भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक नए मुकाम को हासिल किया है – उनका 100वां लॉन्च मिशन सफल हो गया है! इसरो ने एनवीएस-02 उपग्रह को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया है, जो नेविगेशन, कृषि, बेड़ा प्रबंधन और मोबाइल उपकरणों में स्थान आधारित सेवाएं प्रदान करेगा।
इस उपलब्धि पर देशभर की बड़ी हस्तियों ने इसरो को बधाई दी है। यह मिशन इसरो की तकनीकी क्षमताओं और उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों का प्रमाण है।
एनवीएस-02 उपग्रह एनएवीआईसी उपग्रहों की नई पीढ़ी का हिस्सा है, जो मई 2023 में लॉन्च किए गए एनवीएस-01 की श्रेणी में शामिल हो रहा है। यह उपग्रह लगभग 2250 किलोग्राम के लिफ्ट-ऑफ द्रव्यमान और लगभग 3 किलोवाट की पावर हैं।
इसरो की यह उपलब्धि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक नए युग की शुरुआत करती है और देश की तकनीकी क्षमताओं को दर्शाती है।
इसके तहत श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से जीएसएलवी-एफ15 के जरिए 2250 किलोग्राम की नैविगेशन सैटेलाइट एनवीएस-02 को भेजा गया। नैविगेशन उपग्रह एनवीएस-2 नैविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टलेशन यानी नाविक शृंखला का दूसरा उपग्रह है। इस शृंखला में कुल पांच सैटेलाइट भेजी जानी हैं।
इस सैटेलाइट को बनाने का उद्देश्य
भारत में नक्शे पर किसी भी जगह या किसी चीज की सटीक स्थिति बताने, गति और डिजिटल डिवाइसेज पर सही समय बताने के लिए देश अब तक अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) तकनीक या रूस के ग्लोनास (GLONASS) सिस्टम पर निर्भर है। इस निर्भरता को कम करने के लिए यह सैटेलाइट लॉन्च किया गया है।
भारत की तरफ से अपना नैविगेशन सिस्टम- नाविक बनाने की एक अहम वजह कूटनीतिक स्तर पर स्वतंत्रता और स्वायत्तता हासिल करना है। दरअसल, किसी तनाव की स्थिति में विदेशी ताकतें अपने सैटेलाइट नैविगेशन सिस्टम के इस्तेमाल को दूसरे देशों के लिए बंद कर सकती हैं।
भारत के साथ 1999 में यह हो भी चुका है। कारगिल युद्ध के दौरान भारत ने अमेरिका से अपने ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) के जरिए ट्रैकिंग की सुविधा कारगिल में मुहैया कराने की मांग की थी। इसके जरिए भारत आतंकियों की सही स्थिति जानने की कोशिश में था। परंतु उसे समय अमेरिका ने साफ इनकार कर दिया था तब से भारत ने इस प्रकार के नेविगेशन सिस्टम को बनाने की ठान ली थी भारत ने नेविगेशन सिस्टम को बनाने की शुरुआत 2006 में की थी जो मिशन आज पूरा हुआ ।
भारत में जब कभी युद्ध होता था तब भारत को इस प्रकार के नेविगेशन सिस्टम की जरूरत पड़ती थी । जब कारगिल युद्ध हुआ तब भारत को पहली बार अपने स्वदेशी सैटेलाइट नैविगेशन सिस्टम की जरूरत महसूस हुई, जो देश के नक्शे पर सही स्थिति, सही समय और गति बताने का काम करे। इस प्रकार से इस नेविगेशन सिस्टम के द्वारा सही समय गति और दिशा का मापन किया जा सकता है और सही निशाना लगाया जा सकता है। भारत ऐसा करने वाला एक आत्मनिर्भर देश बन गया है तात्पर्य यह है कि नेविगेशन के लिए भारत को अब अमेरिका जैसे देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
इसका लक्ष्य भारती उपमहाद्वीप के साथ भारती भूभाग से लगभग 1500 किलोमीटर आगे के क्षेत्र में उपयोगकर्ताओं को सटीक स्थिति गति और समय की जानकारी प्रदान करना है भारत नागजी सैटेलाइट ऐसा लॉन्च किया जिससे भारत को अमेरिका के जो गूगल मैप है ना जिसे हम लोग उसे करते हैं उसका उसे नहीं करना पड़ेगा आज लॉन्च