छठ पूजा ही एकमात्र ऐसा त्योहार है जिसमें डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सदियों से ऐसी मान्यता है कि इस व्रत का पालन न करने पर बड़ी से बड़ी विपदा आ सकती है व इस व्रत को रखने वाली की इच्छा सदैव सूर्य भगवान पूरी करते हैं।
छठ पूजा के इतिहास की ओर दृष्टि डालें तो इसका प्रारम्भ महाभारत काल में कुंती द्वारा सूर्य की आराधना व पुत्र कर्ण के जन्म के समय से माना जाता है। वाल्मीकि रामायण में ऋषि अगस्त्य द्वारा आदित्य हृदय स्तोत्र के रूप में सूर्यदेव का जो वंदन और स्तवन किया गया है, उससे उनके सर्वदेवमय-सर्वशक्तिमान तथा दैदीप्यमान स्वरूप का बोध होता है।
सुख-समृद्धि एवं ऐश्वर्य वृद्धि का पर्व है सूर्य षष्ठी – नवग्रहों में सूर्य ग्रहों के राजा हैं, सूर्य की शक्ति जीवन का प्रतीक है। सूर्य उपासना करने से दीर्घायु, परिवारजनों में समृद्धि मिलती है एवं कुष्ठ रोग जैसी बीमारियाँ भी ठीक हो जाती हैं।

मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या तालाब के किनारे यह पूजा की जाती है।
पूजा करने का विधि-विधान –
कार्तिक माह, शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य भगवान की पूजा का विशेष महात्म्य है। इस दिन पुत्रवती सुहागिन स्त्रियां धन-सम्पति, पति-पुत्र, सुख-समृद्धि एवं ऐश्वर्य से परिपूर्ण रहने के लिए सूर्य षष्ठी नामक यह व्रत पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास के साथ करती हैं। यह व्रत डाला छठ के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसके अन्तर्गत तीन दिन कठोर व्रत का पालन किया जाता है। इस व्रत को करने वाली स्त्री पंचमी के दिन सिर्फ एक बार नमक रहित भोजन करती है।
दूसरे दिन षष्ठी को निर्जल रहकर अस्त होते सूर्य नारायण की विधि पूर्वक पूजा कर अर्घ्य देती
हैं।

तीसरे दिन सप्तमी को स्त्रियां घाटों पर जाकर पवित्र जल में स्नान करती है छठी माता का गीत गाती हैं और उगते सूरज को अर्ध्य देने के बाद ही पारण करती हैं। आमतौर पर या पूजा दिवाली के छठवें दिन से प्रारंभ होती है किंतु बिहार की तरफ यह पूजा दिवाली के चौथे दिन से ही शुरू हो जाती है। भगवान सूर्य के प्रति समर्पित यह पर्वत छठ पर्व कहलाता है जिसमें माता माता छठी जो कि सूर्य देव की बहन थी उनकी आराधना और उनका व्रत रखा जाता है जिससे उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है वह व्रती स्त्रियों को उनके संतान के सुखी होने का आशीर्वाद देती है।

 
									 
					
