ते हुए विजय हासिल की।
डॉ जगदीश चंद्र बसु एक स्वाभिमानी व्यक्ति होने के साथ ही एक महान वैज्ञानिक देशभक्त और समाज सुधारक भी थे।
शिक्षा
डॉ बासु के जीवन पर प्रेरित इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अन्याय के विरुद्ध लड़ना चाहिए ना कि उसे सहन चाहिए क्योंकि अन्याय सहन करना भी एक पाप है अपने स्वाभिमान की रक्षा व्यक्त को स्वयं करनी पड़ती है यदि व्यक्ति स्वयं अपने स्वाभिमान की रक्षा नहीं करता है तो कोई अन्य व्यक्ति भी उसका सम्मान नहीं करता है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्वाभिमान को बनाए रखते हुए अन्याय के विरुद्ध लड़ना चाहिए।