विश्वकर्मा पूजा भारत में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो भगवान विश्वकर्मा के सम्मान में मनाया जाता है। भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि के रचयिता और सभी मशीनों और उपकरणों के निर्माता के रूप में जाना जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा ने स्वर्ग और पृथ्वी की रचना की थी। उन्होंने देवताओं के लिए कई अद्भुत वस्तुएँ बनाईं, जिनमें से एक थी भगवान इंद्र का वज्र। भगवान विश्वकर्मा ने ही भगवान शिव के लिए कैलाश पर्वत की रचना की थी।
विश्वकर्मा पूजा का महत्व
विश्वकर्मा पूजा का महत्व इस बात में है कि यह त्योहार हमें अपने काम के प्रति समर्पित होने और अपने कौशल को बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है। भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से हमें अपने काम में सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है।
विश्वकर्मा पूजा की तैयारी
विश्वकर्मा पूजा की तैयारी कई दिनों पहले से शुरू हो जाती है। लोग अपने घरों और कारखानों की साफ-सफाई करते हैं और भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या चित्र को स्थापित करते हैं। वे अपने उपकरणों और मशीनों को भी साफ करते हैं और उन्हें भगवान विश्वकर्मा के समक्ष रखते हैं।
विश्वकर्मा पूजा की विधि
1. सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और नए कपड़े पहनें।
2. घर में भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें।
3. भगवान विश्वकर्मा को फूल, फल और मिठाई का भोग लगाएं।
4. भगवान विश्वकर्मा की आरती करें और उनकी पूजा करें।
5. अपने उपकरणों और मशीनों को भगवान विश्वकर्मा के समक्ष रखें और उनकी पूजा करें।
6. भगवान विश्वकर्मा से अपने काम में सफलता और समृद्धि की प्रार्थना करें।
विश्वकर्मा भगवान की कथा
सूतजी बोले, प्राचीन समय की बात है, मुनि विश्वमित्र के बुलावे पर मुनि और संन्यासी लोग एक स्थान पर एकत्र हुए सभा करने के लिए। सभा में, मुनि विश्वमित्र ने सभी को संबोधित किया। मुनि विश्वमित्र ने कहा कि, हे मुनियों आश्रमों में दुष्ट राक्षस यज्ञ करने वाले हमारे लोगों को अपना भोजन बना लेते हैं। यज्ञों को नष्ट कर देते हैं। जिसके कारण हमारे पूजा-पाठ, ध्यान आदि में परेशानी हो रही है। इसलिए अब हमें तत्काल् उनके कुकृत्यों से बचने का कोई उपाय अवश्य करना चाहिए।
मुनि विश्वमित्र की बातों को सुनकर वशिष्ठ मुनि कहने लगे कि एक बार पहले भी ऋषि-मुनियों पर इस प्रकार का संकट आया था। उस समय हम् सब मिलकर ब्रह्माजी के पास गए थे। ब्रह्माजी ने ऋषि मुनियों को संकट से छुटकारा पाने के लिए उपाय बताया था। ऋषि लोगों ने ध्यानपूर्वक वशिष्ठ मुनि की बातों को सुना और कहने लगे कि वशिष्ठ मुनि ने ठीक ही कहा है, हमें ब्रह्मदेव की ही शरण में जाना जाना चाहिए।
ऐसा सुन सब ऋषि-मुनियों ने स्वर्ग को प्रस्थान किया। मुनियों के इस कष्ट को सुनकर ब्रह्माजी को बड़ा आश्चर्य हुआ। ब्रह्माजी कहने लगे कि, हे मुनियों राक्षसों से तो स्वर्ग में रहने वाले देवता को भी भय लगता रहता है। फिर मनुष्यों का तो कहना ही क्या जो बुढ़ापे और मृत्यु के दुखों में लिप्त रहते हैं। उन राक्षसों को नष्ट करने में श्री विश्वकर्मा समर्थ हैं, आप लोग श्रीविश्वकर्मा के शरण में जाएं।
इस समय पृथ्वी पर अग्नि देवता के पुत्र मुनि अगिंरा यज्ञों में श्रेष्ठ पुरोहित हैं और जो श्री विश्वकर्मा के भक्त हैं। वही आपके दुखों को दूर कर सकते हैं, इसलिए हे मुनियों, आप उन्हीं के पास जाएं। सूतजी बोले, ब्रह्माजी के कथन के अनुसार मुनि लोग अगिंरा ऋषि के पास गए। मुनियों की बातों को सुनकर अगिंरा ऋषि ने कहा, हे मुनियों आप लोग क्यों व्यर्थ में इधर-उधर मारे-मारे फिर रहे हैं। दुखों दूर करने में विश्वकर्मा भगवान के अतिरिक्त और कोई भी समर्थ नहीं है।
अमावस्या के दिन, आप लोग अपने साधारण कर्मों को रोककर भक्ति पूर्वक श्रीविश्वकर्मा कथा सुनें और उनकी उपासना करें। आपके सारे कष्टों को विश्वकर्मा भगवान अवश्य दूर करेंगे। महर्षि अगिंरा के बातों को सुनकर सभी लोग अपने-अपने आश्रमों को चले गए। तत्प्रश्चात् अमावस्या के दिन, मुनियों ने यज्ञ किया। यज्ञ में विश्वकर्मा भगवान का पूजन किया। श्रीविश्वकर्मा कथा को सुना। जिसका परिणाम यह हुआ कि सारे राक्षस भस्म हो गए। यज्ञ विघ्नों से रहित हो गया, उनके सारे कष्ट दूर हो गए। जो मनुष्य भक्ति-भाव से विश्वकर्मा भगवान की पूजा करता है, वह सुखों को प्राप्त करता हुआ संसार में बड़े पद को प्राप्त करता है।