भारत के पहले इंसानी स्पेस मिशन का हिस्सा गगनयान मिशन होगा। इस मिशन में चार वायुसेना के पायलट भेजे जाएंगे जिन्हें 3000 घंटे तक की उड़ान का अनुभव होगा। गगन यानी स्पेस मिशन के लिए चारों एस्ट्रोनॉट्स को रूस की यूरी गागरिन कास्मोनॉट सेंटर केंद्र में 13 महीने की कड़ी ट्रेनिंग दी जा रही हैं। यहां फरवरी 2020 से मार्च 2021 तक इन अंतरिक्ष यात्रियों को हर परिस्थिति के लिए तैयार किया गया है या वहीं केंद्र है जहां भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा को ट्रेनिंग मिली थी।
जाने क्या है गगनयान मिशन–
गगनयान मिशन भारत का पहला मानव युक्त स्पेस मिशन है जिसके एस्ट्रोनॉट्स को 400 किलोमीटर ऊपर धरती के ऊपर लोवर ऑर्बिट में स्पेस में भेजा जाएगा। हम आपको बता दें कि यह भारत का पहला इंसानी मिशन होगा। इस मिशन में एस्ट्रोनॉट्स दो या दो से अधिक दिन स्पेस में बितायेंगे उसके बाद उन्हें सुरक्षित वापस हिंद महासागर में समुद्र के भीतर उतर जाएगा।
इसरो ने इस मिशन की टेस्टिंग पिछले साल 2023 में की थी। हाल ही में इसरो ने इसके क्रायोजेनिक इंजन की टेस्टिंग भी की है। इस मिशन में HSFC( हुमन स्पेस फ्लाइट मिशन सेंटर ) का खास योगदान है।
इसरो का गगनयान मिशन साल 2025 तक लांच किया जाएगा। इस मिशन को सबसे पहले प्री-मिशन के तौर पर 2024 में भेजा जाएगा इस मिशन के शुरुआती चरणों को इसी साल 2024 तक पूरे होने की संभावना है। इसमें दो मानवरहित मिशन को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा जब ये मिशन सफल होंगे उसके बाद ही एस्ट्रोनॉट भेजे जाएंगे।
मानव युक्त गगनयान मिशन के लिए चुने गए चार ग्रुप कैप्टन
मानव युक्त मिशन के लिए वायु सेवा के चार पायलट को चुना गया है। इनमें से ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालकृष्णन नायर केरल से, ग्रुप कैप्टन अजीत कृष्णन, तमिलनाडु से ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप और विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला यूपी से हैं।
रूस के ट्रेनिंग सेंटर में गगनवीरों को दी जाएगी कड़ी ट्रेनिंग…
गगन यानी स्पेस मिशन के लिए सभी एस्ट्रोनॉट्स को रूस के ट्रेनिंग सेंटर में ट्रेनिंग दी जाएगी।जहां पर भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा को भी ट्रेनिंग दी गई थी। इसके अलावा स्पेस पर जाने वाले पहले रूसी कॉस्मोनेट यूरी गागरिन को भी यही ट्रेनिंग दी गई थी। जिनके नाम पर इस ट्रेनिंग सेंटर का नाम यूरी गागरिन कॉस्मोनॉट सेंटर रखा गया है।
ट्रेनिंग के दौरान अंतरिक्ष यात्री को खास विमान में जीरो ग्रेविटी का अनुभव कराया जाएगा जिससे वे अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण की कमी के प्रभाव को बेहतर तरीके से समझ सकेंगे और उसे प्रभाव में अच्छी तरह से रहना सीख जाएंगे ताकि स्पेस में जाने पर उन्हें किसी प्रकार की समस्या का सामना करना पड़े।