बात उन दिनों की है जब बाल विवाह का चलन जो शोर पर था यानी कि बालक तथा बालिकाओं की की शादी कम उम्र में ही कर दी जाती थी और उनकी उम्र का ध्यान नहीं दिया जाता था।
एक महिला थी जिनका नाम रखमाबाई था। इनका विवाह 11 साल की उम्र में दादा जी भीकाजी नाम के व्यक्ति के साथ कर दिया गया क्योंकि उस समय उनकी उम्र बहुत कम थी। जिसके कारण इन्होंने अपने पति के साथ जाने से मना कर दिया और वह बोली कि मुझे अपने घर पर ही रहना है। आगे चलकर इसी महिला ने चिकित्सा की पढ़ाई की और भारत की प्रथम महिला डॉक्टर बनकर दिखाया। और महिलाओं के बीच एक आदर्श स्थापित किया।
रखमाबाई पर सौतेली पिता सखाराम अर्जुन का काफी असर था जो एक मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर थे। सखाराम अर्जुन महिलाओं की कम उम्र में भी गर्भवती होने के खिलाफ थे। वह नहीं चाहते थे कि बच्चों की शादी कम उम्र में की जाए क्योंकि इसे उनका शारीरिक विकास रुक जाता है। लंबे समय तक रखमाबाई ससुराल नहीं आई तो उनके पति ने उन्हें अपने वैवाहिक अधिकारों को पाने के लिए मुंबई हाई में रखमाबाई के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया।
रमाबाई भी चुप नहीं बैठी क्योकि वे साधारण महिला नहीं थी जो किसी की भी बात आसानी से सुन ले, बल्कि वह वह निडर और एक साहसी महिला थी।उन्होंने कोर्ट जाना स्वीकार कर लिया। कोर्ट में जाकर उन्होंने यहां तक भी कह दिया था कि उन्हें इस शादी में बने रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। जब यह शादी हुई थी तब मैं बहुत छोटी थी और उसमें उनकी सहमति नहीं थी लेकिन कोर्ट का फैसला रखमाबाई के खिलाफ आया।कोर्ट ने फैसला दिया कि यदि रखमाबाई अपने ससुराल नहीं जाना चाहती हैं तो उनके पास दो विकल्प है- या तो वे 6 महीने के लिए जेल जाने को तैयार हो जाए अथवा अपने पति के पास चली जाए…
रमाबाई की घर वालों ने उन्हें सलाह दी कि वे अपने पति के घर चली जाएं परंतु रमाबाई का फैसला कुछ और ही था, उन्होंने तय कर लिया था कि वह जेल चली जाएगी परंतु अपने ससुराल नहीं जाएंगी। साहसी रखमाबाई ने जेल जाना स्वीकार किया और सखाराम अर्जुन के समर्थन से अपनी लड़ाई जारी रखी।आखिर में रखमाबाई ने अपनी शादी को खत्म करने के लिए रानी विक्टोरिया को भी खत लिख दिया।
लंदन की महारानी विक्टोरिया ने कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया और जुलाई 1888 में उनके पति दादा जी को मुकदमा वापस लेना पड़ा। यही नहीं इस मुकदमे में हुए खर्च की भरपाई भीकाजी को करनी पड़ी। इस फैसले ने भारत के पितृसत्तात्मक, रूढ़िवादी समाज को हिला कर रख दिया। सच मानिए तो रमाबाई एक अदम्य साहस वाली नारी थी। जिन्होंने अपने अधिकारों के लिए लड़ाई की और जीत कर दिखाया।
अपनी शादी खत्म होने के बाद रखमाबाई ने लंदन स्कूल आफ मेडिसिन फॉर वीमेन से डाक्टरी की पढ़ाई की। इसके बाद ब्रसेल्स से अपने आगे की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने एमडी की डिग्री हासिल की। रमाबाई ने अपने साहस और बल के आधार पर उच्च शिक्षा प्राप्त कर भारत की पहली महिला डॉक्टर बनकर दिखाया। रमाबाई भारत की पहली महिला डॉक्टर होने के साथ-साथ महिलाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी बनी उन्होंने दिखा दिया कि महिलाएं सिर्फ घर का काम करने और शादी करके दूसरों का घर संभालने के लिए नहीं होती है अपितु उनमें भी कुछ कर दिखाने का एक अदम्य साहस होता है